
मैं हूं मोबाइल
( Main hoon mobile )
मैं हूं एक प्लास्टिक का बॉक्स,
आ जाता एक पॉकिट में बस।
कोई रखता मुझे शर्ट पाॅकिट,
कोई रखता है पेंट की पाॅकिट।।
मेरे बिन कोई काम ना चलता,
हाथ में नही दिमाग़ ना चलता।
सुबह से लेकर शाम हो जाएं,
उंगलियाँ मानव लगाता रहता।।
मुझको रखता है इतने प्यार से,
बच्चों से ज्यादा मुझे प्यार से।
ऊपर कवर मुझको पहनाकर,
हेलो-हाॅय वह करता ही रहता।।
मुझसे ही झूठ बोलना सिखता,
कहां पर है कहां को यें बताता।
हाथ से छूटता टुकड़ा हो जाता,
फिर काम में दिल नही लगता।।
पाॅवर बैटरी से चलता में रहता,
बैटरी समाप्त तो चार्ज लगाता।
न्यूज कॉमेडी पिक्चर दिखाता,
देश-विदेशों में बातें भी कराता।।
रुपये भेजता बिल पेमेंट करता,
आवाज़ रिकाॅर्ड फोटो खिंचता।
गणपत सभी कविताएं लिखता,
मैं मोबाइल स्टोर मुझमे रखता।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )