आषाढ़ के बादल
आषाढ़ के बादल

आषाढ़ के बादल

( Ashadh ke baadal )

उमड़ घुमड़ कर आ गए आषाढ़ के बादल
अंबर  में  घिर  छा गए  आषाढ़  के  बादल

 

रिमझिम मूसलाधार बरसता घनघोर घटा छाए
कड़ कड़ करती दामिनी काले बदरा बरसाए

 

गड़ गड़ कर गर्जन करते आषाढ़ के बादल
झील ताल तलैया भरते आषाढ़ के बादल

 

हरियाली खेतों में आए पीली सरसों मन मुस्काए
भूमिपुत्र झूम के गाए आओ आषाढ़ के बादल

 

उर  आनंद  उमड़कर  आता बहे नेह की धारा
खुशहाली घर घर में आए हो हर्षित जनमन सारा

 

नेह की पावन गंगा बहाते आषाढ़ के बादल
घट घट में प्रेम प्यार बरसाते आषाढ़ के बादल

 

ताजगी से खिलते चेहरे एक दूजे से मिलते चेहरे
गांव शहर सड़कें तर हो खेत सारे मिलते हरे

 

पर्वत  नदियां  पेड़  पंछी मेघ देख हर्षाते हैं
बागों में कोयल पपीहे सब मीठे बोल सुनाते हैं

 

झूम झूम कर मयूरा नाचे नदियां भी बल खाती है
प्रेमातुर सरितायें फिर सागर मिलन को जाती है

 

अथाह सिंधु ले हिलोरे छा गए आषाढ़ के बादल
सौगात खुशियों की ले आ गए आषाढ़ के बादल

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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