बदले जमाने इस तरह

( Badle Zamane is tarah ) 

 

जब मुख़ालिफ़ कैफ़ियत बदले ज़माने इस तरह,

अब लगे है लोग ताकत आज़माने इस तरह।

 

इस तसादुम का शबब लग्ज़िश हो या नाराज़गी

कुछ मुहज़्ज़ब चल दिए उनको सताने इस तरह।

 

पर नहीं, यह ताकते परवाज़ ही है लाज़िमी,

उड़ रहे ऊंचाइयों के वो दीवाने इस तरह।

 

यह उदासी हर कदम मौजूद ,आंखें बोलती

आजकल वो फिर लगे हैं मुस्कुराने इस तरह।

 

पैर का फैलाव चादर से अधिक क्यों ही करें,

लुट गए हैं जाने कितने आशियाने इस तरह।

 

नफरतों से इश्क की नाराज़गी की प्यार से,

चल रहे हैं बख़्त कितने कारखाने इस तरह।

 

दूर वो ही हो गए जो दूर थे मुझसे सदा,

आते हैं वो ख़्वाब में फिर हक़ जताने इस तरह।

 

है नहीं बाबत ज़रूरी जब दिलों की बात हो,

धड़कने हैं धड़कनों के कैदखाने इस तरह।

 

रूठने से ही अगर मसलें सभी हो जाये हल,

हम कभी जाते नहीं ‘याशी’ मनाने इस तरह।

 

Suman Singh

सुमन सिंह ‘याशी’

वास्को डा गामा,गोवा

 

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