वो बज्मे दिल की शान सब -ए- करार थी
वो बज्मे दिल की शान सब -ए- करार थी

वो बज्मे दिल की शान सब -ए- करार थी

( Wo Bajme Dil Ki Shaan Sab -E-Qarar Thi )

 

वो  बज्मे  दिल की  शान  सब -ए- करार थी।
वो गिर गयी हम क्या करें कच्ची दीवार थी।।

 

ये  वाकया  था  ख्वाब था या भरम था मेरा,
दुश्मन के पास भी मेरी जान-ए -बहार थी।।

 

बस अना ही कायम रहा रिश्तों के दरमियां,
सब   कोशिशें   हमारी   बेअसरदार   थी।।

 

छोड़ा   नहीं   हमने  उसे  मरने  के  बाद  भी,
बिल्कुल  बगल  में  उसके  मेरी मजा़र थी।।

 

कितनी कलमों से लिखोगे तुम एक ही गज़ल,
वो  खूबियां  हैं  अब  तक  जो पहली बार थी।।

 

कुछ  लोगों  ने  बताया  है  कि दीप बुझ गया,
अब  शेष  जीत  हो  गयी  है  अन्धकार  की।।

 

?

कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
जमुआ,मेजा, प्रयागराज,
( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :

https://thesahitya.com/saboot-kya-doon-main-tumhara-hoon-ghazal/

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here