बभ्रुवाहन-एक योद्धा

 # कहानी_से_पहले_की_कहानी

                          ★★
 महाभारत के बाद मुनि वेदव्यास और श्री कृष्णजी ने धर्मराज युधिष्ठिर से राज्य के उत्थान हेतु अश्वमेध यज्ञ करने का आह्वान किया। अश्वमेध यज्ञ अर्थात विजय-  पर्व,सुख समृद्धि की कामना और खुद को विजेता घोषित करने का उपक्रम।
युधिष्ठिर ने उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ कर दिया।अश्व का रक्षक धनुर्विद्या में पारंगत अर्जुन को बनाया गया।घोड़ा जिस राज्य में जाता वहां के राजा या तो पराजय स्वीकार कर लेते या कर आदि देकर पाण्डव पुत्र के आगे नतमस्तक हो जाते।अर्जुन का प्रताप ऐसा था कि कोई भी इन्हें युद्ध के लिए ललकार नही सका सिवाय बभ्रुवाहन के।मणिपुर राज्य के राजा बभ्रुवाहन थे।यह और कोई नही अर्जुन की चार पत्नियों में से एक चित्रांगदा के पुत्र थे।

 # अब_आगे_की_कहानी

                   ★★
“अहोभाग्य!!तात,जो आप इस राज्य में पधारे।आज्ञा दें।”राज्य की सीमा पर बभ्रुवाहन ने पिता अर्जुन का सत्कार करते हुए कहा।
“पुत्र बभ्रुवाहन, मेरा अश्व तुम्हारे राज्य में है। यहां का राजा होने के नाते तुम्हारा राज्य के प्रति यह कर्तव्य है कि तुम पराजय स्वीकार न कर मुझसे युद्ध करो।”
“पिता के विरुद्ध युद्ध करना मैं धर्मसम्मत नही समझता,तात!! चाहे इसके लिए मुझे अपना राज्य अथवा अपने प्राण ही क्यों न खोने पड़ें।’बभ्रुवाहन ने कहा और पिता अर्जुन के पैरों में नतमस्तक हो गए।
अर्जुन ने विशाल भुजाओं वाले बभ्रुवाहन का कंधा पकड़ उठाते हुए निम्न शब्द कहे-
” यह मोह और कायरता तुम्हे शोभा नही देती बभ्रु!! क्षत्रिय धर्म का पालन करो।क्या तुम्हे तनिक भी याद नही कि तुम उस कुरुकुल से हो जिसने सदैव धर्म को अपने मस्तक में धारण किया है।
यदि आज तुमने मुझसे बिना युद्ध किये पराजय स्वीकार कर ली तो आने वाली पीढियां तुम्हे मोह ग्रस्त और कायर कहेंगी।एक पिता होने के नाते मैं कदापि नही चाहूंगा कि मेरा पुत्र,धनुर्धारी अर्जुन का पुत्र कायर कहा जाए।”
 ऐरावत वंश की नागकन्या और अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी साथ थीं। विमाता उलूपी ने किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े बभ्रुवाहन से निम्न शब्द कहे-
“पुत्र,तुम्हारे पिता ने सदैव धर्म का पालन किया है।यह तुम भी जानते हो। मैं तुम्हारी विमाता हूँ।हमारा खून का रिश्ता नही है परंतु तुम उस पिता के पुत्र हो जो मेरा भी पति है। इसलिए मैं तुम्हारी माता हुई।मां होने के नाते मैं तुम्हे आदेश देती हूँ कि मोह को छोड़ क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अपने पिता से युद्ध करो।”
धर्मसंकट में फंसे बभ्रुवाहन कोई उपाय न देख पिता अर्जुन से युद्ध करने को तैयार हो गए।
मणिपुर राज्य की सीमा भीषण रक्तपात से तप्त थी। एक पुत्र न चाहते हुए भी अपने पिता को बाणों से भेद रहा था। जैसे सीमा पर तैनात सैनिक देश की रक्षा हेतु अपने कर्तव्य और धर्म का निर्वहन करते हुए युद्धभूमि में 1 इंच भी पीछे नही हटता उसी प्रकार बभ्रुवाहन घोड़े को राज्य की सीमा पर ही रोके रखने हेतु पिता अर्जुन को लक्ष्य कर हताहत कर रहा था।
कुछ ही समय मे बभ्रुवाहन के हमलों से अर्जुन घायल हो गए। पिता की देह से बहते गाढ़े रक्त को देखकर बभ्रुवाहन का मोह जग गया और उसने धनुष नीचे रख युद्ध बन्द कर दिया।
“रुक क्यों गए ??
युद्ध जारी रखो पुत्र!! मैं अभी मरा नही हूँ।युद्ध के मैदान में एक क्षत्रिय का धर्म या तो विजय या फिर वीरगति प्राप्त करना है। मध्य का कोई मार्ग नही है।” इतना कह अर्जुन ने गांडीव में लक्ष्यभेदी बाण चढ़ाकर बभ्रु को लक्षित किया।बाण सीधा बभ्रुवाहन की जंघाओं में जाकर लगा।
दर्द से कराह उठे बभ्रु ने भी पिता पर बाण छोड़ दिया।वह बाण अर्जुन के हृदय के पास जाकर लगा।वह तत्काल जमीन पर गिर पड़े परंतु यह असह्य दृश्य देखने से पहले ही बभ्रु मूर्छित हो गया।

                # और_अंत_में

                       ★★
चित्रांगदा ने युद्धभूमि में प्रवेश करते ही जो दृश्य देखा उससे उसका हृदय छलनी हो गया।एक तरफ पुत्र बेहोश पड़ा था तो दूसरी ओर पति अर्जुन मृत। हाय!! एक स्त्री के लिए इससे बड़ा दुख और क्या होगा!!
वह अपने हृदय के सबसे करीब दो रत्नों की देह से बहता रक्त देख रही थी। चित्रांगदा दुख की पीड़ा से उत्तप्त हो विलाप करने लगी।
उसकी दृष्टि अर्जुन की मृत देह के समीप खड़ी सौत विलूपी पर पड़ी।वह सिंहनी की भांति गरज उठी।
“नागकन्या विलूपी!! तुमको तनिक भी लज्जा न आई!!
तुमने एक पुत्र को उसके पिता के ही विरुद्ध युद्ध के मैदान में खड़ा कर दिया? यह तुमने क्या किया!! “इतना कहकर चित्रांगदा  विलाप करती हुई विलूपी से पति अर्जुन को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगी।
मणि वरदान प्राप्त उलूपी ने नागलोक से मणियों का आह्वान कर उन्हें अर्जुन की छाती से लगाया। अर्जुन नींद से जागे हुए व्यक्ति की भांति उठ बैठे। युद्ध समाप्ति की घोषणा हो गयी।
मूर्छित बभ्रुवाहन ने होश में आने के बाद पिता अर्जुन के चरणस्पर्श कर उन्हें आदर-सत्कार पूर्वक राज्य से विदा किया।
#DISCLAIMER:- किवदंतियों पर आधारित यह कहानी सत्यता की पुष्टि नही करती।

?

Similar Posts

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *