
आंखों में अश्कों के समंदर रो रहे हैं
Aankhon Mein Ashkon Ke Samandar Ro Rahe hain
आँखों में अश्कों के समंदर रो रहे हैं!
ग़म मुहब्बत के कई मेरेअंदर रो रहे हैं!
मिट गया झगड़े में नामो निशान घर का,
और दहलीज़ पे बैठे खंडहर रो रहे हैं!
हवस में तरक़्क़ी की गांव का मिट गया वजूद
कंक्रीट की बस्ती में अब बूढ़े शजर रो रहे हैं!
ले आना खरीदकर खुशियां बाज़ार से तुम,
वीरानगी में यहां शहर के मंज़र रो रहे हैं!!
शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236
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