
बेजुबां परिवार
( Bezubaan parivar )
साथ में है सभी तो,
लगता है परिवार एक।
बिखर जाऐ अभी तो,
पत्थर लगते है अनेंक।।
विचलित करती है हमें,
पत्थरो से बनी ये तस्वीर।
जरा सोचिऐ तो सही,
ध्यान लगाकर इस और।।
पत्थर से बनें है ये इन्सान,
परिवार है लेकिन बेजुबान।
आईना अपनी कहानी कह रहा,
पिता चाहत की निशानी दर्शा रहा।।
दिख रहा है हमको,
अपनों से बढ़कर कुछ नही।
प्यार बांट रहे सब अपना,
पर लोगों में रह गया ये सपना।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )