बड़े मामले में विफल होती सीबीआई!

बड़े मामले में विफल होती सीबीआई!

बड़े मामले में विफल होती सीबीआई!

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हाईप्रोफाइल मामलों में विफल होती सीबीआई,
यह बात कुछ हजम नहीं होती भाई !
बोफोर्स तोप घोटाला,
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला।
कर्नाटक खनन घोटाला-
जिसमें मुख्यमंत्री येदियुरप्पा थे अभियुक्त,
या आरूषि हत्याकांड जिसमें सीबीआई थी नियुक्त;
जांच नहीं कर पायी युक्तियुक्त।
मस्जिद ढ़ांचा विध्वंस मामले में भी-
सीबीआई जांच संदेह के दायरे में है आई,
जब न्यायालय ने सभी आरोपितों को बरी
करने का फैसला सुनाई।
सीबीआई के आरोप, गवाह और साक्ष्य
विश्वसनीय व सिद्ध नहीं हैं,
यह बात स्वयं न्यायाधीश महोदय ने कही है।
जज साहब ने कहा कि-
जो साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं वो फोटो कापी व पुरानी हैं,
कोर्ट में उसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है।
फोटो हैं तो निगेटिव नहीं है,
वीडियो संपादित हैं।
भाषण का टेप, सील नहीं है,
गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं।
कई तो घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे,
इतने वर्षों से आप कर क्या रहे थे ?
खबरों की कतरन है,मूल अखबार नहीं हैं,
न तारीख और वर्ष ही डाली है!
इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है,
सभी आरोपितों को बरी किया जाता है।
सीबीआई 28 वर्षों में-
अखबारों की कतरन पर डेट नहीं डाल पाई,
ना ढ़ंग के गवाह जुटा पाई ।
इन्हीं सब बातों से संदेह होता है!
आखिर बड़े मामलों में ही ऐसा क्यों होता है?
पिछले दिनों पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था-
जांच एजेंसी में मानव संसाधन की भारी कमी है,
लगभग 50 प्रतिशत पद खाली हैं।
एजेंसी की कानूनी स्थिति पर है शंका,
राजनैतिक दखलंदाज की रहती है आशंका।
ट्रेनिंग के लिए प्रर्याप्त निवेश-
तथा जवाबदेही का है अभाव,
जिसका एजेंसी की कार्यक्षमता पर पड़ता है प्रभाव।
2013 में गुवहाटी उच्च न्यायालय ने
सीबीआई को ही अवैध घोषित कर दिया था!
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया था।
फिलहाल एजेंसी की जांच स्टे आर्डर पर ही टिकी है,
और उसी के हाथ न जाने कितने मामलों की जांच अटकी है?
जनता सब देख रही है,
भोली है पर सब समझ रही है।

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नवाब मंजूर

लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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