बादल आषाढ़ के | Baadal Ashad ke
बादल आषाढ़ के
( Baadal Ashad ke )
घिर आए फिर बादल आषाढ़ के,
हे जलज मेघ तो अब बरसाओ,
तपते जेठ से अब त्रस्त हुए सब
तुम कुछ राहत तो अब पहुचाओं।।
तुम्हारे बिना सुनी थी हरियाली
मन में ना कोई भी थी खुशहाली !
प्यासी धारा तप रही चहूं ओर से,
तुम बिन पुष्पों की थी डाली खाली ।।
मुरझा ही चले थे ये वन उपवन सब ,
हो गया देखो तब आषाढ़ का आगमन
चहक उठी फिर से कोयल बाग में,
फिर छाई हरियाली देख प्रसन्न हुआ मन।।
बच्चे भी सब नाच रहे मिलकर टोली में
आनंद ले रहे बारिश का सब मस्त मग्न
बड़े भी उठाते आनंद इस मौसम का
पिकनिक का बन जाता सबका मन।।
घनघोर घटाएं काली घिर आएं आषाढ़ की
भींग जाए जब सारा वन उपवन और मन,
प्रकृति प्रेम के संदेश ले आए आषाढ़ जब,
गर्मी की पीढ़ा से मुक्त होता सबका तन मन ।।
धरती महक उठे मिट्टी की शोंधि खुशबू से ,
मंत्र मुग्ध हो रहा देख पहली बारिश को मन !
तकता था राह तुम्हारी किसान भी देख देख
धरा की प्यास बुझाने कब आयेंगे आषाढ़ के बादल ।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश