भूख | Safalta ki Bhookh par Kavita
भूख
( Bhookh )
चाहे हो दु:ख लाख
पालो भूख आप
बढ़ने की पढ़ने की
आसमां छूने की।
भूख बड़ी चीज़ है!
भूख ही नाचीज़ को चीज बनाती है
वरना यह दुनिया बहुत सताती है
बहुत रूलाती है
सच को भी झुठलाती है।
अधिकारों से भी रखती हमें वंचित
मस्तिष्क इनका बहुत ही है संकुचित
याद रखो !
बाबा साहब हों या ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
उन्हें उनकी भूख ने ही पहुंचाया उस मुकाम।
एक ने देश के लिए रचा संविधान
दूजे ने मिसाइलों को दी नई उड़ान
ना उनमें रहती ललक ना वो होते सजग?
तो कैसे लड़ पाते?
अंतरिक्ष में कैसे पहुंचाते?
सैटेलाइट्स बड़ी बड़ी!
दो महानायकों को सलाम करती आज दुनिया घड़ी घड़ी।
शिक्षा स्वतंत्रता सामाजिक न्याय व समता के लिए-
बाबा साहब ने लड़ीं लड़ाईयां बड़ी बड़ी।
लड़कर दिलाए पिछड़ों को अधिकार,
उनके पदचिन्हों पर चलने की कोशिश करो यार;
ना करो आपस में तकरार।
भूख रखो बरकरार,
क्रांति की शांति की
समृद्धि की समुन्नति की
सौहार्द और भाईचारे की
तभी यह दुनिया गर्व हम पर करेगी।
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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