मेरी नजर में 'आका बदल रहे हैं' ग़जल संग्रह

Book Review : Aaka Badal Rahe Hain -पुस्तक समीक्षा: आका बदल रहे हैं

 

पुस्तक समीक्षा: आका बदल रहे हैं ( गजल संग्रह )

( Book Review: Aaka Badal Rahe Hain )

              लेखक: विजय कुमार तिवारी

सेतु प्रकाशन

माधव पार्क -२ बस्त्राल रोड, बस्त्राल

अहमदाबाद -382418
मूल्य: रु. 180

डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर -देहरादून
के द्वारा

आदरणीय श्रीमान विजय कुमार तिवारी जी का गजल संग्रह “आका बदल रहे हैं “ की समीक्षा

– – – – –

गजल को नया आयाम देने वाले श्री विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं “का प्रथम संस्करण 2017 और द्वितीय संस्करण 2019 में हमारे सम्मुख आया । इस संस्करण के विषय में जितना कहा जाए उतना ही कम है ।

तकरीबन 1000 साल पुराने ग़ज़ल के इतिहास को अगर हम देखें तो उस समय की पाई गई उर्दू ,फारसी, खड़ी बोली हिदी , अपभ्रंश, संस्कृत, शौरसेनी एवं अरबी का मिला जुला रूप जिसने ग़ज़ल के भाषा शिल्प की संरचना की वही स्वरूप हमें आज श्री मान विजय कुमार तिवारी जी के संस्करण “आका बदल रहे हैं “गजल संग्रह में पूर्ण रुप से देखने का मिल रहा है ।

विजय कुमार तिवारी जी ने अपने गजल के काव्य संग्रह “आका बदल रहे हैं” मे ग़ज़ल के क्रमिक विकास को खूबसूरत अंदाज में पेश किया है ।

समकालीन साहित्य की दृष्टि से शायरी के लहजे का जबान का बदलना लाजमी है इसीलिए यह प्रभाव विजय कुमार तिवारी जी के भाषा शिल्प पर पूर्णतया दृष्टिगोचर हो रहा है ।

सदियों से गजलें लिखी जा रही है । उनकी भाषा पर काव्यात्मक टिप्पणियां भी देखने को मिलती है । परंतु विजय कुमार तिवारी जी के काव्य संग्रह “आका बदल रहे हैं” की भाषा पर गजल की दुनिया में इसके सौंदर्य करण को लेकर सभी आलोचकों एवं साहित्यकारों का एकमत होकर यह कहना कि “आका बदल रहे हैं ” की भाषा “स्पष्ट अद्वितीय एवं अनुपम है” कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।

गजल को जिस खूबसूरत अंदाज से आप ने “आका बदल रहे हैं ” में प्रस्तुत किया है उसे देखते हुए मैं यह अवश्य कहना चाहूंगी की विजय कुमार तिवारी जी ने ग़ज़ल के शिल्प को पारंपरिक तरीके से जो संप्रेषणीयता दी है वह काव्य की गजल विधा में बहुत कम देखने को मिलती है ।

विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं” में जहां एक तरफ भाषा शिल्प का तकनीकीकरण, गजल का सौंदर्य करण, काव्यात्मकता , व्याकरणता, अलंकारिकता, लयबद्धता उद्घाटित हो रही है वही श्री विजय कुमार तिवारी जी ने समाज के हर क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमाई रखा है ।

वहीं दूसरी और “आका बदल रहे हैं” में हम समाज की कुत्सित मानसिकता, आत्मीय संबंधों में नफरत एवं ईर्ष्या , अपनों का विश्वासघात, पारिवारिक बिखराव, सांस्कृतिक अवमूल्यन का दर्द , विद्रूप चेहरों की विकृति, राजनीति के पतन एवं गिरते मूल्यों का पदार्पण भी बहुत खूबसूरती से देख पा रहे हैं।

अहमदाबाद की पावन धरती पर रचित “आका बदल रहे हैं” नामक गजल संग्रह श्री विजय कुमार तिवारी जी को गजल की दुनिया में महत्वपूर्ण एवं सर्वोपरि स्थान दिलाने के लिए अनुपम एवं अद्वितीय समायोजन है ।

श्री विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं ” का दृष्टिगत अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि ग़ज़ल की विविध और बहुरंगी दुनिया में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले उनकी इस प्रतिष्रुति को ध्यान में रखना चाहिए कि जहां शब्दों की सीमाएं समाप्त होती हैं वहीं से गजल प्रारंभ होती है ।

समीक्षा ग्रस्त दृष्टि से देखें तो यह विचाराधीन तथ्य हमारे सम्मुख आता है कि विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं” गजल संग्रह संग्रह में व्यक्त किए गए विचार और उद्गार कोई मामूली समझ नहीं है बल्कि बहुत ही दूर दृष्टि वाली समझ है ।

