Akanksha par kavita

तृष्णा आकांक्षाओं का सागर | Akanksha par kavita

तृष्णा आकांक्षाओं का सागर

( Trishna akankshaon ke sagar ) 

 

कामनाओं का ज्वार सा उठने लगा
आकांक्षाओं का सागर ले रहा हिलोरे
अभिलाषा विस्तार लेने लगी प्रतिफल
मन की तृष्णा होने जो खत्म नहीं होती

 

कुछ पा लेने की इच्छा जैसे जागी
कुछ करके समझने लगे बड़भागी
तमन्नायें हंसी ख्वाब सा देखने लगी
तृष्णाओ ने घेर लिया ज्यों मन को

 

भूल गया नर सब कुछ नाशवान है
संचय लालसा ने मतिभ्रम कर दिया
क्षणभंगुर है चंद सांसों का यह खेल
तृष्णा के मोह माया जाल में जकड़ा

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

वक्त बदलते देर ना लगती | Poem on waqt

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *