भूत प्रेत : कितना सत्य कितना असत्य
भाग : 3
वर्तमान समय में देखा जाए तो भूत प्रेत की मान्यता से लगभग सारा संसार जकड़ा हुआ है । किंतु भूत प्रेत आदि क्या है? कैसे हैं ? या नहीं हैं? इस विषय में कोई प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक तथ्य तक नहीं पहुंच पाया है । इसीलिए समाज में तरह-तरह के भूत- प्रेत के नाम पर नौटंकीया चलती रहती हैं।
देखा गया है की कुछ लोग स्वार्थ के बंसीभूत होकर जनसाधारण को ठगने के लिए भूत प्रेत का सहारा लेते हैं । जनता में कल्पित भय बनाकर जान माल की हानि करते हैं।
भूत प्रेत की जो छवि हमारे मानस पटल पर व्याप्त है उसकी वास्तविक सत्ता कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती। भूत बीते हुए समय को कहते हैं और प्रेत मृतक शरीर (शव) को कहते हैं। वैसे अग्नि वायु जल पृथ्वी आकाश नामक पंच महाभूत होते हैं इन्हीं से हमारा शरीर बनता है।
वर्तमान समय में इस वैज्ञानिक युग में भी जहां हम चांद पर पहुंच चुके हैं वहीं अधिकांश अशिक्षित तथा कुछ शिक्षित लोग भी भूत प्रेत नामक काल्पनिक अदृश्य शक्ति का अस्तित्व मानते हैं।
महिलाएं प्राय: अंधविश्वासी होती हैं। वह अपने बच्चों तथा परिवार के अन्य लोगों पर भी इस प्रकार का संस्कार डालती हैं कि कुछ लोग मन में भूत -प्रेत की कल्पना लिए रहते हैं ।यह संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों में चलता रहता है।
यही कारण है कि समाज में बहुत से व्यक्ति प्रेत बाधाओ से अपनी रक्षा के लिए गंडे ताबीज आज भी बनवाकर पहनते हैं । कोई मानसिक या शारीरिक रोग होने पर उसे भूत लीला या प्रेत बाधा समझा कर ओझा सोखा सयानो के यहां दर-दर की ठोकरे खाते हैं या झाड़ फूंक करवाते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन भर दुख पाते हैं।
कोई ओझा सोखा ऐसे रोगियों को भस्म अर्थात राख में दवाई मिलाकर खाने को देते हैं तथा उसके प्रभाव से रोगी के ठीक हो जाने पर अपने तंत्र मंत्र या गंडे ताबीज के ही प्रभावशाली होने के लिए डींग हांकते हैं। इससे रोगी और उसके परिजन का भूत प्रेत के प्रति और अधिक विश्वास बढ़ जाता है।
यदि सही इलाज ना हो पाने के कारण ऐसा रोगी मर जाता है तो ओझा सोखा या मौलवी कह देते हैं की बहुत बड़ा भयंकर था इसलिए हम उसे जीत नहीं पाए । वह अभी और भी खतरा पैदा कर सकता है । अतः उसकी शांति के लिए तंत्र-मंत्र करवा लीजिए।
इस प्रकार अंधविश्वासी लोग जीवन भर उसके ठगाई में आते रहते हैं और चालाक व धूर्त लोग उन्हें ठग कर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।
अंधविश्वास से ग्रस्त साधारण जनता यह मानती है कि भूत प्रेत या शैतान आदि नाम की कुछ अदृश्य शक्तियां होती हैं जो कुछ व्यक्तियों पर अपना अधिकार जमा लेती है । उन्हें परेशान करती हैं या उनसे मनमाने संभव अथवा असंभव चमत्कार कार्य करवाते हैं।
देखा गया है कि भूत प्रेत से पीड़ित व्यक्ति अपने होश में नहीं रहता है और यह अदृश्य शक्तियां उसे पर सवार हो कर उसके शरीर में प्रवेश करके उसके माध्यम से अपनी बात कहती रहती हैं।
कभी-कभी देखा गया है कि किसी घर में भी भूत प्रेत ब्रह्म या जिन्न शैतान अपना अधिकार जमा लेते हैं। ऐसे घर में अनेक अनहोनी , आश्चर्यजनक घटनाएं होने के बात भी कही जाती हैं। यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति ऐसी घटनाओं के गहन जांच करें तो उसके रहस्य की पोल खुलने में कुछ भी देर नहीं लगती है।
देखा गया है की कभी-कभी तो घर को भूतहा समझ कर उसमें रहने वाले लोग उस घर को छोड़ देते हैं और उसे आधे पौने दाम पर बेच देते हैं। इससे घर बेचने वाले को बहुत बड़ी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है ।
ऐसा घर खरीदने वाला यदि अंधविश्वासी होता है तो घर शुद्ध कराने के लिए ओझा सोखा या मौलवी की शरण में जाता है । वे लोग उसे मोटी रकम ऐठकर उसे अच्छा खासा चूना लगाते हैं।
हमारे जानकारी में भी हमारे गांव में ऐसी कई घटनाएं हो चुके हैं। भूत प्रेत के शिकार अशिक्षित ही नहीं बल्कि शिक्षित व्यक्ति भी हो जाते हैं । उसका कारण यह है की बचपन से उन्हें भूत प्रेत की कहानी सुनाई जाती हैं ।
अमुक स्थान पर न जाना वहां भूत प्रेत रहते हैं। इस प्रकार के निर्देश दिए जाते हैं। यह संस्कार जीवन भर उनके मन में बना रहता है । शिक्षा के माध्यम से इस प्रकार के अंधविश्वास को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है । यही कारण है कि शिक्षित लोग भी भ्रम के शिकार होकर अपना धन गवा बैठते हैं।
ऐसे शिक्षित अंधविश्वासी लोगों के लिए ही अशिक्षित लोग भी कहते हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी भूत-प्रेत मानते हैं इसलिए भूत-प्रेत अवश्य होता है।
अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत के मानने वाले परिवारों में कलह ज्यादा होती है। जब किसी व्यक्ति को कोई मानसिक या शारीरिक रोग हो जाता है और वह उस रोग का कारण भूत लीला या प्रेत लीला समझ कर उसके निवारण के लिए किसी ओझा सोखा या मौलवी आदि के पास जाता है तब उसे ठीक कर देने का दावा करने वाले ओझा सोखा मौलवी आदि उसे कहते हैं कि तुम्हारे अमुक निकट संबंधी भाभी भाई पड़ोसी या कोई स्त्री पुरुष ने भूत कर दिया है।
ऐसा कह कर भूत उतारने का पेसा करने वाले पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार से खूब धन तो ऐंठते ही हैं। निकट के रिश्तों में भी सदा सदा के लिए स्थाई दरार पैदा कर देते हैं।
अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत के नाम पर कमाई करने वाले ना जाने कितने परिवारों में फूट डालकर घर तबाह कर दिया।
वास्तव में भूत प्रेत और जिन्न शैतान आदि नाम से प्रचलित अदृश्य काल्पनिक शक्तियों की मान्यता राष्ट्र , समाज, परिवार के लिए बहुत ही हानिकारक है। ऐसी मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक, शास्त्रीय या फिर तार्किक आधार नहीं है।
आता समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि ऐसी मान्यताओं को वह लोगों में समझाने का सही रूप में प्रयास करें। बच्चों के अंदर भूल से भी इस प्रकार की चर्चा ना करें। विद्यालयों में भूत प्रेत की सत्यता एवं असत्यता पर चर्चा की जाए। जो बच्चे गंडे ताबीज आदि पहन कर आए हो उनकी वास्तविकता उन्हें बताई जाए ।
जिससे वह बचपन से ही उनके अंदर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके।
भाग : ४
जैसा कि आम धारणा है की भूत प्रेत लोगों को परेशान करते हैं। कुछ लोग शास्त्रों का सहारा लेकर अपना उल्लू सीधा किया करते हैं। ऐसे में भूत प्रेत के बारे में हमारे शास्त्रों में क्या कहा गया है आज इस पर चिंतन करेंगे-
उपनिषद् आदि में ‘भूत’ शब्द प्राणी अथवा जीव के लिए प्रयुक्त हुआ है। अतीत , विगत या बीते समय के लिए भी भूत का प्रयोग होता है। स्थूल जगत के निर्माण में अव्यक्त प्रकृति से घनीभूत हुए पंच तत्वों को भी पंच महाभूत कहा जाता है। जो प्राणी मृत्युपरांत सूक्ष्म शरीर धारण कर प्रेत योनि में जाते हैं उन्हें भी भूत कहते हैं।
गीता २.२८ में भगवान कहते हैं– हे भारत ! सभी प्राणी जन्म से पूर्व अव्यक्त हैं ,बीच में व्यक्त होते हैं और मृत्युपरांत अव्यक्त हो जाते हैं।
ईशोपनिषद -७ में कहा गया है — जिस साधक को सभी प्राणी आत्मभूत अनुभूत होते हैं , उस एकत्व की अनुभूति करने वाले साधक को मोह शोक नहीं रहता ।
गीता १५.१६ में जीव के रूप में भूत का उल्लेख किया गया है-
वस्तुत संसार में दो प्रकार की सृष्टि है क्षर और अक्षर। सभी परिवर्तनशील यहां तक जीव जगत भी क्षर है किंतु जो सदैव एक सा रहता है कूठस्थ है वह अक्षर है।
प्रख्यात कोष ग्रंथ वाचस्पत्यम के अनुसार-
पंचानां तत्वानाम समाहार: पंचसु भूतेशु स्वरोदय:।
यहां भूत का अर्थ तत्व से लिया गया है।
भूत शब्द ‘भू’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय होने से बनता है . इसलिए भूत शब्द का अर्थ हो चुका या बीता हुआ होता है ।स्पष्ट है कि जो पहले होकर फिर ना रहे उसका नाम भूत है। भूत का अर्थ बीता हुआ होने के कारण ही बीते हुए समय को भूतकाल कहा जाता है।
यदि कोई व्यक्ति पहले किसी पद पर रहा हो और बाद में ना रहे तो उसे भूतपूर्व पहले हो चुका कहते हैं। जैसे- भूतपूर्व प्रधान भूतपूर्व मंत्री भूतपूर्व मुख्यमंत्री आदि।
उपरोक्त उदाहरण से हमने देखा कि भूत शब्द का अर्थ कहीं भी मृत व्यक्ति से नहीं लिया गया है। परंतु फिर भी हजारों वर्षों से एक अदृश्य भय भूत के बारे में समाज में भर दिया गया है।
कभी-कभी हिस्टीरिया नामक रोग होने पर उसे भूत प्रेत मान लिया जाता है। क्योंकि इस तरह के रोग ग्रस्त स्त्री को दूसरे लोग बात करते और संकेतों से सहज अपनी और आकृष्ट कर लेते हैं। इसी कारण ओझा सयाने आदि लोग जब इस रोग को भूतादि का आक्रमण बता कर रोगी से कोई प्रश्न करते हैं तो वह उनकी हां में हां मिलाती चली जाती हैं।
हिस्टीरिया रोग मुख्त: असफल प्रणय संबंध, प्रेमी से मिलने में बाधा एवं पुरुष का लंबे समय तक स्त्री से दूर रहने पर भी यह रोग हो जाता है ।
भूत प्रेत की समस्या बंध्या स्त्री में ज्यादा हो पाए जाते हैं। यदि कोई होती स्त्री भूत प्रेत से ग्रस्त हो तो बच्चे होने पर ठीक हो जाती है। मेरे देखे ऐसी बहुत सी स्त्रियां ठीक हुए हैं। बच्चे होने के पूर्व उनकी रात रात भर ओझाई होते थे, मियां मजार दरगाह आदि का चक्कर लगाती थी लेकिन बच्चा होने के पश्चात वह पूर्ण स्वस्थ रहने लगे।
भूत प्रेत की समस्या प्रायः धन संपन्न एवं सुविधा भोगी स्त्रियों को ज्यादा होती है। कामुक, आलसी अथवा कमजोर स्त्रियों को ही भूत प्रेत की समस्या ज्यादा होती है। जिन औरतों को घर गृहस्थी के काम ज्यादा नहीं करना पड़ता , जो अपना समय बनाव श्रृंगार एवं गप शप में ज्यादा बिताते हैं ।
जो अधिक भावुक , ईर्ष्यालु और उत्तेजक स्वभाव की होती हैं। वे इस रोग की शिकार शीघ्र बन जाते हैं । गरीब, श्रमिक अथवा घर गृहस्थी के काम में लगे रहने वाली औरतों की यह समस्या बहुत कम होती है।
प्रायः देखा गया है कि भूत प्रेत की समस्या से ग्रसित रोगी की जीवनचर्य उन्मादी जैसी हो जाती है। इससे रोगी के अंतःकरण में व्याप्त अनसुलझे डर भय तथा भावनात्मक आवेगों के ज्वार के चलते उनका मन असाधारण रूप से उत्तेजित और असंतुलित हो जाता है। साथ ही उसके संवेदनाओं, नाड़ी तंत्र तथा पाचन तंत्र के क्रियाकलापों में भी असामान्य बदलाव दिखलाइ पड़ता है । हालांकि शारीरिक रूप से वह बिल्कुल स्वस्थ होती है।
भूत प्रेत के वहम से ग्रसित स्त्री जब अकेले या अपने परिजनों से दूर होती है या गहरी निद्रा में होती है तो सामान्य रहती हैं। लेकिन जैसे वह अपने परिजनों के बीच आती है वैसे ही उनमें उन्माद के लक्षण प्रकट होने लगता है।
यह इस रोग का मुख्य लक्षण है। क्योंकि भूत प्रेत के वहम से ग्रसित स्त्री जाने अनजाने जो कुछ भी करती है लोगों को दिखाने हेतु करती है । जबकि कभी-कभी तो उसके स्वयं के लिए भी कष्ट दायक या घातक सिद्ध होता है।
देखा गया है कि भूतोंन्माद से ग्रसित रोगी अक्सर बचपना करती है । वह चाहती है कि लोग उसे बीमार मानकर उसके साथ काम करें । बीमारी का बहाना करके वह दूसरों पर अधिक आश्रित होना चाहता है तथा खुद मेहनत से बचता है ।
उसका भोलापन उसके लिए ढाल बन जाता है। ऐसे रोगी स्वार्थी तथा आत्म केंद्रित होने लगते हैं । किंतु उनकी कोशिश स्वयं को एक सामाजिक धार्मिक कार्यकर्ता तथा भावुक प्रकृति के व्यक्ति के रूप में पेश करने की होती है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत प्रेत को ऊपरी बवाल नहीं बल्कि एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसका सही रूप से यदि इलाज किया जाए तो वह ठीक हो जाता है। अतः आवश्यकता है कि हमें भूत प्रेत के नाम पर खुलने वाले दुकानों से बचना चाहिए।
अतः भूल से भी ना तो हमें कभी किसी ओझाई सोखाई के चक्कर में फंसना चाहिए। ना ही मजारों दरगाह आदि के चक्कर में फंसना चाहिए। ऐसे लोगों का उचित इलाज कराना चाहिए।
नियमित रूप से योगासन, प्राणायाम ध्यान एवं गायत्री मंत्र आदि के जप से यह बीमारी जड़ से ठीक हो जाती है।
इसलिए हमें चाहिए कि हम स्वयं भूत प्रेत के वहम से बचे और अपने समाज को बचाने का प्रयास करें।
भाग : ५
समाज में व्याप्त रूढ़ियों और पाखंड के नाम पर जहां देखो वहीं पर नई नई दुकानें खुली हुई है। उनमें भूत प्रेत आदि के नाम पर भी अनेकानेक दुकानें हैं। इसमें भी भूत प्रेत, ब्रह्म, पिचास, चुड़ैल, जिन्न, शैतान आदि नाम से लोगों को भ्रमित कर लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है।
आइए हम आपको बताते हैं कि वह क्या होते हैं —
१-भूत — जैसे कि पूर्व में बता चुके हैं कि भूत शब्द का अर्थ प्राणी होता है। भूत का अर्थ बीता हुआ होने के कारण ही बीते हुए समय को भूतकाल कहा जाता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत शब्द का अर्थ जीवित प्राणी से लिया जाता है, मृतक व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है।
२–प्रेत –
प्रेत का अर्थ मरा हुआ व्यक्ति से लिया जाता है। मुख्यतः प्रेत एवं पिचाश योनियों केवल काल्पनिक है, इनका कोई अस्तित्व नहीं होता है। सच यह है कि दुनिया में प्रेत नाम की कोई योनि नहीं होती हैं।
३-चुडैल —
भूत को स्त्रीलिंग में भूतनी कहते हैं। गंवई भाषा में उसे ही चुड़ैल कहते हैं। पहले चुड़ैल शब्द का अर्थ झगड़ालू स्वभाव के और गंदे रहन-सहन वाली स्त्री के लिए किया जाता था। बाद में अंधविश्वास से लोगों ने भूतनी के लिए ‘चुड़ैल’ शब्द का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया।
किसी कारण से देखा गया है कि भयभीत हो जाने पर मनुष्य अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है । ऐसी स्थिति में उसकी कल्पना के अनुसार भ्रम वश उसे कोई आकृति भी दिखाई पड़ सकती है । यदि यह आकृति स्त्री की होती है तो वह व्यक्ति उसे चुड़ैल समझ लेता है ।
झाड़-फूंक करने वाले भी उसे चुड़ैल ने पकड़ लिया ऐसा कहने लगते हैं।
तर्कशील और बुद्धिमान लोग ऐसी किसी भी काल्पनिक शक्ति से भयभीत नहीं होते हैं । ऐसे लोगों को भूत प्रेत चुड़ैल आदि पकड़ते ही नहीं क्योंकि वह जानते हैं कि ऐसी कोई अदृश्य शक्ति होती ही नहीं।
बचपन में हम लोगों ने सुना है कि चुड़ैल सफेद कपड़े पहने होती हैं और उसके पैर उल्टा होता है आदि। ऐसी छवि बड़े होने पर भी मन में बने रहते हैं जिसका प्रभाव आजीवन हमें झेलना पड़ता है।
मैंने देखा है हमारे गांव में हिंदुओं में भूत प्रेत आदि उतारने के लिए कुछ सयाने लोग होते थे जो किसी के भूत प्रेत होने पर उतारा करते थे।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि चुड़ैल आदि मानसिक वहम के अलावा कुछ नहीं होता है।
४-पिचास —
अधिकांश देखा गया है कि ओझा सोखा आदि लोग भूत प्रेत की जगह पिचाश आदि कहकर उसे और डरा देते हैं।
पिशाच का अर्थ मुख्य रूप से मांस खाने वाले को कहते हैं। पूर्व काल में जो व्यक्ति मांस खाता था उसको लोग पिचाश कहा करते थे। वास्तविकता यह है कि पिचाश नाम की कोई योनि नहीं होती है।
वास्तविक पिचाश तो वह ओझा, सोखा या तांत्रिक स्वयं है जो बकरा आदि पशुओं की बलि चढ़ाते हैं उसका मांस स्वयं खाते हैं। समाज को चाहिए कि वह ओझा सोखा , तांत्रिक आदि पिचाशो से बचकर रहे।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि सभी मांस मछली अंडे आदि मांसाहार को खानें वाले ही पिचास है।
५-ब्रम्हा —
देखा गया है कभी-कभी ओझा और तांत्रिक लोग भूत के स्थान पर ब्रह्म का पकड़ना अथवा ब्रह्मा का उपद्रव होना भी बताते हैं।
ईश्वर को भी ब्रह्म कहा जाता है। सभी धार्मिक ग्रंथो में ब्रह्म शब्द का प्रयोग ईश्वर या परमात्मा के ही अर्थ में हुआ है।
इसमें अब विचारणीय बात यह है कि क्या परमात्मा किसी व्यक्ति के ऊपर आने अथवा सवार होता है। देखा गया है कि लोगों को ठगने वाले लोग चालाकी से यह कहते हैं कि जब कोई ब्राह्मण जाति का व्यक्ति किसी दुर्घटना के कारण या हत्या कर दिए जाने से मरता है तब वह ब्रह्म या ब्रह्म राक्षस की भूत जैसी अदृश्य योनि में चला जाता है।
अतः यह स्पष्ट होता है कि ब्रह्मा नाम की कोई भूत जैसी अदृश्य शक्ति नहीं होती है। यह सब मनुष्य को बहकाने के सिवा कुछ भी नहीं है।
बहुत आश्चर्यजनक बात यह है कि अंधविश्वासी हिंदुओं के ऊपर ही भूत प्रेत जिन्न शैतान आदि का प्रकोप होता है किंतु मुसलमान के ऊपर भूत प्रेत का प्रकोप कभी नहीं होता है। यही कारण है कि मजार दरगाह आदि पर भी हिंदू ही सबसे ज्यादा भूत प्रेत आदि उतरवाने जाता है।
इसका कारण यह है कि मुसलमान मौलवी या मुल्ला के पास हिंदू अपना दुखड़ा रोने जाता है और कोई परेशानी होते हैं तो उससे राय लेता है। लेकिन कोई भी दुनिया का मुसलमान किसी भी हिंदू ओझा सोखा या तांत्रिक से कभी कोई राय नहीं लेता ,ना ही उसे अपनी कोई परेशानी दिखाता या बताता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि हिंदू बिना पेंदी के लोटे की तरह किसी भी तरफ लुढ़क सकता है । उसे जो चाहे जैसा भरमा देता है और वह भरम जाता है।
इसी प्रकार से समाज में शहीद बाबा नाम से विभिन्न प्रकार की मजारे बनी हुई हैं। जहां पर या भ्रम फैला दिया जाता है कि इसकी पूजा करने और इस पर चादर चढ़ाने से शहीद बाबा खुश होकर मांगी मुरादे अर्थात मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।यदि वे नाराज हो जाए तो हानी भी पहुंचा सकते हैं । किसी किसी व्यक्ति के ऊपर शहीद बाबा की सवारी आने का भी नाटक किया जाता है।
अक्सर देखा गया है कि यह मजारे अवैध जमीन का कब्जा करने के लिए या चढ़ावा हड़पने के लिए झूठी ही बनवाया जाता हैं।
मुसलमानों के मत में अपने मजहब को बढ़ाने के लिए युद्ध जिहाद करना शबाब पुण्य माना जाता है। जो मुसलमान इस प्रकार के युद्ध में अन्य मत वाले को को मारने में सफल हो जाते हैं वे गाजी कहे जाते हैं और जो ऐसे युद्ध में मार दिए जाते हैं वे शहीद कहे जाते हैं।
ऐसे ही प्रसिद्ध मजार उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में गाजी मियां की है और उसी का छोटा रूप प्रयागराज के सिकंदरा में है। जहां पर कुछ हिंदुओं ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे मच्छर टूट पड़े हो। उन्हें कभी आभास भी नहीं होता है किस कुछ होता भी है या नहीं होता है। बस भेड़ चाल की तरह पीछे-पीछे लगे रहते हैं।
ऐसी मजारों में देखा है कि जहां वे दफनाया जाते हैं उसके कब्र पर पक्की मजार बनवा कर धूर्त मुसलमान लोग उसे पूजना शुरू कर देते हैं और नादान हिंदुओं से पुजवाना प्रारंभ कर देते हैं । उसके महत्व को बनाए रखने के लिए शहीद बाबा की सवारी आने के स्वांग किए जाते हैं । इस प्रकार की पूजा से कुछ होता भी है या नहीं कोई हिंदू इस पर कभी विचार नहीं करता।
मूर्ख हिंदुओं को सोचना चाहिए कि जो व्यक्ति जीवित रहने पर अपने शत्रुओं द्वारा मारा गया वह मरने के बाद किसी की क्या बना या बिगाड़ सकता है। लेकिन मनुष्य जब एक बार इस प्रकार के भ्रम में पड़ जाता है तो उसे निकलना बड़ा मुश्किल लगता है।
अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत को अपना व्यवसाय का आधार बनाने वाले ओझा सोखा और मौलवी आदि लोग अपने भक्तों को यह समझाते हैं कि तर्क नहीं करना चाहिए ।
तर्क वितर्क करने वाले की बड़ी हानि होती है। जो लोग ऐसे विषयों पर तर्क करते हैं उनको अविश्वासी और श्रद्धा हीन कह कर उनका मजाक उड़ाया जाता है ।इसीलिए धर्मभीरु लोग तर्क नहीं करते । ओझा सोखा के चमत्कार एवं भूत-प्रेत के अस्तित्व में आंख बंद करके विश्वास करते हैं।
समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि वह स्वयं ऐसे अंधविश्वासों से बचे एवं अन्य लोगों को बचाएं।
भाग : ६
भूत प्रेत की समस्याओं से गांव में आज भी बहुत बड़ी मात्रा में लोग परेशान है ।आइए हम सब एक अन्य कथानक के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं —
“यह भूत बहुत बलवान है इसके लिए सवा मन आटा, बकरा, बकरी ,मुर्गा ,शराब आदि देना पड़ेगा। इसके दिए बिना भूत छोड़कर के नहीं जाएगा।”
एक ओझा ने जो कि अपनी बच्ची का भूत प्रेत उतरवाने आया था उससे कहा।
उसकी बच्ची सुनीता अक्सर बीमार रहती थी। सुनीता की अभी नई-नई शादी हुई थी। शादी को हुए 6 महीना ही बीते थे कि ससुराल में एक बार बेहोश हो गई। उसे परिवार में भूत प्रेत आदि बहुत मानते थे। यही कारण है कि सुनीता का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज की अपेक्षा गांव के एक ओझा को दिखाया।
जहां पर ओझा ने बताया कि इसको ब्रह्म ने पकड़ लिया है बिना मुंडी लिए नहीं छोड़ेगा। इसको भागने के लिए जीव हत्या करनी पड़ेगी!”
सुनीता के ससुराल के लोग एक नंबर के अंधविश्वासी प्रकृति के थे। जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी अंधविश्वासों में गुजर गए थे। उसकी ससुराल में वार्षिक पूजा के नाम पर बकरा, बकरी ,मुर्गा आदि काटकर देवी देवता के नाम पर भोज चलता था।
अभी वह नई नवेली दुल्हन थी। इसलिए किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं किया । उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था कि किसी जीव की हत्या की जाए।
उसे थोड़ी राहत महसूस हुई। उसकी बेहोशी का कारण देखा जाए तो ऑक्सीजन का अभाव है। शादी के बाद जिस जगह उसे रखा गया था वह घर के पीछे का भाग था जो पूर्ण रूप से ढका हुआ था।
उसमें किसी प्रकार की खिड़की वगैरा नहीं थी। अधिकांश समय उसे घर के अंदर ही रहना पड़ता था। उसका मन बहुत उलझन में रहता था।इसी उलझन में एक दिन वह बीमार हो गई और उसके घर परिवारों ने स्थित का सही से जायजा न लेकर के उसे ओझाओं के चक्कर में फंसा दिया।
भारतीय समाज में आज भी भूत प्रेत के चक्कर में हजारों स्त्रियों का धन और धर्म दोनों गवा रहे हैं। यह ओझा सोखा इतने मक्कार किस्म के लोग होते हैं की सबसे पहले बिना शराब पिए, बकरा बकरी मुर्गा को चढ़ाए इनका भूत भागता ही नहीं।
इतना चढ़ाने के बाद भी जब भूत प्रेत की नौटंकी नहीं खत्म होती तो अन्य बहाने बनाने लगते हैं। क्या करें हमने तो बहुत कोशिश की अपनी जान लगा दिया, लेकिन भूत इतना बलवान है, भाग नहीं रहा फिर कोई नया बहाना बनाते हैं अब निकारी करनी पड़ेगी ,किसी देवथान में जाकर के बैठाना पड़ेगा आदि आदि।
सच यह है कि इन ओझाओं सोखाओ में कोई ताकत नहीं होती है। यह सब मात्रा पीढ़ी दर पीढ़ी से चला आ रहा एक प्रकार का अंधविश्वास है।
कई कई स्त्रियों को तो भूत प्रेत कुछ नहीं पकड़ा रहता ,मात्र बहानेबाजी किया करती हैं या फिर अपने घर परिवार पति को परेशान करने के लिए नौटंकी करती हैं जो कि उनकी मानसिक समस्या है ।इसमें किसी भी भूत प्रेत आदि कि कोई बात नहीं होती।
दोस्तों! जीव को शरीर छोड़ने के बाद अन्यत्र भटकने की कोई व्यवस्था नहीं है ।क्योंकि जीव को अन्य जन्म लेने के लिए एक दिन से 12 दिन के भीतर यह सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती हैं ।
इस प्रकार भी किसी को दुख देना, कष्ट देना कैसे संभव हो सकता है? अर्थात भूत प्रेत आदि की कोई संभावना नहीं रह जाती है। जो लोग कहते हैं की एक्सीडेंट में मरे हुए की आत्मा भटकती है, भूत प्रेत बनकर उनकी आत्मा फिर जन्म लेती है, तो ऐसा कुछ नहीं होता है। व्यक्ति एक्सीडेंट में मरे या व्यक्ति व्याधि से मरे।आत्मा शरीर तभी छोड़ती है जब उसके योग्य शरीर नहीं रह जाती हैं।
अतः हमें सत्यता को समझना होगा ।स्त्रियों में भी प्राचीन काल में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि किसी को भूत प्रेत की समस्या रही हो ।
इतिहास के प्रमाणों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि मुगलकाल के समय में जब कोई राजा ज्यादा लंपट हो जाता था तो लोग अपनी कन्याओं की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्हें भूतोंन्माद का नाटक सिखा देते थे और उसके भीतर कोई भूत -प्रेत, दुष्ट आत्मा पिचास , राक्षस प्रवेश कर गया है इसका प्रचार भी किया जाता था जिससे लंपट राजा ऐसे कन्याओं को परेशान नहीं करता था।
भूत प्रेत की समस्या जिन स्त्रियों को है यह सब मानसिक व्याधियों हैं जिसका ठीक से उपचार किया जाए तो वह ठीक हो जाता है स्त्रियों को बुटादा की समस्या का कारण प्रेम का अभाव है यह भूत का नाटक करके अपने पति या परिवार का प्रेम पाना चाहते हैं माताजी ने स्त्री को भूत-प्रेरताद के समस्या हो उन्हें खूब प्रेम करें उसके दुख दर्द पीड़ा को समझने का प्रयास करें भूलकर भी किसी ओझा सोखा, मियां मजार ,दरगाह पर न जाए। उसका सही प्रकार से मानसिक उपचार करायें।
वर्तमान समय में देखा जाए तो हमारा पूरा समाज अंधविश्वासों में जगड़ा हुआ है। भोली भाली हिंदू समाज के बहू बेटियां इन ओझाई सोखाई मजार दरगाह आज की पूजा के चक्कर में अपना दीन धर्म सब गवा रहे हैं। देखा गया है कि अधिकांश हिंदू ओझा सोखा मजार आदि की पूजा किया करते हैं। कोई व्यक्ति मजार दरगाह पर ना भी जाना चाहे तो यह ओझा सोखा इतने दुष्ट होते हैं के उसे भी डर भय दिखाकर जाने के लिए मजबूर कर देते हैं।
पूर्व काल में गांव में शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण गांव में जब कोई बीमार होता था तो लोग डॉक्टर के यहां जाने की अपेक्षा ऐसे ओझा गुनिया के पास जाया करते थे। आपने देखा होगा कि यह लोग ऊंट पटांग पूजा आदि करके लौंग को रोगी को खाने के लिए देते हैं। लौंग दर्द नाशक होता है।
यदि यदि सामान्य दर्द में भी लौंग को मुख में रख लिया जाए तो दांत दर्द , सिर दर्द चक्कर आने में हल्की सी राहत महसूस होगी। इसमें किसी देवी देवता का हाथ नहीं है कि उसने ठीक किया है।
इसका दूसरा कारण व्यक्ति की मन:स्थित होती है। वह जैसी कल्पना करता है उसके साथ वैसा ही होने लगता है। जिस व्यक्ति के मन में यह बैठ गया हो कि हमारी बीमारी भूत-प्रेत के पकड़ने के कारण हुई है और ओझाई कराएंगे तो ठीक हो जाएगा। तो उसके साथ वैसा ही होने लगता है। यह सब व्यक्ति के मन में बैठा हुआ विश्वास है जो उसे ठीक कर देता है। यह सारा का सारा खेल मन का है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।
इसमें किसी भी प्रकार के ओझा सोखा या किसी दैवी शक्ति का कोई हाथ नहीं होता।
दूसरी बात है यह है कि भूत का संबंध किसी मरे हुए व्यक्ति से नहीं है। श्रीमद् भगवत गीता में कहा गया है–
“अहमात्मागुडाकेश सर्व भूताशय स्थित “( गीता- १०/२०)
अर्थात मैं सब भूतों (प्राणियों) के भीतर स्थित हूं।
यहां पर भूत का अर्थ जीवित सभी व्यक्तियों से लिया गया है ना कि मरे हुए मुर्दे से। संपूर्ण गीता, श्रीमद् भागवत ,वेद ,उपनिषद् आदि में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक व्यक्ति से नहीं लिया गया है। अब हम कुछ और अर्थ देखते हैं जिससे समझ में आ जाए कि सत्य क्या है असत्य क्या है-
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठंति परमेश्वरम् । ( श्रीमद् भगवत गीता १३/२७)
