
नाम जिंदा तो रहेगा
( Naam Jinda To Rahega )
मनोरम शब्द तेरे सच कहूँ तो तू रथि है।
निःशब्द तेरे भाव है पर सच कहूँ तो यति है।
अब देखना है भाव तेरे सामने आयेगे कैसे,
पर सच है ये की सिर्फ तू ही इक बलि है।
तडपती पुण्य भूमि फिर मेरा गौरव बढेगा।
वही सम्मान मेरा इस जगत मे फिर मिलेगा।
कमल के पुष्प का अर्पण पुनः सम्मान देगा,
ये भगवा ध्वँजा गगन मे लहलहता फिर मिलेगा।
हिमालय फिर तेरा गौरव गगन के सिर चढेगा।
तो गंगा स्वच्छ निर्मल मान उसको फिर मिलेगा।
चमकता सूर्य ना बन पायेगा ये शेर तो क्या,
मेरी कविता अमर है नाम जिन्दा तो रहेगा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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