
बेशुमार हादसों से गुज़रा हूँ मैं
( Beshumar Haadson Se Guzra Hun Main )
बेशुमार हादसों से गुज़रा हूँ मैं!
वक़्त इसलिए ही सहमा हूँ मैं!
लहू लहू जिस्म है रूह के साथ,
अहले जवानी झुक सा गया हूँ मैं!
मुस्कुराहट ने छीन लिया चेहरा,
ओढ़ कर सारे दर्द चल रहा हूँ मै!
तंहाँ तंहाँ बयांबा तंहाँ ज़िंदगी से,
जाने क्या क्या अब ढूंढता हूँ मैं!
अहसास की आग कम न होती,
फिर बेवफ़ा पनाह मांगता हूं मैं!
परछाईया मुझसे डरने लगी हैं,
अंदर ही अंदर क्या हो गया हूं मैं!!
शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236
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