अपनी दुनिया उजाड़ बैठा मैं
अपनी दुनिया उजाड़ बैठा मैं

अपनी दुनिया उजाड़ बैठा मैं

( Apni duniya ujad baitha main ) 

 

अपनी दुनिया उजाड़ बैठा मैं
सबसे रिश्ते बिगाड़ बैठा मैं

 

क़ब्र खोदी थी ग़ैर की ख़ातिर
लाश अपनी ही गाड़ बैठा मैं

 

बेखुदी के शदीद आलम में
हाय ख़त उसका फाड़ बैठा मैं

 

मुझसे नाराज़ हो गयी खुशियाँ
आज माँ को लताड़ बैठा मैं

 

बेवफ़ाई करेगा वो मुझसे
इक नज़र में ही ताड़ बैठा मैं

 

अब सफ़र की मैं क्या निशानी दूँ
गर्द चेहरे से झाड़ बैठा मैं

 

देखकर मुश्किलों के हिरणों को
शेर जैसा दहाड़ बैठा मैं

 

दफ़्न करके जिन्हें मैं आया था
वो ही मुर्दे उखाड़ बैठा मैं

 

याद के कुछ पुराने पेड़ों से
गुजरे लम्हों को झाड़ बैठा मैं

 

सबसे आगे निकलने की ज़िद में
ख़ुद को ही अब पछाड़ बैठा मैं

 

आइने से अहद गिला करके
अपनी सूरत बिगाड़ बैठा मैं !

 

लेखक :– अमित ‘अहद’

गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129

 

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