बहुजन जागरण चालीसा
बहुजन जागरण चालीसा
01.
❝ कहें गर्व-अधिकार से,नारी दलित यतीम।
नाम नहीं नारा नहीं, धम्म-दीप हैं भीम।। ❞
02.
❝ जन्म हुआ रे भीम का,खुशी महल-खपरैल।
धम्म-घोष है न्याय का, तिथि चौदह अप्रैल।। ❞
03.
❝ समता औ’ सम्मान ही, संविधान की थीम।
सृजन किए अंबेडकर,बोलो जय जय भीम।। ❞
04.
❝ शिक्षित बन संघर्ष करो, रहो संगठित और।
चलो बुद्ध के राह पर, बनो राष्ट्र-सिरमौर।। ❞
05.
*❝ थी मानवता के लिए , मनु की नीति अफीम।*
*नष्ट किए अंबेडकर, बोलो जय जय भीम।।*
06.
*❝ जनमानस कल्याण ही, है जिसका अस्तित्व।*
*माने उसके ज्ञान का , लोहा सारा विश्व।। ❞*
07.
*❝ बाईस प्रतिज्ञा भली, करे जगत कल्याण।*
*हैं अंबेडकरवाद की, मूल मंत्र औ’ प्राण।। ❞*
08.
*❝ बाभन बनिया वैश्य क्या,क्या कुर्मी कुम्हार।*
*दुश्मन से लोहा लिये, पासी खटिक चमार।।❞*
09.
*❝ मनु का ब्राह्मणवाद तो,जल-भुन हुआ अधीर।*
*व्यासपीठ पर बैठ ज्यों, बाँचा कथा अहीर।।❞*
10.
❝ गला काटकर लाश पर, चढ़ा रहे जो फूल।
खत्म करो बनने नहीं, पाये ये विष-मूल।। ❞
11.
*❝ जाति-धर्म के नाम पर, छुआछूत का रोग।*
*नमक छिड़कते घाव पर,सदा मज़हबी लोग।। ❞*
12.
*❝ बाँट चलो हर दर्द को, साझा कर उम्मीद।*
*साथ मनाएँ बैठकर, मिलजुल होली-ईद।। ❞*
13.
*❝ क्या क्रिसमस क्या लोहड़ी,क्या होली क्या ईद।*
*जाति निगलती आ रही, समता की उम्मीद।।❞*
14.
*❝ क्या रिश्ता क्या बन्धुता, जाति गले की फाँस।*
*घुट-घुट कर अब जी रही,मानवता हर साँस।।❞*
15.
*❝ पूज रहे पाथर यहाँ, पाथर – दिल इंसान।*
*जीव-जगत पाथर समझ, पाथर को भगवान।।❞*
16.
*❝ शिक्षा है वो शेरनी, शब्द-अक्षर वो दूध।*
*पिये जो जितना ज्यादा,लंबा टिके वजूद।।❞*
17.
*❝ तिल-तिल मरता रोज़ है,भूखा नंगा जान।*
*जाति नहीं ये गोह है, चबा रही इंसान।। ❞*
18.
*❝ जिस दिन सच्चा आप भी, पढ़ लेंगे इतिहास।*
*हो जाएगा आप ही, खाक अंधविश्वास।। ❞*
19.
*❝ वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।*
*अन्तस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।। ❞*
20.
*❝ खून माँस भी एक है, जाति योनि भी एक।*
*फिर नरेन्द्र हैं क्यों नहीं, सभी आदमी एक ? ❞*
21.
*❝ जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।*
*ब्राह्मण देवता बोलिए, क्यों अछूत हैं सूद ?❞*
22.
*❝ ऊँच-नीच की भावना, छूआछूत का मैल।*
*शिक्षा निष्प्रभावी बनी, जाति-धर्म जड़ बैल।।❞*
23.
*❝ शत प्रतिशत अब साथियों, हुई बात ये सिद्ध।*
*धरती पर दूजा नहीं, मानव जैसा गिद्ध।। ❞*
24.
*❝ पीढ़ी-दर-पीढ़ी डसे, जातिवाद का सर्प।*
*मनु का विष उतरा नहीं,बन बैठा है तर्प।। ❞*
25.
*❝ क्या कबीर रसखान क्या,क्या रहीम रैदास।*
*परिवर्तन आया नहीं, देश जाति का दास।। ❞*
26.
*❝ क्या रहीम रैदास क्या,क्या कबीर क्या सूर।*
*कहें सभी अच्छा नहीं, जातिवाद नासूर।। ❞*
27.
*❝ क्या ललई पेरियार क्या,क्या कबीर चार्वाक।*
*दिए चुनौती तर्क से, कटी ब्रह्म की नाक।। ❞*
28.
*❝ दर्शन सच्चा बुद्ध का , पंचशील है रीढ़।*
*प्रज्ञा करुणा शील से,बनती जग में पीढ़।। ❞*
29.
*❝ कैसी श्रद्धा-भावना, कैसा व्रत-उपवास।*
*मानवता ही जब नहीं,पूजा नहीं परिहास।। ❞*
30.
*❝ जात-पाॅंत के जाल में, उलझा हर इंसान।*
*किंकर्तव्यविमूढ़ है, खो बैठा निज ज्ञान।।*
31.
*❝ पीड़ा देख द्रवित हुए, छोड़ दिए सब पंथ।*
*बुद्ध बने करुणा-धरा, शांति-धर्म के ग्रंथ।।❞*
32.
*❝ बोल उठी हर शोषिता, करे भीम पर नाज़।*
*संविधान से बल मिला, बदली काया आज।।*
33.
*❝ दृष्टि दिये सबको यही, बनकर सन्त फ़कीर।*
*बुद्ध अगर होते नहीं, बुझती क्या जग-पीर? ❞*
34.
*❝ प्रज्ञा करुणा शील है, बुद्ध धम्म-आधार।*
*अत्त दीप ही बुद्ध हैं, अत्त दीप ही सार।। ❞*
35.
*❝ त्रिसरण में जो लगे, साधे मन का ध्यान।*
*बुद्ध वंदना से मिले, अत्त दीप का ज्ञान।। ❞*
36.
*❝ पारमिताएँ दस भली, अति आवश्यक तत्व।*
*ग्रहण करे जो भी स्वयं, प्राप्त करे बुद्धत्व।। ❞*
37.
*❝ प्रज्ञा करुणा शील क्या,सत्य तर्क क्या ज्ञान।*
*भीमाबाई ने जना , चौदहवीं संतान।। ❞*
38.
*❝ बुद्ध दिए जो मूल-मंत्र, सहज त्याग अनुराग।*
*दुख तृष्णा से मुक्ति की, है अष्टांगिक मार्ग।। ❞*
39.
*❝ दृष्टि वचन सम्यक रखो,सम्यक कर्म-विचार।*
*कहे तथागत बुद्ध यह , सुखी रहे परिवार।। ❞*
40.
*❝ सत्य-अहिंसा को बना, धम्म-शिक्षा हथियार।*
*अत्त दीप बनकर करो, सकल सृष्टि उजियार।। ❞*

नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’
नरैना,रोकड़ी,खाईं,खाईं
यमुनापार,करछना, प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश )
समीक्षा :- बहुजन जागरण चालीसा
कवि: नरेन्द्र सोनकर
जागृति ज्योति है बहुजन जागरण चालीसा
गोलेन्द्र पटेल (युवा बौद्ध कवि)
“चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं।
-देसेथ भिक्खवे धम्मं आदिकल्याण मंझे कल्याणं- परियोसान
कल्याणं सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुन्नं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ।”
(अर्थात् हे भिक्षुओं! चलो, भ्रमण करते हुए जाओ — यह बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए,
लोक के प्रति करुणा से प्रेरित होकर, देवों और मनुष्यों के कल्याण, हित और सुख के लिए।
हे भिक्षुओं! तुम धर्म का उपदेश दो — जो आरंभ में कल्याणकारी है, मध्य में कल्याणकारी है और अंत में भी कल्याणकारी है।
वह अर्थपूर्ण है, शब्दों से सुसज्जित है, पूर्णतः परिपूर्ण और निर्मल ब्रह्मचर्य (पवित्र जीवन) को प्रकट करता है।)
उपर्युक्त 40 दोहे युवा कवि नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ द्वारा “बहुजन जागरण चालीसा” शीर्षक से रचा गया है, जो “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” के बौद्ध सिद्धांत पर आधारित एक सामाजिक-धम्मिक चेतना का आह्वान करते हैं। इन दोहों में तथागत गौतम बुद्ध एवं डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों, उनके संघर्षों और उनके द्वारा प्रदत्त संविधान की समता-मूलक भावना को स्वर मिला है।
रचना का भाव है कि नारी, दलित, यतीम—सभी वंचित वर्गों को अपने अधिकारों पर गर्व हो, क्योंकि उन्हें न्याय और समानता का धम्म-दिपक भीम के रूप में मिला। बुद्ध और अंबेडकर की शिक्षाओं का मेल—प्रज्ञा, करुणा, शील—इस काव्य का आध्यात्मिक आधार बनता है, वहीं शिक्षा, संगठन और संघर्ष का मंत्र इसे सामाजिक क्रांति का स्वर प्रदान करता है।
“बहुजन जागरण चालीसा” एक जागृति-ज्योति की तरह बहुजन समाज को आत्मबल और आत्मगौरव के पथ पर प्रेरित करती है, और राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनकर राष्ट्र-सिरमौर बनने का आह्वान करता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ द्वारा रचित बहुजन जागरण चालीसा के ये दोहे बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन, उनके विचारों और उनके द्वारा स्थापित समता, न्याय व सम्मान के सिद्धांतों को गहनता से उजागर करते हैं। ये दोहे न केवल बाबासाहेब के संघर्ष, बौद्ध धम्म के प्रति उनकी निष्ठा और संविधान के माध्यम से समाज में दलित, शोषित व वंचित वर्गों के उत्थान के प्रयासों को रेखांकित करते हैं, बल्कि बहुजन समाज को शिक्षा, संगठन और बुद्ध के मार्ग पर चलकर आत्मनिर्भर व सशक्त बनने का आह्वान भी करते हैं। यह रचना ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के मूल मंत्र को चरितार्थ करते हुए सामाजिक जागृति और समानता का संदेश देती है।
बहुजन जागरण चालीसा के दोहों के केंद्रीय भावार्थ में निम्नलिखित बिंदुओं का समावेश है:
- भीमराव अंबेडकर और बौद्ध धम्म की वंदना
- यह चालीसा डॉ. अंबेडकर को ‘धम्म दीप’ और सामाजिक न्याय का प्रतीक मानती है।
- उनके जन्म (14 अप्रैल) को महलों से लेकर झोपड़ियों तक का उत्सव बताया गया है।
- अंबेडकर का संविधान समता, सम्मान और शिक्षित-संघर्ष-संगठन का मूल मंत्र देता है।
- जातिवाद और ब्राह्मणवाद पर तीखा प्रहार
- मनु स्मृति को अफीम कहा गया है, जिसे अंबेडकर ने खत्म किया।
- जाति-धर्म के नाम पर छुआछूत, शोषण और धार्मिक पाखंडों की आलोचना की गई है।
- कहा गया है कि शिक्षा होने पर भी जातिवाद मिटा नहीं, क्योंकि वह जड़ जमाए बैल के समान है।
- ब्राह्मणों को ऊँचा मानने की प्रवृत्ति पर तीव्र सवाल उठाए गए हैं—“ब्राह्मण देवता क्यों? अछूत क्यों सूद?”
- बहुजन एकता और संघर्ष का आह्वान
- सभी वंचित जातियों (पासी, खटिक, चमार, कुर्मी आदि) को एकजुट होकर शोषण के विरुद्ध लड़ने का आह्वान है।
- “जाति निगलती आ रही समता की उम्मीद” जैसी पंक्तियाँ जाति के घातक प्रभाव को दर्शाती हैं।
- धार्मिक समानता और उत्सव की साझेदारी
- होली, ईद, क्रिसमस, लोहड़ी — सभी त्योहारों को मिलजुल कर मनाने की बात कही गई है।
- मज़हब के नाम पर घाव देने वालों की आलोचना की गई है।
- शिक्षा और बौद्ध धम्म का महत्व
- शिक्षा को “शेरनी का दूध” कहा गया है और धम्म को सत्य, करुणा, प्रज्ञा और अहिंसा का मार्ग बताया गया है।
- त्रिसरण, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग और पारमिता जैसे बौद्ध सिद्धांतों को अपनाने से ही सच्चा बुद्धत्व मिलता है।
- इतिहास, विवेक और आत्मज्ञान की प्रेरणा
- इतिहास पढ़ने और सच्चे ज्ञान से अंधविश्वास मिटाने की बात कही गई है।
- बुद्ध को द्रष्टा-संत और पीड़ा के समाधानकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- समता मूलक समाज की कल्पना
- अंतिम दोहों में “अत्त दीप भव” (स्वयं दीपक बनो, यह बुद्ध वचन है।) के सिद्धांत को अपनाकर पूरी सृष्टि को उजियार करने की प्रेरणा दी गई है।
अर्थात् यह चालीसा डॉ. भीमराव अंबेडकर और बौद्ध दर्शन के प्रति श्रद्धा, सामाजिक समता और मानवता के प्रचार-प्रसार को समर्पित है। यह जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक विषमता के खिलाफ जागरूकता फैलाने का आह्वान करती है, साथ ही शिक्षा, संगठन और संघर्ष के माध्यम से दलित, शोषित और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने का संदेश देती है।
- डॉ. अंबेडकर और संविधान की महिमा: दोहे अंबेडकर को समता, सम्मान और न्याय का प्रतीक बताते हैं। उनके जन्म (14 अप्रैल) और संविधान निर्माण को मानवता के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। उनकी शिक्षाएँ (शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो) और बाईस प्रतिज्ञाएँ सामाजिक परिवर्तन की आधारशिला हैं।
- जातिवाद और ब्राह्मणवाद का विरोध: चालीसा में मनुस्मृति और ब्राह्मणवादी व्यवस्था को मानवता के लिए हानिकारक बताया गया है। जाति, छुआछूत और धार्मिक रूढ़ियों को सामाजिक एकता और मानवता के लिए रोग के रूप में चित्रित किया गया है। यह समाज को इन बुराइयों से मुक्त होने का आह्वान करती है।
- शिक्षा और जागरूकता का महत्व: शिक्षा को शक्ति का स्रोत माना गया है, जो अंधविश्वास और जातिवाद के जहर को नष्ट कर सकती है। इतिहास और तर्क के आधार पर जागरूकता को बढ़ावा देने का संदेश है।
- बौद्ध दर्शन का आधार: बुद्ध के पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, और प्रज्ञा-करुणा-शील को जीवन का आधार बताया गया है। बुद्ध का दर्शन मानवता को दुख और तृष्णा से मुक्ति का मार्ग दिखाता है। ‘अत्त दीप भव’ (स्वयं दीप बनो) का मंत्र आत्मनिर्भरता और आत्मज्ञान का प्रतीक है।
- सामाजिक एकता और मानवता: सभी मनुष्य एक समान हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि कुछ भी हो। दोहे ऊँच-नीच, छुआछूत और धार्मिक कट्टरता को त्यागकर मानवता को अपनाने का आग्रह करते हैं। होली, ईद, क्रिसमस जैसे त्योहारों को मिलकर मनाने का संदेश सामाजिक सौहार्द को दर्शाता है।
- संतों और समाज सुधारकों की प्रेरणा: बुद्ध, कबीर, रहीम, रैदास, तुकाराम, पलटूदास, फुले, शाहूजी, अंबेडकर व पेरियार जैसे संतों और सुधारकों ने तर्क और मानवता के आधार पर सामाजिक कुरीतियों को चुनौती दी। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।
- मानवता का उत्थान: यह चालीसा मानवता को सर्वोपरि मानते हुए अंधविश्वास, पाखंड और हिंसा का त्याग करने का आह्वान करती है। सत्य, अहिंसा और बुद्ध की शिक्षाएँ विश्व को उज्ज्वल बनाने का मार्ग दिखाती हैं।
निष्कर्ष रूप में: नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ द्वारा रचित “बहुजन जागरण चालीसा“ एक क्रांतिकारी बौद्ध-बहुजन घोषवाक्य है, जिसमें डॉ. अंबेडकर, बुद्ध और समता-न्याय की परंपरा को एक साथ बाँधकर शोषितों के लिए मार्गदर्शन और आत्मबल प्रदान किया गया है। यह कविता धर्म, जाति, वर्ण, मजहब आदि के पाखंड को चुनौती देकर एक नव-संवैधानिक समाज की स्थापना का सपना प्रस्तुत करती है।
कुल मिलाकर, यह चालीसा समाज को जातिवाद और अंधविश्वास से मुक्त कर, शिक्षा, तर्क और बौद्ध दर्शन के आधार पर समतामूलक और मानवतावादी समाज की स्थापना का संदेश देती है।
“बहुजन जागरण चालीसा” का भावार्थ/टीका:
01.
❝ कहें गर्व-अधिकार से, नारी दलित यतीम।
नाम नहीं नारा नहीं, धम्म-दीप हैं भीम।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा बताता है कि नारी, दलित और बेसहारा वर्ग डॉ. भीमराव अंबेडकर को केवल एक नाम या नारा नहीं मानते, बल्कि उन्हें धम्म (बौद्ध धर्म) का दीपक, यानी मार्गदर्शक मानते हैं। उनके लिए अंबेडकर अधिकार और गरिमा का प्रतीक हैं, जिनके कारण वे अपने अस्तित्व पर गर्व कर सकते हैं।
02.
❝ जन्म हुआ रे भीम का, खुशी महल-खपरैल।
धम्म-घोष है न्याय का, तिथि चौदह अप्रैल।। ❞
भावार्थ/टीका:
भीमराव अंबेडकर का जन्म केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे शोषित समाज की जीत है। चाहे महलों में रहने वाले हों या झोपड़ियों में—हर वर्ग के लिए यह जन्म न्याय का उद्घोष है। चौदह अप्रैल सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का प्रतीक बन चुकी है।
03.
❝ समता औ’ सम्मान ही, संविधान की थीम।
सृजन किए अंबेडकर, बोलो जय जय भीम।। ❞
भावार्थ/टीका:
डॉ. अंबेडकर द्वारा रचित भारतीय संविधान की आत्मा समता (equality) और सम्मान (dignity) है। उन्होंने संविधान के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार दिलाने की नींव रखी। इसलिए हर न्यायप्रिय व्यक्ति को उनका सम्मान करते हुए जयकार करना चाहिए।
04.
❝ शिक्षित बनो संघर्ष करो, रहो संगठित और।
चलो बुद्ध के राह पर, बनो राष्ट्र-सिरमौर।। ❞
भावार्थ/टीका:
यहाँ अंबेडकर का प्रसिद्ध नारा “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” दुहराया गया है। यह प्रेरणा देता है कि समाज तभी उठ सकता है जब वह शिक्षा से सशक्त हो, संगठित रहे और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करे। साथ ही, बुद्ध के करुणा और ज्ञान के मार्ग पर चलकर समाज राष्ट्र का सिरमौर बन सकता है।
05.
❝ थी मानवता के लिए, मनु की नीति अफीम।
नष्ट किए अंबेडकर, बोलो जय जय भीम।। ❞
भावार्थ/टीका:
मनुस्मृति को “अफ़ीम” कहकर उसकी नीतियों को मानवता-विरोधी ठहराया गया है। डॉ. अंबेडकर ने मनु के जातिवादी और असमानतावादी विचारों को अस्वीकार कर समानता और मानव गरिमा की स्थापना की। इसलिए उनकी जयकार करना एक मानवतावादी कर्तव्य है। (विशेष: कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफ़ीम कहा है।)
06.
❝ जनमानस कल्याण ही, है जिसका अस्तित्व।
माने उसके ज्ञान का, लोहा सारा विश्व।। ❞
भावार्थ/टीका:
डॉ. अंबेडकर का जीवन और चिंतन जनकल्याण पर आधारित था। उन्होंने केवल शोषितों के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए न्याय और समानता का मार्ग प्रस्तुत किया। उनकी बुद्धिमत्ता को विश्व भर में सम्मान मिला — उन्होंने भारत की सोच को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया।
07.
❝ बाईस प्रतिज्ञा भली, करे जगत कल्याण।
हैं अंबेडकरवाद की, मूल मंत्र औ’ प्राण।। ❞
भावार्थ/टीका:
अंबेडकर द्वारा दी गई 22 प्रतिज्ञाएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और जागृति के घोषणापत्र हैं। ये प्रतिज्ञाएँ अंधविश्वास, पाखंड और ऊँच-नीच को अस्वीकार करती हैं और समाज को न्याय एवं समता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
08.
❝ बाभन बनिया वैश्य क्या, क्या कुर्मी कुम्हार।
दुश्मन से लोहा लिये, पासी खटिक चमार।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा सभी जातियों की एकता का आह्वान है। चाहे कोई ब्राह्मण, बनिया, वैश्य, कुर्मी या कुम्हार हो—असली लड़ाई उस शोषक सत्ता के विरुद्ध है जो जाति के नाम पर वंचन करती है। पासी, खटिक, चमार जैसे परंपरागत रूप से पिछड़े समझे जाने वाले समुदाय भी इस संघर्ष में वीरता से सहभागी हैं।
09.
❝ मनु का ब्राह्मणवाद तो, जल-भुन हुआ अधीर।
व्यासपीठ पर बैठ ज्यों, बाँचा कथा अहीर।। ❞
भावार्थ/टीका:
ब्राह्मणवादी व्यवस्था, जो सदियों से ज्ञान और पूजा-पाठ पर एकाधिकार रखती थी, तब बौखला उठी जब वंचित वर्गों ने भी ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया। “अहीर द्वारा कथा वाचन” एक प्रतीक है कि अब ज्ञान और नेतृत्व का अधिकार सबको है — यह पुराने विशेषाधिकारों को चुनौती देता है। (विशेष: इटावा की घटना को याद करें।)
10.
❝ गला काटकर लाश पर, चढ़ा रहे जो फूल।
खत्म करो बनने नहीं, पाये ये विष-मूल।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा पाखंड और हिंसक धार्मिक कर्मकांडों की आलोचना करता है। जो लोग दूसरों को कुचलकर, शोषण करके उनके शवों पर “फूल” चढ़ाते हैं (अर्थात सम्मान दिखाते हैं), उनकी व्यवस्था को जड़ से खत्म करना होगा। यह “विष-मूल” (विषैले मूल कारण) को मिटाने की बात है।
11.
❝ जाति-धर्म के नाम पर, छुआछूत का रोग।
नमक छिड़कते घाव पर, सदा मज़हबी लोग।। ❞
भावार्थ/टीका:
इस दोहे में धार्मिकता के नाम पर किए गए सामाजिक अपराधों की आलोचना की गई है।
जाति और धर्म के आधार पर जो छुआछूत फैलाई गई, वह एक सामाजिक रोग बन गया है और विडंबना यह है कि धार्मिक ठेकेदार इस घाव पर नमक छिड़कने का काम करते हैं — यानी वे पीड़ितों को राहत नहीं, बल्कि और दर्द देते हैं।
12.
❝ बाँट चलो हर दर्द को, साझा कर उम्मीद।
साथ मनाएँ बैठकर, मिलजुल होली-ईद।। ❞
भावार्थ/टीका:
यहाँ सांप्रदायिक सौहार्द और मानवीय एकता का संदेश है। धर्मों के नाम पर बंटने के बजाय, समाज को दर्द और उम्मीद को साझा करने का आह्वान किया गया है।
त्योहारों को साथ मनाकर — होली, ईद जैसे उत्सवों में सहभागिता से ही सामाजिक मेल-जोल और भाईचारा संभव है।
13.
❝ क्या क्रिसमस क्या लोहड़ी, क्या होली क्या ईद।
जाति निगलती आ रही, समता की उम्मीद।। ❞
भावार्थ/टीका:
इस दोहे में यह व्यथा प्रकट की गई है कि भले ही हम अलग-अलग त्योहार मनाते हैं — क्रिसमस, लोहड़ी, होली, ईद — परंतु जातिवाद ने सब कुछ निगल लिया है।
जाति की दीवारें इतनी मज़बूत हैं कि वे समता (equality) की हर आशा को खत्म कर रही हैं। बाह्य उत्सवों से अधिक जरूरी है आंतरिक सामाजिक बदलाव।
14.
❝ क्या रिश्ता क्या बन्धुता, जाति गले की फाँस।
घुट-घुट कर अब जी रही, मानवता हर साँस।। ❞
भावार्थ/टीका:
जातिवाद न केवल सामाजिक संरचना को, बल्कि व्यक्तिगत रिश्तों को भी प्रभावित करता है।
रिश्तेदारी, दोस्ती, बंधुत्व सब कुछ जाति की फाँस में जकड़ा हुआ है।
इस फाँसी के कारण मानवता घुट रही है — हर साँस जैसे पीड़ित हो रही है।
15.
❝ पूज रहे पाथर यहाँ, पाथर – दिल इंसान।
जीव-जगत पाथर समझ, पाथर को भगवान।। ❞
भावार्थ/टीका:
इस दोहे में धार्मिक मूर्तिपूजा के साथ समाज के भावशून्य व्यवहार पर व्यंग्य है।
लोग पत्थर की मूर्तियों को भगवान मानकर पूजते हैं, लेकिन जीवित इंसानों के प्रति पथराई संवेदनाएँ रखते हैं।
यह दोहरा मापदंड दर्शाता है कि मानवता मर गई है और पूजा का केंद्र मृत वस्तुएँ बन गई हैं।
16.
❝ शिक्षा है वो शेरनी, शब्द-अक्षर वो दूध।
पिये जो जितना ज्यादा, लंबा टिके वजूद।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा शिक्षा की शक्ति को महाशक्तिशाली रूप में प्रस्तुत करता है।
शिक्षा को शेरनी का दूध कहा गया है—जो इसे जितना अधिक ग्रहण करता है, उसका अस्तित्व (वजूद) उतना ही सुदृढ़ होता है।
यह अंबेडकरवादी विचार का मूल है—ज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है।
17.
❝ तिल-तिल मरता रोज़ है, भूखा नंगा जान।
जाति नहीं ये गोह है, चबा रही इंसान।। ❞
भावार्थ/टीका:
यहाँ जातिवाद को गोह (मांसभक्षी छिपकली) की उपमा दी गई है, जो इंसान को भीतर से खा रही है।
हर दिन इंसान भूख, नग्नता और अपमान से तिल-तिल मर रहा है, और इसका असली कारण केवल जाति है—न गरीबी, न अल्पविकास, बल्कि संरचित जाति-व्यवस्था।
18.
❝ जिस दिन सच्चा आप भी, पढ़ लेंगे इतिहास।
हो जाएगा आप ही, खाक अंधविश्वास।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा इतिहास को जागृति का साधन मानता है।
जब व्यक्ति सच्चे इतिहास को पढ़ता और समझता है, तब उसके भीतर का अंधविश्वास, भ्रम और पाखंड जलकर राख हो जाता है।
ज्ञान और इतिहास-चेतना ही मानसिक स्वतंत्रता की कुंजी है।
19.
❝ वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।
अन्तस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा कर्म और विचार को जाति से ऊपर रखता है।
जिसके भीतर मानवता नहीं, वह पशु के समान है—चाहे वह ब्राह्मण हो या सूद्र।
यह मानवता की सार्वभौमिकता को प्रतिष्ठित करता है—जाति नहीं, संवेदना और व्यवहार ही असली पहचान है।
20.
❝ खून माँस भी एक है, जाति योनि भी एक।
फिर नरेन्द्र हैं क्यों नहीं, सभी आदमी एक ? ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा जाति व्यवस्था के विरोधाभास पर चोट करता है।
जब मनुष्य का शरीर, रक्त, मांस और जन्म प्रक्रिया समान है, तो फिर जाति का भेद क्यों?
यह प्रश्न समाज को मानव-मूल्य के आधार पर एकता की दिशा में सोचने को विवश करता है।
21.
❝ जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।
ब्राह्मण देवता बोलिए, क्यों अछूत हैं सूद ? ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा जातिगत भेदभाव के दोहरे मापदंडों को उजागर करता है।
जब सभी मनुष्य एक ही धरती की संतान हैं, एक ही मिट्टी से बने हैं, तो कुछ को देवता और कुछ को अछूत क्यों माना जाए?
यह सीधा सवाल करता है—जाति श्रेष्ठता केवल झूठा भ्रम और सामाजिक अन्याय है।
22.
❝ ऊँच-नीच की भावना, छूआछूत का मैल।
शिक्षा निष्प्रभावी बनी, जाति-धर्म जड़ बैल।। ❞
भावार्थ/टीका:
जाति और धर्म का पाखंड इतना गहराया है कि शिक्षा भी अपना असर खो बैठी है।
जातिवादी मानसिकता एक जड़ बैल की तरह है, जो ना समझता है, ना चलता है, ना बदलेगा—
जब तक यह नहीं हटेगा, शिक्षा समाज को बदलने में असमर्थ रहेगी।
23.
❝ शत प्रतिशत अब साथियों, हुई बात ये सिद्ध।
धरती पर दूजा नहीं, मानव जैसा गिद्ध।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा तीखा लेकिन सटीक व्यंग्य है—
मनुष्य अपने ही समाज को, अपने ही लोगों को शोषण, हिंसा और लूट से बर्बाद करता है।
इसलिए कहा गया कि धरती पर सबसे बड़ा गिद्ध कोई है तो वह स्वयं ‘मनुष्य’ है, विशेषकर जब वह जाति-पंथ के नाम पर अन्य मनुष्यों को मारता है।
24.
❝ पीढ़ी-दर-पीढ़ी डसे, जातिवाद का सर्प।
मनु का विष उतरा नहीं, बन बैठा है तर्प।। ❞
भावार्थ/टीका:
जातिवाद को एक ज़हरीले साँप की तरह देखा गया है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी डसता आ रहा है।
मनु का विष (मनुवादी विचारधारा) केवल सामाजिक व्यवस्था को ज़हरीला नहीं बनाता, बल्कि वह अब तर्प बन चुका है—
यानी जिसे लोग अपनी श्रद्धा और तर्क के रूप में ढो रहे हैं और यही खतरनाक है।
25.
❝ क्या कबीर रसखान क्या, क्या रहीम रैदास।
परिवर्तन आया नहीं, देश जाति का दास।। ❞
भावार्थ/टीका:
कबीर, रसखान, रहीम, रैदास जैसे महान संतों और कवियों ने जात-पात के विरुद्ध आवाज़ उठाई,
लेकिन समाज में अब तक वास्तविक परिवर्तन नहीं आया।
भारत आज भी जाति का दास बना हुआ है—जो धर्म, संस्कृति और मानवता की सबसे बड़ी विफलता है।
26.
❝ क्या रहीम रैदास क्या, क्या कबीर क्या सूर।
कहें सभी अच्छा नहीं, जातिवाद नासूर।। ❞
भावार्थ/टीका:
रहीम, रैदास, कबीर, सूरदास जैसे संतों ने अपने युग में जातिवाद की आलोचना की।
सभी ने यह स्पष्ट कहा कि जातिवाद समाज के लिए एक नासूर (गहराता घाव) है।
यह दोहा बताता है कि आध्यात्मिक चेतना जातिवाद को नहीं स्वीकारती, बल्कि उसे सामाजिक बुराई मानती है।
27.
❝ क्या ललई पेरियार क्या, क्या कबीर चार्वाक।
दिए चुनौती तर्क से, कटी ब्रह्म की नाक।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा उन विचारकों और क्रांतिकारियों की ओर संकेत करता है—जैसे ललई सिंह यादव, पेरियार, कबीर, चार्वाक—
जिन्होंने तर्क और तटस्थ विवेक से ब्राह्मणवादी प्रभुत्व को चुनौती दी।
इनकी वैचारिक मुहिम ने पुरोहितवाद की नाक कटाई, यानी उनके एकाधिकार को तोड़ा।
28.
❝ दर्शन सच्चा बुद्ध का, पंचशील है रीढ़।
प्रज्ञा करुणा शील से, बनती जग में पीढ़।। ❞
भावार्थ/टीका:
बुद्ध का दर्शन तर्क, नैतिकता और करुणा पर आधारित है।
पंचशील (पाँच नैतिक नियम)—बुद्ध के धम्म की रीढ़ हैं।
इन मूल्यों से नई मानवता की पीढ़ियाँ तैयार होती हैं जो शांति और समता को आधार बनाती हैं।
29.
❝ कैसी श्रद्धा-भावना, कैसा व्रत-उपवास।
मानवता ही जब नहीं, पूजा नहीं परिहास।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा धार्मिक आडंबरों की आलोचना करता है।
जब जीवन में मानवता नहीं है, तो श्रद्धा, भावना, व्रत, उपवास — सब मज़ाक और ढोंग बन जाते हैं।
धार्मिक कर्मकांडों का कोई अर्थ नहीं, यदि उनमें सच्ची करुणा और संवेदना अनुपस्थित है।
30.
❝ जात-पाँत के जाल में, उलझा हर इंसान।
किंकर्तव्यविमूढ़ है, खो बैठा निज ज्ञान।। ❞
भावार्थ/टीका:
जात-पाँत की जटिल व्यवस्था ने इंसान को भ्रम और असमंजस में डाल दिया है।
वह जान ही नहीं पाता कि क्या सही है, क्या गलत—वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है।
इस उलझन में इंसान अपना आत्मज्ञान और विवेक खो बैठा है।
31.
❝ पीड़ा देख द्रवित हुए, छोड़ दिए सब पंथ।
बुद्ध बने करुणा-धरा, शांति-धर्म के ग्रंथ।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा गौतम बुद्ध के जीवन-संकल्प का भावपूर्ण चित्रण है।
बुद्ध ने संसार की पीड़ा को देखकर धर्म, परिवार और सांसारिक सुखों को त्याग दिया।
वे करुणा और शांति के प्रतीक बन गए और उनके द्वारा प्रतिपादित धम्म दुख से मुक्ति का मार्ग बन गया।
32.
❝ बोल उठी हर शोषिता, करे भीम पर नाज़।
संविधान से बल मिला, बदली काया आज।। ❞
भावार्थ/टीका:
यहाँ यह दर्शाया गया है कि शोषित वर्गों की आत्मा अब जाग उठी है।
हर पीड़ित अब भीमराव अंबेडकर पर गर्व करता है, क्योंकि उन्होंने संविधान के ज़रिए सत्ता, सम्मान और अधिकार दिए।
आज जिनकी “काया” (स्थिति) बदली है, वह अंबेडकर की देन है।
33.
❝ दृष्टि दिये सबको यही, बनकर सन्त फ़कीर।
बुद्ध अगर होते नहीं, बुझती क्या जग-पीर? ❞
भावार्थ/टीका:
गौतम बुद्ध को संत और फकीर के रूप में याद किया गया है, जिन्होंने सबको सही दृष्टि दी।
अगर बुद्ध न होते, तो दुनिया की पीड़ा बुझाई नहीं जा सकती थी।
बुद्ध की शिक्षाएँ जगत के संतापों का उपचार बनीं।
34.
❝ प्रज्ञा करुणा शील है, बुद्ध धम्म-आधार।
अत्त दीप ही बुद्ध हैं, अत्त दीप ही सार।। ❞
भावार्थ/टीका:
बुद्ध का धर्म तीन स्तंभों पर आधारित है—प्रज्ञा (ज्ञान), करुणा (दया) और शील (नैतिकता)।
बुद्ध का उपदेश “अत्त दीप भव” (स्वयं अपना दीपक बनो) इस धम्म का सार है।
यह आत्मनिर्भरता, विवेक और आंतरिक ज्योति का मार्ग सुझाता है।
35.
❝ त्रिसरण में जो लगे, साधे मन का ध्यान।
बुद्ध वंदना से मिले, अत्त दीप का ज्ञान।। ❞
भावार्थ/टीका:
इस दोहे में बताया गया है कि जो व्यक्ति त्रिसरण (बुद्धं, धम्मं, संघं शरणं गच्छामि) में स्थिर होता है और मन को साधता है,
उसे बुद्ध वंदना के माध्यम से ‘अत्त दीप’ का ज्ञान प्राप्त होता है—
यानी वह खुद को प्रकाशित करता है, आत्मबोध पाता है।
36.
❝ पारमिताएँ दस भली, अति आवश्यक तत्व।
ग्रहण करे जो भी स्वयं, प्राप्त करे बुद्धत्व।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा बौद्ध साधना की दस पारमिताओं (दश पारमिता) की ओर संकेत करता है—
दान, शील, क्षमा, धैर्य, पराक्रम, ध्यान, प्रज्ञा आदि वे गुण हैं, जिन्हें जो भी आत्मसात करता है,
वह बुद्धत्व (ज्ञान और मुक्ति की अवस्था) प्राप्त कर सकता है।
यह आत्म-निर्माण और विवेक-निर्माण का मार्ग है।
37.
❝ प्रज्ञा करुणा शील क्या, सत्य तर्क क्या ज्ञान।
भीमाबाई ने जना, चौदहवीं संतान।। ❞
भावार्थ/टीका:
इस दोहे में डॉ. अंबेडकर के जन्म को एक दैवीय घटना के रूप में दर्शाया गया है।
प्रज्ञा (ज्ञान), करुणा (दया), शील (चरित्र), सत्य, तर्क—ये सारे गुण एक ही व्यक्ति में साकार हुए और वह थे भीम राव अंबेडकर, जिन्हें उनकी माता भीमाबाई ने चौदहवीं संतान के रूप में जन्म दिया।
38.
❝ बुद्ध दिए जो मूल-मंत्र, सहज त्याग अनुराग।
दुख तृष्णा से मुक्ति की, है अष्टांगिक मार्ग।। ❞
भावार्थ/टीका:
गौतम बुद्ध ने त्याग और करुणा को सहज जीवन का मूल मंत्र बताया।
उनका अष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, आदि)
मनुष्य को दुख और तृष्णा से मुक्ति का स्पष्ट और व्यावहारिक रास्ता प्रदान करता है।
39.
❝ दृष्टि वचन सम्यक रखो, सम्यक कर्म-विचार।
कहे तथागत बुद्ध यह, सुखी रहे परिवार।। ❞
भावार्थ/टीका:
यह दोहा बताता है कि बुद्ध ने केवल आत्मकल्याण की बात नहीं की, बल्कि सामूहिक और पारिवारिक सुख की भी चिंता की।
जब व्यक्ति की दृष्टि, वाणी, कर्म और विचार सम्यक (सही और संतुलित) होते हैं,
तब परिवार और समाज में सुख-शांति स्थायी हो जाती है।
40.
❝ सत्य-अहिंसा को बना, धम्म-शिक्षा हथियार।
अत्त दीप बनकर करो, सकल सृष्टि उजियार।। ❞
भावार्थ/टीका:
अंतिम दोहा एक उद्घोषणा की तरह है—बुद्ध और अंबेडकर के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा देता है।
सत्य और अहिंसा को धम्म-शिक्षा के हथियार बनाकर जब हम स्वयं ‘अत्त दीप’ (आत्म-प्रकाश) बनते हैं,
तब हम न केवल अपने जीवन को, बल्कि पूरे समाज और सृष्टि को उजियार कर सकते हैं।
सार तत्व:-
“बहुजन जागरण चालीसा” एक सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्रांति का घोष है।
यह अंधश्रद्धा, जातिवाद, धर्माधिकारिता के विरुद्ध खड़े होकर शिक्षा, समता, करुणा और विवेक का एक ऐसा झंडा गाड़ती है,
जिसके नीचे मानवता को सच्चा स्वरूप और दिशा मिलती है।
शब्दों व पदों की उत्पत्ति और व्याख्या :-
- दलित
- उत्पत्ति: संस्कृत धातु ‘दल्’ (तोड़ना, कुचलना) से “दलित” बना है, जिसका अर्थ है: दबाया गया, कुचला गया।
- व्याख्या: भारत की वर्णव्यवस्था में नीच समझे गए वर्गों को यह संज्ञा दी गई। आधुनिक संदर्भ में यह एक सामाजिक-राजनीतिक पहचान है जो उत्पीड़न के विरुद्ध आत्मगौरव और अधिकारों के लिए संघर्ष से जुड़ी है।
- धम्म-दीप
- उत्पत्ति: पालि भाषा में धम्म = धर्म, दीप = दीपक/प्रकाश।
- व्याख्या: बुद्ध का उपदेश: “अप्प दीपो भव” यानी “स्वयं अपने लिए दीपक बनो”। “धम्म-दीप” का अर्थ है: धर्म ही प्रकाश हो, मार्गदर्शक हो।
- धम्म-घोष
- उत्पत्ति: पालि शब्द धम्म (धर्म) और संस्कृत घोष (घोषणा) का समास।
- व्याख्या: बौद्ध धर्म की उद्घोषणा या प्रचार; वह ध्वनि या वक्तव्य जो धम्म का प्रचार करता है।
- जय भीम
- उत्पत्ति: डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम “भीम” से।
- व्याख्या: यह बहुजन आंदोलन का क्रांतिकारी नारा है, जो सामाजिक न्याय, बराबरी और अंबेडकरवादी विचारों का प्रतीक है।
- अंबेडकरवाद
- उत्पत्ति: डॉ. अंबेडकर के नाम से।
- व्याख्या: यह विचारधारा समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित है। इसमें जातिविहीन समाज, मानव अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा निहित है।
- ब्राह्मणवाद
- उत्पत्ति: ब्राह्मण + वाद।
- व्याख्या: यह विचारधारा वर्णव्यवस्था को न्यायोचित ठहराती है और ब्राह्मणों की सामाजिक व धार्मिक श्रेष्ठता को कायम रखने की प्रणाली का प्रतीक मानी जाती है। बहुजन आंदोलनों में यह शोषण और सामाजिक असमानता का स्रोत मानी जाती है।
- क्रिसमस
- उत्पत्ति: अंग्रेजी Christmas, जिसमें Christ (ईसा मसीह) और Mass (पवित्र प्रार्थना सभा) शामिल हैं।
- व्याख्या: यह ईसाई धर्म का त्योहार है जो प्रभु यीशु मसीह के जन्म की स्मृति में 25 दिसंबर को मनाया जाता है।
- बहुजन
- उत्पत्ति: बहु = बहुत + जन = लोग।
- व्याख्या: यह शब्द बुद्ध का दिया हुआ है: “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय”। सामाजिक न्याय के संदर्भ में यह शोषित, वंचित, पिछड़े वर्गों के व्यापक समूह को दर्शाता है।
- जातिवाद
- उत्पत्ति: जाति + वाद।
- व्याख्या: जाति के आधार पर व्यक्ति की श्रेष्ठता-अश्रेष्ठता को मानना और सामाजिक भेदभाव को उचित ठहराना जातिवाद है। यह भारतीय समाज की सबसे पुरानी और गहरी समस्या है।
- पंचशील
- उत्पत्ति: पंच = पाँच + शील = नैतिक आचरण।
- व्याख्या: बुद्ध द्वारा बताए गए पाँच नैतिक नियम:प्राणी हिंसा नहीं करनाचोरी नहीं करनाअसम्मानजनक यौन आचरण नहीं करनाझूठ नहीं बोलनामादक पदार्थों का सेवन नहीं करना
- प्रज्ञा
- उत्पत्ति: संस्कृत धातु ज्ञा से; प्र + ज्ञा = उच्च ज्ञान।
- व्याख्या: बौद्ध धर्म में ‘प्रज्ञा’ का अर्थ है: सही दृष्टि, विवेकपूर्ण ज्ञान जो मुक्ति की ओर ले जाए।
- अष्टांगिक मार्ग
- उत्पत्ति: अष्ट = आठ + अंग = अंग/पथ।
- व्याख्या: यह बुद्ध का बताया हुआ मुक्ति का मार्ग है, जिसमें आठ अंग हैं:सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि।
- संविधान
- उत्पत्ति: सं = साथ मिलकर + विधान = नियम।
- व्याख्या: यह किसी राष्ट्र की सर्वोच्च विधिक व नैतिक पुस्तक होती है जो नागरिकों के अधिकार, कर्तव्य और राज्य की संरचना निर्धारित करती है। भारत का संविधान डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता में बना।
- अत्त दीप
- उत्पत्ति: पालि में अत्त = स्वयं, दीप = दीपक।
- व्याख्या: बुद्ध ने कहा: “अत्त दीपो भव” — “स्वयं दीपक बनो”, यानी आत्मनिर्भर बनो,
किसी बाहरी शक्ति या देवता पर आश्रित मत रहो।
★★★

टीकाकार/ भाष्यकार : गोलेन्द्र पटेल
(पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता – ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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