कष्ट निशा के मन का
कष्ट निशा के मन का

कष्ट निशा के मन का

( Kasht Nisha Ke Man Ka )

 

 

चंदा तुमसे कहां छुपा है,

कष्ट निशा के मन का ।

चलते चलते छुप जाते हो,

करो प्रयास हरन का ।।

 

एक पत्ती जो हिली हवा से,

सिहर सिहर वो उठती।

मूर्तरूप लेती कुछ यांदे,

लहर क्षोभ की उठती ।।

 

आंखो से आशाएं बहती,

टूट रहे है सपने।

हर रस्ते पर छूट रहे हैं,

कहते थे जो अपने ।।

 

आओ चंदा उजियारा ले,

सुन लो गीत व्यथा का।।

चंदा तुमसे कहां छुपा है,

कष्ट निशा के मन का ।।

 

नींद न आई सपने बुनते,

भोर हुई सब टूटे।

छुटपन के संगी साथी,

आगे बढ़ते ही छूटे।।

 

काम न आया कोई चंदा,

दुख में और न सुख में।

रीत काम न आयी कोई,

जीत हार के पथ में।।

 

आस से देखा मुख है तुम्हारा,

चांद बनो पूनम का।

चंदा तुमसे कहां छुपा है,

कष्ट निशा के मन का।।

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रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर

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