बादल!
( Badal )
मेरी मुंडेर की तरफ बढ़ रहा बादल,
अरब सागर की तरफ से चढ़ रहा बादल।
न जाने कितने क्विंटल पानी से है भरा,
तूफानी हवाओं से भी लड़ रहा बादल।
सूख चुके तालाब,नदी,डैम न जाने कब के,
उनकी चीख- चीत्कार को सुन रहा बादल।
सागर की कोख से फिर जन्म लिया इसने,
धरती की बेचैनी को समझ रहा बादल।
आई ऋतु बारिश की खुशियों की झड़ी लगी,
माटी के चन्दन से तिलक कर रहा बादल।
शीश झुकाने आया वीरों की धरती पर,
मोक्ष की तरफ मानों बढ़ रहा बादल।
है जीवन बेकार जो किसी के काम न आए,
निष्काम की सुगंध बिखेर रहा बादल।
भर देगा हरियाली से, बाँझ न होगी धरती,
जीवन की ज्योति बनकर जल रहा बादल।
चमकेगी चपला देखो मेघों के उर में,
नदियों की लहरों में संगीत भर रहा बादल।
बोयेगा किसान बीज लह- लहाएगी फसलें,
अन्न – धन से घर हमारा भर रहा बादल।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई