बचपन का गाँव | Bachpan ka Gaon
बचपन का गाँव
ठण्डी-ठण्डी छांव में
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।
तोडऩा चाहती हूँ
बंदिश चारों पहर की।
नफरत भरी ये
जिन्दगी शहर की॥
अपनेपन की छाया
मैं पाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हँ हूँ॥
घुट-सी गयी हूँ
इस अकेलेपन में
खुशियों के पल ढूँढ रही
निर्दयी से सूनेपन में
इस उजड़े गुलशन को
मैं महकाना चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।
प्रेम और भाईचारे का
जहाँ न संगम हो।
भागे एक-दूजे से दूर
न मिलन की सरगम हो॥
उस संसार से अब
मैं छुटकारा चाहती हूँ।
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ।
![Priyanka](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2024/12/image-4.png)
प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045