और घूंघट

और घूंघट

और घूंघट

 

शरद सिहरन चलन चटपट और घूंघट।
प्राण ले लेगी ये नटखट और घूंघट।।

 

कुंद इंदु तुषार सघनित दामिनी तन,
व्यथित पीड़ित प्रणयिनी सी काम बिन,
मिल रही कुछ ऐसी आहट और घूंघट।। प्राण०

 

नैन पुतरी मीन सी विचरण करें,
अधर फरकन चपला संचालन करे,
करत बेसर अकट झंझट और घूंघट।। प्राण०

 

सप्तद्वीप वसुंधरा ब्रह्मांड सारा,
चिरंतन से घूंघट जीता जगत हारा,
शेष तूं भी छोड़ खटपट और घूंघट।। प्राण०

 

 

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लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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घूंघट न होता तो कुछ भी न होता

 

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