बात जब भी चली मुहब्बत की
बात जब भी चली मुहब्बत की
बात जब भी चली मुहब्बत की
दास्ताँ फिर लिखी मुहब्बत की
नफ़रतों का अँधेरा छाया है
कर दो तुम रौशनी मुहब्बत की
रूह से रूह को ही निसबत है
ये है पाकीज़गी मुहब्बत की
तंज़ कसता है तो ज़माना कसे
हम करें शायरी मुहब्बत की
रोज़े अव्वल से आज तक हमने
देखी दीवानगी मुहब्बत की
जिसको चाहा वो मिल नही पाया
कैसी है बरहमी मुहब्बत की
हर तरफ़ हैं अदावतें मीना
आज भी है कमी मुहब्बत की
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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