अर्थात समान रूप से परमेश्वर सभी भूतों ( प्राणियों) में स्थित है।
ईश्वर सर्वभूतानां ह्रदयेशर्जुनतिष्ठति। ( श्रीमद् भगवत गीता १८/६१)
अर्थात अन्न से सभी भूत प्राणी उत्पन्न होते हैं और वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है।
उपर्युक्त श्लोक में भूत का अर्थ जीव- जगत ,पदार्थ जगत और पंच महाभूत (पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश) से लिया गया है।
उपर्युक्त सभी उदाहरणों में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक से नहीं लिया गया है । फिर क्या कारण है कि लाखों करोड़ों की संख्या में लोग भूत प्रेत के चक्कर में अपना धन धर्म मान सम्मान सब गवा रहे हैं ।यह सब बहकावे की बातें हैं कि किसी ओझा सोखा दरगाह मजार आदि की पूजा से भूत प्रेत आदि ठीक होता है।
आज जहां देखो वही मजार दरगाह के साथ ही सड़क के किनारे कोई पीपल का वृक्ष हो तो वहां भी लोग लंगोट कलावा आदि बाध कर पूजना शुरू कर देते हैं। मूढ़ताबस लोग यह कभी नहीं जानने का प्रयास करते कि उनकी पूजा करने से कुछ होता भी है या नहीं। बस भीड़ देख नहीं की पूजा शुरू कर देते हैं ।औरतें इसमें कुछ ज्यादा ही आगे होती हैं ।
भूत भी उनको ही ज्यादा पकडते हैं। सत्य तो यह है कि भूत नाम की दुनिया में कोई कुछ नहीं होता है।जो मर गया वह क्या करेगा भूत बीते हुए समय को कहते हैं।
ऐसी स्थिति में समाज को जागृत करने की आवश्यकता है।हमें सत्य का साथ देना चाहिए ।यदि इसमें कोई सत्यता हो तो मानना चाहिए नहीं तो छोड़ देना चाहिए।
हजारों वर्षों के मान्यताएं सच है कि एक दिन में खत्म नहीं होगी लेकिन जैसे-जैसे समाज शिक्षित हो रहा है।इस प्रकार की मान्यताएं भी धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। इसके लिए आवश्यकता है कि विद्यालयों में बच्चों के समक्ष इस प्रकार की बातें समझाईं जाए और उन्हें बचपन से ही ऐसी मान्यताओं से दूर रखने के लिए प्रेरित किया जाए।
भाग : ७
समाज में भूत प्रेत की मान्यता किस प्रकार से प्रारंभ हुई इसको एक हम कथानक के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं जिससे हम समाज में भूत प्रेत की मान्यता को समझ सकेंगे —
सुनीता को कई दिनों से सिर दर्द कर रहा था। एक दिन तो वह बेहोश हो गई।उसका पति शहर कमाने गया हुआ था। घर में उसकी सासू जेठ जेठानी आदि थे।उन्होंने सोचा कि इसको कोई भूत प्रेत का साया लग गया है इसलिए एक ओझा के पास गांव में ले गए। उसने भी कुछ झाड़-फूंक किया और उसे होश आ गया।
मूल रूप से सुनीता को कोई भूत प्रेत नहीं बल्कि ऑक्सीजन की कमी से उसे बेहोशी आई थी। क्योंकि वह जहां रह रहे थी उसमें किसी प्रकार की खिड़की नहीं थी और घर के एकदम पीछे साइड में बना हुआ था।
जहां किसी भी प्रकार से हवा प्रवेश नहीं कर पा रहा था। पति के घर पर ना रहने के कारण भी वह तनाव में रहा करती थी। तनावपूर्ण अवस्था में प्रायः व्यक्ति का आत्मविश्वास गिर जाता है।
ऐसे में अपने आत्मविश्वास के अभाव में व्यक्ति अपने तनाव नियंत्रण के लिए ऐसी किसी बाह्य गतिविधियों को अपना लेता है जिसका मूलाधार अंधविश्वास होता है। ऐसे में व्यक्ति अंधविश्वासी व्यवहार द्वारा स्वयं को पहले से ज्यादा आत्मविश्वास युक्त महसूस करने लगता है।
इस प्रकार का व्यवहार भूत प्रेत से ग्रस्त स्त्रियों में ज्यादा देखा गया है ।वह जब मजार, दरगाह आदि में जाती हैं या किसी वजह से तांत्रिक मौलवी आदि के द्वारा कुछ भभूत दे दिया जाता है तो यह अपने में हल्का पन महसूस करती हैं ।
यह हल्कापन मन में यह विचार करने से हुआ कि मुझे भूत पकड़ लिया मैं ठीक हो जाऊंगी। यह चिंतन उसे थोड़ी मानसिक शांति देता है लेकिन समस्या जस की तस बनी रहती है। यही नहीं बल्कि उचित समाधान ना करने से और बढ़ जाती है।
अंधविश्वासी परंपराओं में देखा गया है पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा ग्रस्त है ।उनमें से शहरी की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएं ज्यादा अंधविश्वासी होती हैं। इस अंधविश्वास की जड़ में अशिक्षा अज्ञानता ज्यादा कारण है। जैसे-जैसे समाज में महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है अंधविश्वास थोड़ा कम हुआ है।
जिस अंधविश्वासों को पूर्वज मानते आ रहे हैं उसे बच पाना मुश्किल है। महिलाओं में अंधविश्वास की प्रवृत्ति बच्चों को भी अंधविश्वासी बना देती है।
कोई बालक या बालिका विद्यालय में वैज्ञानिक तथ्यों का अध्ययन करके आता है परंतु समाज में फैले अंधविश्वास उसके वैज्ञानिक तथ्यों पर कालिख पोत देते हैं उसे या पढ़ाया जाता है कि सभी जीवो की अपनी अलग जाति होती है परंतु अंधविश्वासी परंपराओं में देखता है कि उसका उल्टा ही दिखाई पड़ता है। ऐसे में यदि वह ऐसी गलत परंपरा का विरोध करता है तो उसे समाज से अलग-थलग कर दिया जाता है।
सुनीता को उस समय तो कुछ राहत हो गई लेकिन ऐसा उसके साथ कई साल तक होता था। वह बेहोश होती और ओझाओं के भभूत,मजार ,दरगाह आदि जाने पर कुछ राहत महसूस होती।
इसमें एक बात विशेष देखा गया कि जब उसका पति घर पर होता तो वह बहुत खुश होती और कभी बीमार नहीं होती थी। इसका अर्थ है कि वाह अपने पति का प्रेम पाना चाहती थीं। ऐसा भी देखा गया है कि जिस स्त्री के पति अधिकांशतः बाहर नौकरी पर होते हैं।
वही औरतें ज्यादा भूत प्रेत के चक्कर में परेशान रहती हैं। या फिर ऐसी महिलाएं जिनके बच्चे नहीं होते वह भी ज्यादा भूत प्रेत के चक्कर में परेशान रहती हैं।
देखा गया है कि महिलाएं बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं। विभिन्न प्रकार के व्रत उपवास में जितना महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं उतना पुरुष नहीं ।
पिछले दो दशकों से धार्मिक चैनलों की बाढ़ आ गई है। इसी के साथ नित नए-नए बाबा भी उत्पन्न हो रहे हैं ।धार्मिक सत्संग में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की भीड़ दिखती है। सत्संग से पूर्व यही महिलाएं कलश यात्रा आदि निकालती हैं। सत्संग के बीच में ढोलक की थाप पर खूब जम के डांस भी करती हैं।
यज्ञ मंडप को सजाने या कलश यात्रा को सिर पर धारण करने सभी तामझाम स्त्रियों को ही करने पड़ते हैं ।साथ ही भव्य आरती वगैरा में भी महिलाएं ही आगे रहती हैं । महिलाओं का इस प्रकार से सत्संग में भागीदार उनकी श्रद्धा कम बाबाओं की चालाकी ज्यादा होती है ।
