
शराबी की दुनिया
( Sharabi ki duniya )
शराबी की दुनिया अब बोतल में बंद है।
मधुशाला डेरा बना बस दारू आनंद है।
नदी नाले कीचड़ में कचरे में वो जाता है।
झूम झूम शराबी राहों में शोर मचाता है।
जमीं बिकती ईमान बिके बीवी तज जाती है।
भाई बंधु कुटुंब कबीला प्रीत कहां लुभाती है।
मयखाने का रस्ता पकड़े हाला होती हाथ में।
लड़खड़ाते पांव चलते बस बोतल साथ में।
टूट चुके अरमान सारे टूटा दिल लेकर वो घूमे।
टूट जाता मद का प्याला बार-बार बोतल चूमे।
वीरान सी जिंदगी लेकर शराबी बल खाता है।
उजड़ा चमन सारा मन ही मन वो बतलाता है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )