Bhagwan Jagannath par kavita

रोम-रोम में बसे हो भगवान जगन्नाथ | Bhagwan Jagannath par kavita

रोम-रोम में बसे हो भगवान जगन्नाथ

( Rom-rom mein base ho Bhagwan Jagannath )

 

हमारे रोम-रोम में बसे हो भगवान आप जगन्नाथ,
हिंदुओं के चारधाम में एक माना जाता जगन्नाथ।
ना कागज़‌ क़िताब फिर भी रखतें सबका हिसाब,
मुझको भी अपने धाम बुलालो पुरी श्री जगन्नाथ।।

 

भारत के उड़िशा में है आपका भव्य मंदिर स्थित,
जो हरि विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित।
जगन्नाथ शब्द का अर्थ होता है जगत का स्वामी,
जहां जगन्नाथ बलभद्र सुभद्रा मुर्ति है सुसज्जित।।

 

सारे विश्व में प्रसिद्ध है यहां का वार्षिक रथ यात्रा,
गौड़, वैष्णव संप्रदाय के लिए पर्व महत्व है होता।
है वैष्णव परंपराऍं व संत रामानंद से जुड़ा मंदिर,
जिसका वर्णन धार्मिक पुराण में भी पाया जाता।।

 

इस मंदिर से जुड़ी है अनेंक कथाऍं एवं चमत्कार,
छप्पन भोग भगवन जगन्नाथ जी के होता तैयार।
प्रसाद हजारों का ही बनातें और लाखों खा जाते,
मिट्टी के सात बर्तनों में महाप्रसाद ‌होता ये तैयार।।

 

मध्य काल से ये उत्सव धूमधाम से मनाया जाता,
पहले नील-माधव के नाम से इनको पूजा जाता।
सबसे पहले माता पार्वती को भोग लगाया जाता,
दुनियां का सबसे बड़ा रसोईघर यह माना जाता।।

 

जो रथयात्रा में हिस्सा लेता मनवांछितफल पाता,
सौ यज्ञ करने के बराबर वो व्यक्ति पुण्य है पाता।
हर साल आषाढ़ में यह रथ-यात्रा निकाला जाता,
१० दिन का आयोजन धूमधाम से मनाया जाता।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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