अस्तित्व

( Astitva ) 

 

मैं खो गई हूँ कही
खोज रही हूँ मैं
मेरा होना

मैं एक कुलवधू
एक पत्नी, एक माँ
के बीच कहीं खो गई हूँ
इन सबके बीच में
मैं मुझे खोज रही हूँ

कर्तव्यों और फ़र्ज़
के बीच उलझ कर
रह गई हूँ मैं
इन्हें बिना तोड़े
खुद को बनाने की
कोशिश कर रही हूँ मैं

खुद को ज़िंदा रखने को
मैं मेरे हिस्से की हवा
खोज रही हूँ
मैं ख़ुद ही काग़ज़ बन
अपने दर्द की
हर रोज़ एक नई
कहानी लिख रही हूँ

ज़िंदगी का हर एक तोहफ़ा
बिना ख्वाहिश क़बूल
कर रही हूँ
मैं मुझमें खुद का
अस्तित्व ढूँढ रही हूँ
मैं ख़ुद को खोज रही हूँ

 

डॉ. ऋतु शर्मा ननंन पाँडे
( नीदरलैंड )

*कवियित्री व समाजसेवी

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