अन्नपूर्णा हो तुम घर की | Kavita
अन्नपूर्णा हो तुम घर की
( Annapurna ho tum ghar ki )
संस्कार संजोकर घर में
खूब ख्याल रखे घर का
अन्नपूर्णा हो तुम घर की
घर लगता तुमसे स्वर्ग सा
मधुर विचारों से सुसज्जित
महके घर का कोना कोना
नारी कर कमलों से ही
प्यारा लगे घर सलोना
स्वच्छ धुले हाथों से बने
मीठे मीठे पकवान घर में
अन्नपूर्णा हो तुम घर की
संपन्नता हो लक्ष्मी घर में
अतिथि आदर सत्कार करे
पूरा मान-सम्मान घर में
मधुर व्यवहार से रिझते
पधारे भगवान घर में
रिश्तो में मधुरता घोले
मधुर ही आपकी वाणी
अन्नपूर्णा हो तुम घर की
साक्षात देवी कल्याणी
किसका कैसा शौक रुचि
सबसे बेहतर जानती है
कुशल गृहणी मेधावी
दुनिया बड़ा मानती है।
तुम त्याग की मूरत हो
भावों से खूबसूरत हो
अन्नपूर्णा हो तुम घर की
प्रगति का शुभ मुहूर्त हो
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )