अमिताभ बच्चन जी साहेब

अमिताभ बच्चन जी साहेब, ये मेरा दीवानापन है

उस दिन मै नागपुर में था जब अखबारो में अमिताभ बच्चन जी की खबर आयी थी.. खबर थी उनके वापसी की.. हा वापसी की.. वो समय उन का कुछ ठीक नही था सो वे कुछ समय के लिए मिडिया से दूर हो गए थे।

साथ में उन की तस्वीर भी छपी थी.. मगर ये क्या.. तस्वीर में तो अमिताभ जी बढ़ी हुयी सफेद दाढ़ी में नजर आ रहे थे.. बूढ़े व्यक्ति के रूप में.. मेरा हीरो बूढ़ा हो गया था.. ओह.. यह कितना दुःखद अनुभव था मेरे लिए की जिस नायक को देख देख कर मै जोश और उत्साह में भर जाता था वो बूढ़ा हो गया था।

जो मुझे लड़ने और जूझने की प्रेरणा देता था वो बुढा हो गया था.. जो पचासो दृष्टो की पल भर में धूल चटा देता था वो बूढ़ा हो गया था.. जो व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश का प्रतीक था वो बूढ़ा हो गया था.. मेरा हीरो बूढ़ा हो गया था.. मेरा नायक बूढ़ा हो गया था.. उफ़ ये क्या हो गया था।

अमिताभ जी बूढ़े हो गए थे. मै दुःख और संताप से व्याकुल हो गया.. हॉलिका मेरी वो कोई लड़कपन या बच्चों वाली उम्र नही थी.. समझदारो में उठने बैठने का दौर था और जीवन की क्षणभंगुरता को समझता था.. महसूस करता था.. मगर न जाने मन के ये कैसे रिश्ते बच्चन जी से जुड़ गए थे की उन का बूढ़ा हो जाना जरा भी नही सुहा रहा था।

नासमझी के दौर से ही बच्चन मेरे प्रियतम नायको में रहे है.. वे इतने प्रिय रहे है की उन की कालिया फ़िल्म देख कर मै इतना अधिक उत्साह में भर उठा था की स्कुल के खेल कूद कार्यक्रम में लम्बी छलांग मारते समय ( अपनी क्षमता से अधिक क्यू की बच्चन जी जो दौड़ रहे थे मेरे अंदर ) अपना हाथ तुड़वा बैठा था.. दो महीनो तक हाथ को गले में लटकाये मै घूमता रहा।


सचमुच फिल्मे हमारे अंतर्मन में इस कदर हावी हो गयी है की हमारा जीवन भी फिल्मो सा हो गया है.. फिल्मो के कलाकारों से न जाने हम कैसे रिश्ते जोड़ बैठते है की उन की अपनी निजी जिंदगी के दुःख दर्द हम अपने जीवन में महसूस करते है.. और फिर कलाकार अमिताभ जी जैसा हो तो विरोधी भी न चाहते हुए भी मुरीद हो जाते है।

मगर मै अमिताभ जी के इस रूप को पचा नही पा रहा था.. मेरा अपना ऐसा सोचना था की अमिताभ जी पर उम्र कभी हावी नही हो सकती.. वे कुदरत के नियम से पर है.. सफेदी और झुर्रियां उन के लिए नही है.. वे तो सदा सदा के लिए है.. वे चिर युवा है.. वे हमेशा हर पल तेजस्वी है.. मुक्ति दाता है।

वे भला कैसे बूढ़े हो सकते है.. उन्हें बूढ़ा नही होना चाहिए.. मुझ कुदरत पर गुस्सा आने लगा.. मेरे प्रिय नायक को बूढ़ा बना रही है.. अमिताभ जी के प्रति आसक्ति इस हद तक हो गयी थी की ये भी ख्याल नही आया की मेरे बाबूजी के कनपटी के बाल भी तो सफ़ेद हो रहे है।

आँखों पर चश्मा भी चढ़ आया है.. रगों में बहता बाबूजी का खून कभी यह महसूस ही नही कर सका मेरे पिता भी उम्र के उस दौर को जी रहे है जिस में की बच्चन जी जी रहे है.. और बच्चन जी का बूढ़ा हो जाना मेरे लिए आसमाँ टूट पड़ने वाली बात हो गयी थी.. नासमझ मन झूठी तस्वीरों के मायाजाल में फसा था।

यथार्थ से मुँह चुराता मै अमिताभ जी के बारे में सोचने लगा.. तो क्या अब अमिताभ जी अभिनेत्रियों के साथ बगीचे में.. पहाड़ो पर गीत नही गाएंगे.. क्या अब वे लफंगों की ठुकाई नही करेंगे.. क्या मन को आंदोलित करने वाले उन के सव्वादो से मुझे वंचित रह जाना होंगा।

क्या अब वे पिता की भूमिकाये करेंगे.. क्या अब उन की फिल्मो में कोई दूजे लोग हीरोगिरी करेंगे.. क्या उन्हें अब दोयम दर्जे का व्यवहार मिलेंगा.. न जाने कितने विचार मन में उमड़ पड़े थे.. न जाने कितने ख्यालो ने मन को दुखी कर दिया था.. स्वयं को समझदार और होशयार समझने वाला मै बावरा सा हुआ जा रहा था.. मुझे यह कदापि स्वीकार नही था की पर्दे पर बच्चन जी के अलावा कोई और भी हीरो नाचे गाये.. लाते घुसे बरसाये।

आज जब अनायास ही उस दिन की याद आयी तो मै मन ही मन मुस्करा पड़ा.. ये कहने में मुझे जरा भी हिचक नही है की बच्चन जी के प्रति मेरी दीवानगी दिन ब दिन बढ़ी ही है मगर यह भी स्वीकार करता हु मोजुदा कुछ वर्षो से मैने उन की कोई नयी फ़िल्म नही देखि है।

उस दिन को जिस बात को ले कर मै दुखी हुआ जा रहा था वो अब स्वयं मुझ पर भी तो लागु हो रही है.. बालो में सफेदी बढ़ने लगी है.. रंगो के सहारे बाल काले किये जा रहा हु.. पास की नजरे खोटी हुयी जा रही सो चश्मा भी लगाना अब जरुरी हो गया है.. मन इन परिवर्तनों को स्वीकार करता है।

कुदरत के फैसलो के आगे सर झुकाता है मगर मन यह भी फिर भी चाहता है की अमिताभ जी फिर युवा हो जाये.. फिर से वे मर्द बन कर देशप्रेमी की पुकार पर अदालत में आकर अंधे कानून से कहे की मै आझाद हु.. मै कुली हु पर मजबूर नही.. मै लावारिस भले ही हु मगर शराबी डॉन नही हु।

मेरे नसीब में अजूबे बहुत है मगर मै यह भी जानता हु की कभी ख़ुशी कभी गम ये जिंदगी का सिलसिला है.. मगर सच तो यही है की मै मुकद्दर का सिकंदर हु और इस बात का खुदागवाह है.. एक बात कहु आप से.. कुछ न कुछ तो जरूर अमिताभ जी में ऐसा है की दुनिया चुंबक की तरह उन की और खींची चली जाती है।

कुली फ़िल्म में उन के घायल होने पर देश ने जो उन के लिए प्रार्थनाएं की है वे एक इतिहास है.. माँ भी बार बार पूछती थी की अमिताबच्चा की तबियत अब कैसी है.. माँ को अमिताभ बच्चन बोलने में कठिनाई होती थी सो वो उन्हें अमिताबच्चा बोलती थी।

दुनिया में कुछ लोग बिरले ही पैदा होते है जिन की साँस की हर उतार चढाव पर लोगो की धड़कने बढ़ जाती है.. अमिताभ बच्चन जी वे ही पुण्यशाली जिव है जिन से कोई रिश्ता नही होने के बावजूद भी करोडो लोग रिश्ता जोड़ के बैठे है.. उन के दुःख में दुखी होते है.. उन के सुख में हँसते है.. जानते हे होना जाना कुछ नही है मगर मन के तार तोडना नही चाहते है.. पता नही यह रिश्ता क्या कहलाता है.
अनेक अनेक धन्यवाद

रमेश तोरावत जैन
अकोला

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