बचपन की यादें | Bachpan ki Yaadein
बचपन की यादें
( Bachpan ki yaadein )
बचपन की यादों का अब तो मैं दिवाना हो गया
क्या शमा कैसी फिजाएं,मन मस्ताना हो गया।
मासूमियत की है लरी,मस्ती का फ़साना क्या कहें
प्यार था पहले का जो अब वह तराना हो गया।
वह खेलना वह कूदना उस खेत से खलियान तक
अब तो मकां के चार दीवारों में भुलाना हो गया।
बन खिलौना गाड़ियां हम बोगियां थे रेल के
अब दूर ऐसे हम हुए मानों जमाना हो गया।
सब वक्त का यह खेल है कैसे कहां तक आ गए
सब देखते ही देखते बचपन बेगाना हो गया।
लद गया है बोझ जिम्मेदारियों का हर तरफ
थक चुके यह पांव मुश्किल अब बढ़ाना हो गया
याद आता वह सुनहरा पल दो पल की जिंदगी
पर सिमट एक दायरे में वह अंजाना हो गया।
ढूढ़े कहां वह बचपना आता नहीं भी स्वप्न में
अब बिन स्वरों सी जिंदगी का गीत गाना हो गया।