बसन्त ऋतु
( Basant Ritu )
प्रकृति उत्सव चली मनाने,
पीत वसन काया पर है ।
नव पल्लव की पायल पहने,
राग रंग बसा रग रग है।।
पैर धरे न अब धरती पर,
लाज शरम सब छूट गयी।
ऋतुओं के राजा से मिलने,
चूनर धानी ओढ़ गयी।।
बौरों के आभूषण पहने,
बौरायी सी लगती है।
कोयल की मीठी वाणी में,
गुन गुन करती फिरती है।।
अपनी सुन्दरता के मद में,
संग पवन के झूम चली।
मोहक रूप दिखाती प्रकृति,
हाथ सभी का थाम चली।।
स्वच्छ गगन सुंदर धरती के,
अभिनन्दन का उत्सव है ।
वसुधा की श्रृंगारिकता के,
अभिनन्दन का उत्सव है।।