अमृतवर्षा की प्राचीन प्रथा | Amrit Varsha
अमृतवर्षा की प्राचीन प्रथा
( Amrit varsha ki prachin pratha )
पुरानें समय से ही चली आ रही है ये प्रथा,
शरद पूर्णिमा सब जगह पर मनाया जाता।
चैतना और नवीनता को आयाम यही देता,
मुख्य त्यौंहारों की तरह इसे मनाया जाता।।
इस दिन चंद्रमा भी अपना सौंदर्य दिखाता,
अपना प्रकाश फैलाकर अमृतवर्षा करता।
आओ मिलकर चलें इस पूर्णिमा चाॅंद तलें,
अत्यंत अलौकिक जगमगाती रोशनी तलें।।
इस उत्सव को अनेंक नाम से जाना जाता,
जिसमें एक मुख्य जन्मोत्सव लक्ष्मी माता।
धन व संपदा की बरकत करती माॅं हमेशा,
यह समय जीवन में सुख आगमन दर्शाता।।
सम्पूर्ण भारत में इसको धूमधाम से मनातें,
इस अमृत हेतु देव गंधर्व भी धरा पर आतें।
शरद, अश्विनी रास आरोग्य अमृत कौमुदि,
और कोजागर पूर्णिमा के नाम हम जानतें।।
भगवान कृष्ण भी महारास इस दिन रचाएं,
एवं प्रेम की पराकाष्ठा गोपियों संग दर्शाएं।
इस पर्व का एक अलग ही आनन्द मिलता,
महालक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना होता।।
शरद पूर्णिमा
( Sharad Purnima )
शरद ऋतु के आनें का यह सभी को संकेत देती,
इस रात चन्द्रमा की रोशनी अमृत रस बरसाती।
अनादिकाल से ही चलती आ रही जिसकी प्रथा
रास पूर्णिमा व शरद पूर्णिमा यही तो कहलाती।।
है मान्यता इस दिन हुआ माॅं लक्ष्मीजी का जन्म,
व्रत और पूजन करतें विशेष रूप से आम जन।
ख़ास है नारियल लड्डू कलश धान सिन्दूर धूप,
रंगोली बनाकर विधि विधान से करतें है भजन।।
कोजागर कौमुदी व्रत महिलाऍं इस-दिन करती,
सोलह कलाओं से संपूर्ण चंद्र सी सभी सजती।
जीवनदायिनी एवं रोग विनाशक होती यह रात,
इसी रात माॅं लक्ष्मी धरती पर भ्रमण को आती।।
घर-घर बनातें खीर इस दिन चन्द्र रात्रि में रखतें,
जिसके पश्चात प्रसाद रुप में सभी सेवन करतें।
इसी रोज़ चाॅंद की किरणों में उपचारी गुण होते,
आयुर्वेदाचार्य साल भर इसी का इंतज़ार करतें।।