आज जहां गजलों में शब्दों की अधिकता मिलती है वही विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं” गजल संग्रह के परिप्रेक्ष्य से शब्दों को आत्मसात करने का हुनर श्री विजय कुमार तिवारी जी के आका बदल रहे हैं काव्य संग्रह में पूर्णता दृष्टिगोचर हो रहा है ।

“आका बदल रहे हैं” काव्य संग्रह की बात करते हुए हम पाते हैं कि शब्दों पर इतना उत्तम अधिपत्य और भावनाओं को चरितार्थ करता हुआ यह काव्यात्मक गजल संग्रह बुनियादी जरूरत के रूप में हमारे सम्मुख उद्घाटित हुआ है । अवधारणा की दृष्टि से देखा जाए तो बहुत होती हैं ।

श्री विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं ” ग़ज़लसंग्रह काव्य बोध हमें प्रश्नकुलता, संवाद धर्मिता ,आश्चर्य- विस्मय,व्यंग्य की खूबियां, अपने पराए रिश्तो के उतार-चढ़ाव, इत्यादि मूल्यों का निरंतर विस्तार करती प्रतीत होती हैं ।

श्री विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं गजल संग्रह का उद्देश्य काव्य जगत में साहित्य के क्षेत्र में नई युवा पीढ़ी को काव्य गोष्ठी तथा काव्य सम्मेलन के कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकारों एवं कवियों के अनुभव से युवा पीढ़ी को जागरूक कर अपनी काव्यात्मक शैली में ग़ज़ल के उदाहरण से प्रशिक्षित एवं प्रेरित करना तथा समय-समय पर इस तरह के आयोजन करते हुए साहित्य के क्षेत्र में देश विदेशों में प्रतिभाओं को सामने लाना है विजय कुमार तिवारी जी से आग्रह है कि इस गूंचे की खुशबू बनकर गजलो की रचनात्मकता से साहित्यिक जगत को और महकाये ।

विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं” कि हर ग़ज़ल पढ़ने के बाद मेरा मन पुर्नअध्ययन के लिए एक बार फिर मचल उठा है ।

बेहद खूबसूरत प्रस्तुति के साथ – वह दूर जाकर और दिल के पास हो गया , होते हैं अगर पास तेरे तीर नजर के ,आइए आप मेरा शहर देखिए, खुशबू नहीं गुलों मैं सभी उड़ गए हैं रंग या फिर हर पल वही बसे हैं है मेरी कल्पनाओं में रोती है जिंदगी के लिए सुनकर के लोग उसको चले आएंगे ।

अकेले में ही हमने कारवां का लुत्फ पाया है । सुनकर के लोग उसको चले आएंगे इधर । वो पाएगा मंजिल जो सहारे ढूंढता है । कांटो के दरमियान रही जिंदगी सदा ।

उपरोक्त सभी गजलों की हिन्दी भाषा :

माधुर्यता के कारण मिष्ट है।

सौंदर्य के कारण हिंदी शिष्ट है

सुगंध के कारण हिंदी विशिष्ट है

 

गजल के अन्य सोपान पर हमें बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने को मिली जैसे :-
सब है साथ फिर भी दिल से तन्हाई नहीं जाती ।

आइए आप मेरा शहर देखिए ।

उसकी रहमत लगता है बहरी हुई है ।

आप हो गया ।

हूर क्या है सवाल होता है ‘ ।

चुप चुप कर सब सहना पड़ा है ।

जिंदगी जीना है तो गम में भी हंसना सीख ले ।

विजय कुमार तिवारी जी का “आका बदल रहे हैं” गजल संग्रह सत्यम शिवम सुंदरम की श्रेणी में आता है
अर्थात माधुर्य हिंदी का शिवम है ,सौंदर्य हिंदी का सुंदरम है , सुगंध हिंदी का सत्यम है

गजलों को आकर्षण की दृष्टि से देखें तो हम पाएंगे कि सभी गजलें जितना राष्ट्रीय स्तर पर प्रख्याति मिली है उतने ही अंतरराष्ट्रीय आंगन में भी सम्मानित हुई है ।

सुख सपने के धन सा मिला है । मैं घाव अपने दिल के तुम्हें दिखाऊं कैसे । . सभी गजल संग्रह के उद्यान में ऐसे पुष्प हैं जो माधुर्य सौंदर्य और सुगंध से ।

आदरणीय श्रीमान विजय कुमार तिवारी जी की उपरोक्त सभी गजलें हिंदी साहित्य के उद्यान में खिलने वाले ऐसे पुष्प हैं जिनकी सुगंध अजर अमर है । श्री विजय कुमार तिवारी जी का ग़ज़ल संग्रह – “आका बदल रहे हैं “ रोशनी की तरफ की तरफ इशारा करती हुई पुरातन पंथी धुंध को साफ करके काले घने रंगों को अपनी ग़ज़लों की शमा से रोशन कर देती है ।

“आका बदल रहे हैं ” एक ऐसा ग़ज़ल संग्रह है:-
जो सामाजिक सरोकार के ताने-बाने में रची बसी छंद मुक्त गजलों की वेणी में गुथी प्रतीत हो रही है ।
“आका बदल रहे हैं” उत्कृष्टता की चरम सीमा पर पहुंचते हुए श्रीमान विजय कुमार तिवारी जी का गजल संग्रह वैचारिक दृष्टि से काफी उन्नत है जो पाठकों को उद्वेलित करता है ।

“आका बदल रहे हैं ” गजल संग्रह पुरातन पंथी सभी मूल्यों को तोड़ती हुई नई पीढ़ी को नवीनतम राह दिखाने का आवाहन करती है ।
असीम नीलेआकाश में खुली हवा जैसा विचरण का अहसास कराती है कि अपने पंख एवं बाहु पाश फैलाओ -बिना डरे दिन हो या रात कठिनाइयों का सामना करो ।

“आका बदल रहे हैं” ग़ज़ल संग्रह में तैर कर यह एहसास होता है कि व्यक्ति के अंतर्मन के भीतर विचरण करने वाली तमाम तार्किक एवं अतार्किक, लौकिक एवं अलौकिक परिस्थितियों से जूझने की अपार शक्ति मिलती है ‘ हर गजल अपने से संवाद और संघर्ष करती प्रतीत होती है ।

अधिकतर रचनाएं आदमी की आशा निराशा जैसी चुनौतियों के बीच मानव संवेदनाओं और उनके अलगाव जैसे तमाम भावों को पाठकों तक पहुंचाती हैं

श्री विजय कुमार तिवारी जी के “आका बदल रहे हैं ” गजल संग्रह में प्रेम के विभिन्न पक्षों , संबंधों, विसंगतियों , और अभिव्यक्तियों का चित्रण बेबाकी से किया गया है ।

विजय कुमार तिवारी जी का आका बदल रहे हैं जहां गजल की दुनिया में अद्वितीय अनुपम एवं अविस्मरणीय गजल संग्रह है  ।

वही श्री विजय कुमार तिवारी जी स्वयं भी उच्च कोटि के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सरल एवं निडर व्यक्तित्व के प्रभावशाली लेखन शैली के स्वामी हैं उनके लिए दो पंक्तियां मैं अपनी ओर से देते हुए अपनी लेखनी को विराम देती हूं –

* तेरी आज़ज़ी तेरी शायरी तेरी हर अदा
कमाल है
मुझे फक्र है मुझे नाज है कि आप बेमिसाल हैं *


डॉ अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून

 

