भगवान के यहाँ देर है, अंधेर नहीं
“बड़ा खूबसूरत कांच का गिलास है। क्या यह आपका है?” दीपक सर ने मेज पर रखे कांच के गिलास को देखते हुए, रोमांटिक अंदाज में शालिनी मैडम से कहा।
“जी सर, मेरा ही है।” शालिनी मैडम ने जवाब दिया।
“मेरा इस पर दिल आ गया है। क्या यह कांच का गिलास मेरा हो सकता है?” दीपक ने शालिनी की आंखों में देखते हुए इशारे से कहा।
दीपक की इस तरह की हरकतें देखकर शालिनी को बड़ा अजीब लगा। वह घबरा गई। वह दीपक की मंशा भाप गई कि दीपक उन पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है। वे स्थिति संभालते हुए बोलीं-
“सर, यह कांच का गिलास मेरी शादी की निशानी है। 31 साल से मैंने इसको सुरक्षित रखा हुआ है। अगर यह गिलास मैं आपको दे दूंगी तो मेरे कांच के 6 गिलासों का सेट खराब हो जाएगा।
इसमें के पांच गिलास घर पर रखे हुए हैं। स्कूल में पानी पीने के लिए मैं इसका यूज़ करती हूँ। इस गिलास को मैं आपको नहीं दे सकती, लेकिन अगर आप चाहो तो मैं आपको इसके जैसा ही बाजार से… दूसरे ग्लास का सेट खरीद कर ला दूंगी।”
“बाजार से तो मैं भी खरीद सकता हूँ जी। अगर यही दे सको तो दे दो। जब पसंद यही आया है तो मैं बाजार का क्यों लूं? वैसे भी जो चीज मैं चाहता हूँ, देर सवेर मैं हासिल कर ही लेता हूँ।” खा जाने वाली नजरों से शालिनी मैडम को देखते हुए दीपक ने कहा।
“मुझे माफ कीजिए सर, मैं आपको यह गिलास नहीं दे सकती। यह कहकर शालिनी दीपक को नजरअंदाज करके स्कूल के बच्चों को पढ़ाने के लिए बैठ गयी। शालिनी द्वारा दीपक को भाव ना दिए जाने पर… 10 मिनट बाद दीपक खुद ही उठकर स्कूल के बाहर चला गया।
शालिनी मैडम एक प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात थी। उनके विद्यालय में हेड मास्टर के अतिरिक्त दो मैडम (पारुल और निशा) और थीं, वे दोनों मैडम भी उस दिन आकस्मिक अवकाश पर थीं, जबकि उनके हैड टीचर मुकुल मेडिकल अवकाश पर थे।
इस तरह चार लोगों के स्टॉफ में आज वे अकेले ही स्कूल की समस्त जिम्मेदारियां का निर्वाहन कर रही थी। मुकुल करीब के एक प्राथमिक विद्यालय में हेड मास्टर के पद पर तैनात था।
हेड मास्टर मुकुल जी से दीपक का खूब मिलना जुलना था। दीपक पहले भी बहुत बार मुकुल की मौजूदगी में स्कूल आता रहता था। शुरुआत से ही शालिनी और विद्यालय की अन्य मैडमों को दीपक का स्कूल में आना-जाना बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि दीपक तीनों मैडमों को देखकर भद्दे, गन्दे कमेंट करता था।
उनकी झूठी तारीफ करने व मज़ाक करने से बाज नहीं आता था। वे तीनों उसको नज़रंदाज़ करके सिर्फ अपने काम से काम रखती थी और बच्चों को पढ़ाती रहती थी। दीपक शालिनी से उम्र में 10 साल छोटा था। उसकी उम्र लगभग 50 वर्ष के लगभग होगी, जबकि शालिनी का रिटायरमेंट करीब था। वे 60 साल की थी। शालिनी की नौकरी काफी देरी से लगी थी। मुकुल और दीपक हमउम्र थे।
आज समस्त स्टॉफ की अनुपस्थिति में दीपक को शालिनी से बात करने का व उनको अपनी मीठी-मीठी बातों में फंसाने का मौका मिल गया था, लेकिन शालिनी ने उसके सारे प्लान पर पानी फेर दिया था। दीपक के जाने के बाद शालिनी ने हेड मास्टर मुकुल जी को फोन किया।
“आपका मित्र दीपक आज स्कूल आया था। अभी-अभी गया है। पहले तो वह आने से पहले हर बार आपसे बात करता था। क्या आज उसने स्कूल आने से पहले आपसे बात नहीं की?”
“आज भी उसका फोन आया था। मैंने तो उसको बताया था कि मैं एक सप्ताह के मेडिकल लीव पर हूँ। फिर भी वह स्कूल आया? बड़ी अजीब बात है।”
“वह मेरे पर डोरे डालने आया था।”
“क्या कह रही हो?”
“हाँ, सच बोल रही हूँ मैं। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि अब यह व्यक्ति कभी स्कूल में आना नहीं चाहिए, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मुझे उसकी शक्ल से भी नफरत है।”
“आप परेशान मत होइए। गुस्सा मत कीजिए। मैं अभी उसकी फोन पर क्लास लगाता हूँ। मैं आपसे वायदा करता हूँ कि अब वह कभी स्कूल नहीं आएगा।” आश्वासन देते हुए मुकुल बोले।
इस घटना के लगभग दो साल तक दीपक स्कूल नहीं आया। फिर एक दिन स्कूल समय में ही खबर मिली कि दीपक जेल चला गया है, उसकी नौकरी छूट गयी है।
दीपक के स्कूल की मैडम सीमा ने दीपक पर जोर जबरदस्ती करके, दबाव बनाकर उसका शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया था तथा इसकी शिकायत सीमा ने सबूत के साथ उच्च अधिकारियों से की थी। जाँच में सारे आरोप सही पाए गए थे। यह खबर विद्यालय स्टॉफ को बताकर मुकुल बोले-
“दीपक रंगीन मिजाज व्यक्ति रहा है, लेकिन वह अपने स्कूल की नवनियुक्त मैडम सीमा को ही ना छोड़ेगा, मौका देखकर स्कूल में ही उसको अपनी हवस का शिकार बना लेगा… इसकी मुझे कतई उम्मीद ना थी। जिस जगह से हमारी रोजी-रोटी चल रही हो, हमारे बच्चे पल रहे हो… उस जगह पर रहकर गंदगी फैलाना कितना सही है?
बड़ा शर्मनाक काम किया है उसने। उसको शिक्षक दोस्त कहते हुए भी शर्म आती है। हजार बार उसको समझाया कि इस तरह लड़कियों/औरतों को देखकर लार टपकाना बहुत गलत है।
जब खुद की इतनी सुंदर बीवी है, बालक-बच्चे हैं… फिर इस तरह गंदी हरकत करने का क्या औचित्य है? मेरी उसने एक न मानी। उसको करना वही होता था जो उसने मन में ठान रखा होता था।
उसकी इस गन्दी हरकत के कारण, उस दिन स्कूल की घटना सुनकर मैंने उससे दूरी बना ली थी। देर-सवेर एक न एक दिन उसको उसके कर्मों की सजा मिलनी ही थी। भगवान के यहाँ देर है, पर अंधेर नहीं।”
“सर जी, दीपक के साथ जो हुआ… बिल्कुल सही हुआ है। यह खबर सुनकर मेरे मन को बड़ा सुकून मिला है। उस दिन जब वह आपके पीछे स्कूल आया था तो मैं सहम गई थी।
उसकी बातों/हरकतों से मुझे डर लग रहा था। उस बदतमीज ने मेरी उम्र का बिल्कुल भी लिहाज ना करके… मुझ पर लाइन मारने की कोशिश की। दीपक जैसे बदतमीज लोगों का कोई ईमान-धर्म नहीं होता। इनको सिर्फ अपनी अय्याशी के लिए लड़की या औरत… जो भी मिल जाये… चाहिए।
इन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनकी उम्र क्या है? वह उनकी बेटी की उम्र की है या माँ की उम्र की? अगर लड़की या औरत का मुँह दिखाई न दे… और इनका वश चले तो ये लोग अपनी बहन-बेटी को भी न छोड़ें। इनके लिए बस अपनी कामवासना की हवस मिटाना ही जरूरी है।
ये लोग इस सिद्धांत पर कायम रहते हैं- पानी चाहे जैसा भी हो आग बुझाने के काम तो आता ही है और हर उम्र की लड़कियों/औरतों पर अपनी गलत निगाह रखते हैं। विचारणीय प्रश्न यह है कि दीपक अपने एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका है।
नाती-पोते वाला है। फिर भी बदतमीजी में उसकी कोई कमी नहीं आयी। अब समाज में, परिवार में उसकी क्या इज्जत रह गई होगी? सच कहूँ तो मुझे बड़ा सुकून मिला है उसके जेल जाने और नौकरी चल जाने पर।
ऐसे लोगों को टीचर कहलाने का भी कोई हक नहीं है… जो समाज और बच्चों के समक्ष आदर्श व्यक्तित्व प्रस्तुत न कर सके। इसी खुशखबरी में यह लीजिए सर… बेसन का घर का बना हुआ लड्डू और मुँह मीठा कीजिए।” अपने बैग की जेब से लड्डू निकाल कर मुकुल जी को और बाकी दोनों महिला अध्यापकों को लड्डू देते हुए शालिनी जी ने खुशी से कहा।
आज शालिनी मैडम की खुशी देखते ही बन रही थी।
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यह कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि समाज में ऐसे लोगों को स्थान नहीं दिया जाना चाहिए जो अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करके महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। दीपक की कहानी एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति की गलत हरकतें उसके लिए मुसीबत का कारण बन सकती हैं।
इस कहानी में शालिनी मैडम की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, जिन्होंने दीपक की गलत हरकतों का सामना करने के लिए हिम्मत दिखाई और उसके खिलाफ आवाज उठाई। यह कहानी महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।
इस कहानी का अंतिम संदेश यह है कि भगवान के यहाँ देर है, पर अंधेर नहीं। यह संदेश हमें यह याद दिलाता है कि गलत कामों का परिणाम हमेशा बुरा होता है, और सच्चाई और न्याय की जीत होती है।
लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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