उन्हें मालूम होता है कि महिलाएं धर्मभीरु ज्यादा होती है । भगवान के नाम पर उनसे ज्यादा मुफ्त का काम कोई नहीं कर सकता । ऐसे में कई महिलाएं व्रत भी रखती हैं।
एक तो पेट खाली होता है फिर भी कलश यात्रा दो-तीन किलोमीटर की होती है । ऊपर से कलस का वजन 5 किलो तक का होता है। आवश्यकता है धर्म के नाम पर स्त्रियों के साथ शोषण के इन नये नये तरीकों पर प्रतिबंध लगाने की।
सुनीता इसी बीच गर्भवती हुई और एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। इसी बीच उसका पति भी उसके साथ अधिक से अधिक समय तक रहने लगा। पति के साथ रहते हुए उसे कभी भूत प्रेत की बीमारी नहीं हुई। यदि कभी वह अपने पति से चर्चा भी करती तो उसका पति टाल देता ।
यह सब कुछ नहीं होता है। तुम्हारे मन में मात्र को बहम भरा हुआ है। पहले जो वह बहुत दुबली पतली हो गई थी उसका शरीर भी अच्छा हो गया था।इसी बीच वह पुनः गर्भवती हुई और एक बच्ची को उसने जन्म दिया। अब उसका पूरा समय उन बच्चों के सेवा में लगने लगा ।फिर वह भूल ही गई कि उसे किसी भूत-प्रेत की छाया लगी हुई है।
वास्तव में देखा गया है भूत प्रेत का नाटक कर स्त्रियां अपने ससुराल एवं पति का प्रेम पाना चाहती हैं। ऐसे में घर के लोगों को चाहिए कि जिस स्त्री को भूत प्रेत का नशा चढ़ा हो उसे किसी ओझा सोखा या मजार दरगाह पर ना ले जाकर उसे प्रेम पूर्ण वार्तालाप संवाद करें। उसे अधिक से अधिक पति के सानिध्य में रहने दे। धीरे-धीरे प्रेम पूर्ण वार्ताओं से भूत प्रेत का नशा उतर जाता है।
भाग- ८
हिंदू समाज में जितनी अंध श्रद्धा है उसका क्या कहा जाए? अपने सैकड़ो देवी देवताओं को छोड़कर के न जाने लोग क्यों मजारों पर जाते हैं।
हमारे गांव के पास सिकंदरा नामक जगह में एक गाजी मियां की मजार है। जहां पर आसपास के गांव के हिंदुओं को जब तक इतवार और बुधवार को सिन्नी नहीं चढ़ा लेते उनका भोजन ही नहीं पचता है।
एक प्रकार से यह उनकी अंध श्रद्धा एवं मानसिक गुलामी है। एक प्रकार से जिसके मन में जो बातें बैठा दी जाए पीढ़ी दर पीढ़ी इस प्रकार का चिंतन वह करता रहता है।
अधिकांश कभी आप मजारों पर जाएं तो देखेंगे कि बहुत सी स्त्रियां उठा पटक करती रहतीं हैं। चीखती चिल्लाती हैं ।आऊ बाऊ बकती हैं । यह क्या बोल रहे हैं कुछ समझ में नहीं आता। इसमें महिलाएं कुछ ज्यादा ही सक्रिय रहती हैं।
देखा गया है कि पूरी कचहरी चलती है।
जजमेंट के उद्घोष किए जाते हैं। मौलवी उल्टा सीधा कुछ पूछता है और औरतें बाल खोल करके उसके प्रश्नों का उत्तर देती रहती हैं। अधिकांश ऐसी मजारों पर मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षा हिंदुओं की औरतें ही ज्यादा जाती हैं। ऐसा लगता है सारे भूत प्रेत चुड़ैल डायन साइन सब हिंदुओं की औरतों को ही पकड़ते हैं।
एक बात बता दें ऐसे मौलियों में ना कोई ताकत होती है।ना कोई झाड़ता फूंकता है । यह मात्र बकवास के अलावा कुछ नहीं है।
एक बार मैंने एक मजार के प्रबंधक से पूछा कि इससे कुछ होता जाता है कि ऐसे ही सब दुकानदारी चल रही हैं। उसने स्वीकार किया कि सब रोटी दाल का चक्कर है। इसी मजार दरगाह से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा परिवार चल रहा है।
लोगों को यह पता नहीं है कि वहां कुछ है या नहीं बस बाप दादाओं ने किया इसलिए कर रहे हैं। अरे पूजा करनी ही है तो उस महान राजा सुहेलदेव सिंह की करनी चाहिए जिसने गाजी मियां को बहराइच में मार दिया था।
लेकिन मूढ़ हिंदू को कौन समझाए। एक बार जब मूढ़ता किसी परिवार में सुरू हो जाती है तो वह उतरने का नाम नहीं लेती हैं। मूढ़ता का कोई इलाज नहीं है।
हिन्दूओं की औरतों को जो भूत प्रेत आदि पकड़ता है। वह अपने पति और परिवार को परेशान करने के लिए नाटक करती है। न तो इस दुनिया में कोई भी किसी को भूत प्रेत आदि पकड़ता है और न ही कोई झाड़ता फूंकता है। यह मात्र एक प्रकार का मानसिक वहम होता है। जिसको ऐसा वहम हो जाता है वह पीढ़ी दर पीढ़ी उससे परेशान रहता है।
सिकंदरा के आसपास के गांव में हिंदुओं का कोई ऐसा घर नहीं होगा जो मजारों पर जाकर सिन्नी प्रसाद ना चढ़ाता हो। हमने तो देखा है इस अंधविश्वास का नशा ऐसा सवार है कि यदि कोई चार भाई है तो चारों पूजा करते हैं।
यह अंध श्रद्धा ऐसी होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी एक भय मन में बैठा दिया जाता है कि यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा। यह भय ही मनुष्य को अंध श्रद्धालु बनाए रखना है। औरतों को कुछ ज्यादा ही भूत प्रेत पकड़ता है। और देखा गया है वही इस अंधविश्वास को बढ़ावा भी देती रहती हैं।
कहा जाता है एक शराबी पिता से अंधविश्वासी मां ज्यादा घातक होती है। क्योंकि शराबी पिता तो चाहता है कि बच्चा शराब न पिए लेकिन अंधविश्वासी मां अपने बच्चों को और अंधविश्वासी बना देती है। मां द्वारा प्रत्यारोपित यह अंधविश्वास हजारों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है।
हमारा समाज कितना भी शिक्षित हो जाए,चांद पर पहुंच जाए लेकिन उसके दिमाग में जो अंध श्रद्धा का भूसा भर दिया गया है वह निकलने वाला नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति इन अंधविश्वासों का विरोध भी करता है तो उसे यह कह कर चुप करा दिया जाता है की चार अक्षर पढ़ कर तेरे दिमाग में भूसा भर गया है।
तू क्या जाने,तेरे बाबा भी मानते थे ,तेरे पिता भी मानते थे, क्या वह बेवकूफ थे। ऐसी स्थित में चाहकर व्यक्ति ऐसे अंधविश्वास को रोकने में सफल नहीं हो पाता।
हिंदू समाज अंधविश्वास में इतना जकड़ा हुआ है हो सकता है और कोई समाज इतना जकड़ा हो।
समाज को चाहिए कि वह इन कुरीतियों से स्वयं को बचाए एवं अपने परिवार को बचाएं।
भाग-९
रात्रि का लगभग 9:00 बज रहा होगा। प्रयागराज की एक मजार पर बहुत सी स्त्रियां अभुआ सुसुआ रही थी। एक कह रही थी कि -“मैं इसके शरीर को नहीं छोडूंगी। मैं उसकी जान लेकर के रहूंगी। ”
खुले बाल कमर को चारों तरफ से नचाती हुई वह सवाल जवाब किए जा रहे थी।
वहां पर एक बूढ़ी मां जो की लगता है उसकी दादी रही होगी वह कह रही थी -“छोड़ दो मालिक, छोड़ दो, जान लेकर क्या करोगे?”
