माँ पर नरेन्द्र सोनकर की ४ कवितायेँ
माॅं कभी दगा नहीं देती
जन्म देती है
शिक्षा-संस्कार देती है
लाड़-प्यार देती है
आचार-विचार देती है
रूप-आकार देती है
पुष्टाहार देती है
घर-परिवार देती है
माॅं संसार देती है
दुश्चरित होने पर भी
लगा लेती है ऑंचल से
हमें भगा नहीं देती
माॅं कभी दगा नहीं देती
मालती देवी
( जिस कोख से मैंने जनम लिया )
करके जतन जतन से पाला
संघर्षों का आदी है
जिस कोख से मैंने जनम लिया
वह कोख मानवतावादी है
न्याय,बन्धुता,शिक्षा इसको
प्रिय समता-आज़ादी है
लड़ता हक़-हुकूक के खातिर
जनता का फ़रियादी है
जिस कोख से मैंने जनम लिया
वह कोख मानवतावादी है
अन्याय,ज़ुल्म के पहाड़ों से
लड़ता यूॅं उन्मादी है
टकरा जाए चट्टानों से
कि इतना फ़ौलादी है
जिस कोख से मैंने जनम लिया
वह कोख मानवतावादी है
छू रही सफलता की मुकाम
नहीं किसी पर लादी है
आज भी आधी इस दुनिया में
नारी की आबादी है
जिस कोख से मैंने जनम लिया
वह कोख मानवतावादी है
चूॅंकि इलाहाबादी है…।
माॅं नहीं थी वह
कुल थी
गुल थी
चमन थी
बुद्धि थी
शुद्धि थी
आचमन थी
घर थी
बसर थी
पिता की हमसफ़र थी
माॅं नहीं थी वह
ज़िन्दगी की पहर थी।
माॅं सृष्टि है
माॅं
सृष्टि है
सृष्टि का वजूद है
आधार है
माॅं
जिंदगी का एहसास है
शोध है
बोध है
माॅं
हौसला है
प्रेरणा है
चेतना है
माॅं
धन है
बल है
ताकत है
माॅं
खुशियों का घर है
स्रोत है
संसाधन है
माॅं
जन्नत है
उपहार है
माॅं
संसार है
संसार की सारी दुनियाएं
माॅं के भीतर हैं
माॅं दुनिया की घर है
माॅं के बिन
घर
उदासी का ऋतु है
आलम है
माॅं बसंत है
माॅं फाग है
माॅं
घर में खुशियों का चिराग है
नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’
नरैना,रोकड़ी,खाईं,खाईं
यमुनापार,करछना, प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश )
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