विजय तिवारी 
जन्म तिथि : 2 / 8/ 1963
जन्म स्थान : अहमदाबाद
शिक्षा : एम ए बी एड्
वृत्ति : स्वैच्छिक निवृति लेकर पूर्णतः
साहित्य को समर्पित।
अध्यक्ष
‘ साहित्य सेतु परिषद ‘ ( पंजीकृत संस्था ) पूर्णतः साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत है।
प्रकाशन :
— निर्झर संग्रह सन् 1991, ध्रुव प्रकाशन, अहमदाबाद।
— ‘फल खाए शजर’ ग़ज़ल संग्रह, सन् 1999,ध्रुव प्रकाशन, अहमदाबाद। ( हिन्दी साहित्य अकादमी एवं दि अखिल भारतीय सद्भावना ट्रस्ट द्वारा पुरस्कृत )
— ‘आक़ा बदल रहे हैं ‘ ग़ज़ल संग्रह, सन् 2017, ( हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत)
— ‘ साहित्य, साहित्यकार और वैश्विक धरोहर ‘ लेख संग्रह, सन् 2019, ( हिन्दी साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित)
— देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं दो दर्जन से अधिक काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
— हिन्दी समिति ( इंग्लैंड) का मुख पत्र ‘ पुरवाई ‘, नॉर्वे से अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘ स्पाईल ‘, अमेरिका से प्रकाशित ‘विश्व विवेक ‘ और ‘ विश्वा ‘, कैनेडा से प्रकाशित ‘ हिन्दी चेतना ‘ में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्पादन :
—— गुजरात हिन्दी विद्यापीठ का मासिक मुखपत्र ‘ रैन बसेरा ‘ का सम्पादन।
——- ‘ धरा से गगन तक ‘ भारत सहित विश्व के दस राष्ट्रों के हिन्दी कवियों का सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी काव्य संकलन।
सम्मान-पुरस्कार
—–हिन्दी साहित्य परिषद की ओर से सर्वश्रेष्ठ काव्य के लिए सन् 1992 में गुजरात के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम डॉ स्वरूप सिंह द्वारा प्रथम पुरस्कार पदक प्राप्त। श्रेष्ठ काव्य के लिए सन् 1993 में राज्यसभा की सदस्या श्री उर्मिलाबहन पटेल द्वारा पुरस्कार पदक प्राप्त।
—– ‘ साहित्य सृजन सम्मानश्री ‘ 1997, नागपुर , ‘ साहित्य श्री सम्मान ‘ 1998 , गुना ( म प्र ), ‘ साहित्य गौरव ‘ 1998 , बिजनौर, ( उ प्र ) , ‘ साहित्य शिरोमणि सम्मान ‘ 1998 , जालौन, ( उ प्र ), ‘ लेखक श्री सम्मान ‘ 1998 , बैतूल, ( म प्र ), ‘ काव्य वैभव श्री सम्मान ‘ 1998 ,नागपुर , ( महाराष्ट्र ), ‘ साहित्य सिंधु ‘ 1999 , बैतूल , ( म प्र ), ‘ रामचेत वर्मा गौरव पुरस्कार ‘ 1999, अहमदाबाद, ‘ सुधा वाणी सम्मान ‘ 1999, अहमदाबाद, ‘ कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ‘ 2000, मथुरा ( उ प्र ), ‘ श्री सम्मान ‘ 2018, क्रान्तिधरा साहित्य अकादमी, मेरठ, ( उ प्र ), ‘ ज्ञानरत्न सम्मान ‘ 2019, वीर भाषा हिन्दी साहित्य विद्यापीठ, मुरादाबाद, ( उ प्र ), ‘ हिन्दी साहित्य भूषण ‘ 2019, साहित्य मण्डल, श्री नाथद्धारा ( राजस्थान), ‘ काव्य शिरोमणि ‘ 2019, श्री श्रीसाहित्य सभा, इन्दौर ( म प्र ), ‘ बेकल उत्साही स्मृति सम्मान ‘ के बी हिन्दी साहित्य समिति बदायूँ, ( उ प्र), ‘ भाषा सहोदरी हिन्दी सम्मान ‘ 2019, दिल्ली, ‘ शायर हफीज़ मेरठी स्मृति सम्मान ‘ 2019, क्रान्तिधरा मेरठ साहित्य अकादमी, मेरठ, ( उ प्र ), ‘ विशिष्ट प्रतिभा सम्मान ‘ 2019 , दिल्ली, ‘ श्रेष्ठ प्रतिभा सम्मान ‘ 2020, हिन्दी साहित्य अकादमी, अहमदाबाद, ( गुजरात), ‘ श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान ‘ 2020,अलीराजपुर, ( म प्र ), ‘ अखिल भारतीय मेधावी सृजन अवार्ड ‘ 2020, वर्धा ( महाराष्ट्र)
विशेष
—– गुजरात राज्य शाला पाठ्यपुस्तक मंडल द्वारा राज्य के हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित।
—– गुजरात राज्य शाला पाठ्यपुस्तक मंडल के मान्य लेखक, सम्पादक, समीक्षक, अनुवादक एवं प्रूफ रीडर ।
—– मंच के सफल कवि एवं कुशल संचालक ।
अति विशेष
—– राष्ट्र का सर्वप्रथम वेब पुस्तकालय vtlibrary.com
ईमेल–
vijay.tiwari1998@gmail.com
सम्पर्क
—– 9, माधव पार्क- 2,
माधव इंटरनेशनल स्कूल के पास, वस्त्राल रोड, वस्त्राल,
अहमदाबाद- 382418
मोबाइल — 9427622862

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One Comment

  1. मेरे मित्र विजय तिवारी के गजल-संग्रह ‘ आका बदल रहे हैं’ की सुंदर और स्वस्थ समीक्षा समीक्षा लिखकर प्रोफेसर डॉ अलका अरोडा ने तिवारी जी के गजल लेखन की ऊँचाई और गहराई को बहुत विस्तार ही नहींं दिया, विजय पताका में बहुत रंग भरे और कृति के प्रति पठनीयता बढ़ाई, कृति की सम्प्रेषणता का मान बढाया। बहुत बधाइयां अलका जी को वर्ष में विजय जी के साथ ।
    बिर्ख खडका डुवर्सेली
    आमा खडकालाया
    दुर्गागढी, प्रधाननगर
    दार्जिलिंग 734003
    मो. 9749052857
    इमेल : birkhakd@gmail.com

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