जो स्त्री भूत की नौटंकी कर रही थीं उसने कहा -” चुप कर बुढ़िया। ज्यादा चपर चपर मत कर। मैं इसको नहीं छोडूंगी तो नहीं छोडूंगी।”
इस प्रकार से वहां बहुत सी स्त्रियां झूम नाच खेल रही थीं। वहां पर उपस्थित बहुत से भूतों के एजेंट मुल्ले मौलवी वहां पर उपस्थित स्त्रियों के साथ सवाल जवाब कर रहे थे और वह भी अंट-संट जवाब दे रही थी।
इस प्रकार के बहुत से भूतों के एजेंट गांव-गांव में मिल जाते हैं। जो की अधिकांशत मजारों दरगाहों एवं रोड़ों पर स्थित पहलवान आदि के देवस्थानों में पाए जाते हैं। इसके अलावा गांव में भी ओझा , सोखा सियाने आदि लोग भी भूतों के एजेंट का काम किया करते हैं। यह भूतों के एजेंट भूतों का अस्तित्व सिद्ध करने, उन्हें बुलाने, भगाने तथा उनके द्वारा कई प्रकार के काम करने के करिश्मा दिखाते हैं।
गांव में आज भी अक्सर छोटे बच्चों के दस्त, बुखार , अधिक रोना , हाथ पांव मरोड़ना ,आंखें ना खोलना , उल्टी आदि रोग भूत चुड़ैल के आक्रमण समझा जाता है। अशिक्षित तथा अंधविश्वासी लोगों में ओझाओं द्वारा झाड़ फूंक करना ही इसका उपाय समझा जाता है।
गांव में देखा गया है कि स्त्रियां अक्सर ज्यादा अंधविश्वासी हुआ करती हैं। जिसके कारण उनके बच्चे भी अंधविश्वासी बन जाते हैं। स्त्रियों का विशेष रूप से भूतों पर विश्वास होता है । उनके बहुत से रोग भूत बांधा माना जाता है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अपनी पुस्तक ‘योग के नाम पर मायाचार’ में कहते हैं –” मिर्गी, बंध्यापन, गर्भपात, बच्चों का मर जाना, दूध न उतरना, दुस्वप्न ,मूर्छा आदि रोगों को भूत चुड़ैल का कारण समझा जाता है।
इसके अलावा उन्माद , आवेश भयातुरता, तीव्र ज्वर, प्रलाप आदि रोग चाहे वह पुरुष को हो या स्त्री को , भूतों के उपद्रव समझा जाता हैं । कंठ माला , विषबेल सरीखे फोड़े, सर्प काटना यह भी प्रेत आत्माओं से संबंधित समझा जाता है। सूने घर में चूहे द्वारा मचाए गई खडबड, बिल्ली, बंदर आदि का कूदना भी कभी-कभी भूत समझा जाता है।”
इस प्रकार के वहम जब किसी मनुष्य के मन में बैठ जाता है तो वह मरते दम तक नहीं निकलता है। उपरोक्त किसी कारण के उपस्थित होने पर यह भूतों के एजेंट बने हुए लोग अपनी महानता को सिद्ध करने के लिए नींबू को चाकू से काटकर रस की जगह खून निकालना ,लोटे में चावल भरना और उसे भरे हुए लोट को चाकू की नोक से चिपक कर आधार उठा लेना, कच्चे सूत के धागे पर तेल का भरा हुआ जलता दीपक रखना ऊपर से उल्टे मुंह की मटकी रख देना और फिर थाली का पानी खींचकर चढ़ जाना , लोटे में पानी भरकर एक कपड़े से मुंह बंद कर लोट को उल्टा लटका देना । आदि अनेकों प्रकार के चमत्कार दिखाकर जनता को उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध किया करते हैं।
परंतु एक बात मन में बैठा लीजिए कि उनमें किसी प्रकार का कोई चमत्कार नहीं होता है। स्त्रियों में आने वाले भूतों का मूल कारण मनोवैज्ञानिक है। स्त्रियों को पूर्व काल में परतंत्र रहना पड़ता था, घर के छोटे पिंजरे में कठिन बंधनों में जकड़ी हुई रहती थी। मुद्दतों एक स्थान पर रहते रहते उनका मन ऊब जाता था। पिता के घर की याद सताती थी ।
मायके जाने की जो भटकन है परन्तु उसकी अपनी इच्छा का कोई मूल्य नहीं होता था। ससुराल का और उसके वातावरण तथा वहां वालों का दुर्व्यवहार आदि अनेकों कारणो से स्त्रियों को छोभ उत्पन्न होता है और वे भीतर ही भीतर कुड़ती रहती हैं ।
कभी-कभी इस प्रकार की दबी अतिरिक्त इच्छाएं किसी भी सपोर्ट के लिए अवसर खोजती हैं और ज्यादा दबाव बढ़ने पर वे कभी-कभी मूर्छित हो जाती हैं तो जिन घरों में इस प्रकार के भूत आदि के परंपराएं चला करती हैं । वहां भूत का प्रकोप मानकर ऐसी स्त्रियों को ओझा सोखा आदि के पास या मजारों पर ले जाया जाता है।
कई बार देखा गया है की ऐसी स्त्रियां अपने घर परिवार का प्रेम पाने के लिए ऐसी नौटंकी किया करती हैं। नव व्याहता स्त्रियां जब तक माता नहीं बनती तब तक उनपर भूत प्रेत का आवेश अधिक रहता है। जब उनके बालक पैदा हो जाते हैं तो मस्तिष्क की दिशा दूसरी ओर मुड़ जाती है। ऐसी दशा में भूत प्रेत का भय खत्म हो जाता है । इस प्रकार से हम देखते हैं कि किसी भी स्त्री को कोई भी भूत प्रेत नहीं पकड़ता है। मात्र वे नौटंकी बाज़ी किया करतीं हैं।
आचार्य श्री कहते हैं इस प्रकार के रोग धीरे-धीरे समय पाकर अपने आप अच्छे होने लगते हैं। स्त्रियां सहानुभूति पाने के लिए अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। आवेश उन्माद आदि भी समय पाकर ठीक हो जाते हैं । इसका श्रेय भूतों के एजेंटों को मिलता है जिसके कारण उनकी रोजी रोटी चलती रहती है।”
अतः समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि ऐसे भूतों के एजेंट से स्वयं बचे एवं अपने घर परिवार तथा समाज को बचाएं।
भाग– 10
भूत प्रेत का वर्णन वेदों में भी पाया जाता है। वेदों में मनुष्येतर प्राणियों, राक्षसादि को अनेकानेक रोगों के कारण रूप में स्वीकार किया गया है। या कहा जा सकता है कि उस काल में रोग उत्पत्ति में इन राक्षसादि को ही प्रधान कारण माना गया है ।
वही आयुर्वेद में भूत विद्या का संबंध मानस रोगों से है । या कहा जा सकता है कि यह भूतादि मनुष्य के मन को ग्रसित करके विकार को उत्पत्ति करते हैं ।वेदों में इन भूतों को मानसिक रोगों का कारण नहीं माना गया है।
अथर्ववेद भूत विद्या संबंधित है। इसमें इन भूतों को अति शक्ति युक्त माना गया है तथा ऐसा स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि यह भूत रोग को उत्पादित क्षमता रखने वाले हैं ।
तथा मनुष्यों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं ।इन भूतों के अनेक अनेकानेक का उल्लेख किया गया है । इन भूतो का नामकरण उनके स्वरूप एवं उनके द्वारा किए जाने वाले कर्मों के आधार पर किया गया है।
अथर्ववेद में भूतों की दो श्रेणियों का वर्णन किया गया है। एक भूतों का वह प्रकार है जो अदृश्य यानी उनको देखा नहीं जा सकता। दूसरा वह प्रकार जो दृश्य मान है।उन्हें नग्न आंखों से देखा जा सकता है।
अथर्ववेद की एक मंत्र में कहा गया है कि ना मैं चोर के साथ रह सकता हूं। ना हीं पिशाच के साथ रह सकता हूं । मैं जिस गांव में जाता हूं पिसाच वहां से भाग जाते हैं–
न पिसाचै: सं शक्रोमी न स्तेनैर्न वनर्गुभि:।
पिशाचास्तस्मान्नश्यन्ति यमहं ग्रममाविशे।।
( अ. वे. ४/३६/७)
वेदों में भूतों को अतिशक्तिशाली माना गया है तथा दुष्ट आत्माओं से रक्षा करने के लिए इन भूतों से प्रार्थना की गई है। वेदों में भूतादि को रोग शोक का कारण माना गया है तथा इन्हें पराश्रयी बतलाया गया है।
वेद में भूतों का निवास अंतरिक्ष बताया गया है। एक मंत्र में कहा गया है यै अमानुष किसी भी प्राणी को अपने विष के द्वारा विनाश करते हैं।
आगे कहां गया है यह मनुष्य को हानि पहुंचाने वाले होते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य इनसे डरता रहा है। तथा इनसे सदैव दूर रहने का ही प्रयत्न करता रहा है । यह कच्चे मांस का भक्षण करने वाले होते हैं। उनका स्वरूप हिंसक एवं भयानक होता है।
मनुष्य इन भूतों से इतना डरता रहता था और वह सदैव ऐसे स्थान पर रहता था जहां पर भूतादि पहुंच ना पाए या जान ना पाए कि मनुष्य कहां है।
अ.वे. ८/१/१२
इस प्रकार हम देखते हैं कि अथर्ववेद में भूत पिसाच के विवरण पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
वैदिक साहित्य में शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के रोगों के कारण रूप में भूत आदि माना गया है।
अथर्ववेद में उन्माद मनोविकार के लिए मंत्र चिकित्सा को सफल चिकित्सा के रूप में स्वीकार किया गया है। एक मंत्र में कहा गया है कि हे अग्नि , तुम इन भूतादि को मुझसे दूर करो। बुजुर्गों की शांति देने हेतु प्रार्थना की गई है तथा मंत्र में ग्रहों से रक्षा करने तथा उनसे कष्ट होने पर उनसे मुक्ति हेतु प्रार्थना की गई है।
अथर्ववेद ६/११२/१
अथर्ववेद में भूतड़ी को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियां का भी वर्णन प्राप्त होता है जिसमें मुख्य रूप से गूगल, अपामार्ग, सरसों, नाग( सीसा)आदि प्रमुख है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि वेदों में भूत प्रेत आदि का वर्णन पर्याप्त रूप में पाया जाता है।भूत प्रेत आदि एक प्रकार के मनोविकार माने गए हैं। जिनको दूर भगाने के लिए औषधीयो आदि का भी उल्लेख किया गया है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत प्रेत आदि की समस्याएं वैदिक काल से ही चल रही है। जो एक प्रकार के मनोविकार एवं शारीरिक रोग माने गए हैं जिन्हें उचित चिकित्सा के द्वारा ठीक किया जा सकता है।
भाग -११
आज हम भूत विषय को और गहराई के साथ समझने का प्रयास करते हैं-
आयुर्वेद में भूत शब्द का अर्थ प्राणी ग्रहण किया गया है। प्राणी अर्थ में प्रयुक्त भूत शब्द ‘भूति’ में ‘अच्’ के सहयोग से बना है जिसका अर्थ प्राणी( एनिमल ऑब्जेक्ट ) होता है ।
भूत शब्द का प्रयोग आयुर्वेद में सामान्यतया सृष्टि के मौलिक घटक के रूप में किया जाता है। जड़ और चेतन सभी प्रकार की रचनाओं में भूतों की भूमिका होती है। यह संख्या में पांच हैं आकाश , वायु , अग्नि, जल तथा पृथ्वी। अतः इन पांचो को पंचमहाभूत कहा जाता है।
यहां भूत शब्द की उत्पत्ति सत्तायाम अर्थ रखने वाले ‘भू’ धातु से हुई है। जब भू धातु में ‘क्त’ प्रत्यय लगता है तो भू शब्द बनता है । भूत शब्द पंच महाभूत के लिए व्यवहार किया जाता है। जिससे सृष्टि रचना होती है तथा प्रत्येक कार्य द्रव्यो के कारणीभूत होते हैं।
आयुर्वेद में भूत शब्द का एक अन्य अर्थ है देव योनी विशेष ( पिसाचादी) ग्रहण किया गया है। यह भूतादि जिस तरह की रचना चाहते हैं उसी का रूप अपने को बना लेते हैं। या जो पसंद करते हैं वैसे ही रचना कर डालते हैं। अतः इन्हें भूत कहते हैं तथा यह कार्य देवों द्वारा संपन्न होने के कारण इन्हें देव योनी कहा गया है।
सुश्रुत संहिता में कहा गया है कि आयुर्वेद के जिस अंग में देव, असुर , गंधर्व , पितृ , पिशाच, नाग, मन की चिकित्सा ,शांति कर्म ,बलि ,आदि ग्रह के समन वाले उपाय की जाए उस विद्या का नाम भूत विद्या है।
यहां पर भी भूत शब्द का अर्थ है देव योनी विशेष या ग्रह है।
यह सभी ग्रह मानव के मन को ही ग्रसित करते हैं। अर्थात इन ग्रहों द्वारा उत्पन्न रोग का अधिष्ठान मन ही है। इसका संबंध शरीरगत् भावों से नहीं है।
ग्रह का शाब्दिक अर्थ है ग्रहण करना, पकड़ना, ग्रस लेना, बंदी बना लेना आदि। यह भूतादि मनुष्य को पकड़ते हैं या बंदी बना लेते हैं ।यह अपने आप पर से स्व नियंत्रण समाप्त हो जाता है । या मनुष्य को अपने व्यवहार से युक्त कर देते हैं ।इसलिए इन भूतादि को ‘ग्रह’ कहा जाता है।
सामाजिक लोक मान्यता में आज भी बहुत से रोगों के कारण रूप में भूत प्रेत आदि माने जाते हैं । विशेष कर बाल रोगों में । इस स्थिति में अभिभावक किसी चिकित्सक के पास न जाकर झाड़ फूंक को करने वाले किसी ओझा के चक्कर में पड़े रहते हैं। जिसके परिणाम स्वरुप बालक की अकाल मृत्यु हो जाती है। जिसे अभिभावक दैविक प्रकोप मानकर संतोष कर लेते हैं।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत प्रेत आदि एक प्रकार का मानसिक विकार है। जिसे उचित प्रकार से चिकित्सा करने पर ठीक हो जाता है। अशिक्षा के कारण इसे लोग ऊपरी बवाल समझ लेते हैं। जिसके कारण समस्या और बढ़ती जाती है।
यदि किसी धंधैबाज ओझा सोखा सियाने आदि के पास जाते हैं तो वह किसी प्रकार का भी रूप हो उसे भूत प्रेत आदि का चक्कर मानकर ओझाई सोखाई आदि करने लगते हैं । जिसके कारण समस्या और बढ़ती जाती है ।
इन चक्करों में जब एक बार व्यक्ति फसता है तो फंसने के तो रास्ते दिखाई पड़ते हैं लेकिन निकलने के कोई रास्ता नहीं दिखता है।
इसलिए मनुष्य की समझदारी इसी में है कि इस प्रकार के किसी भी झाड़ फूंक आदि से दूर रहते हुए ऐसे रोगी की उचित चिकित्सा करायें।
शेष अगले अंक में
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
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