बुद्धिमती नारी | Buddhimati Nari
बुद्धिमती नारी
( Buddhimati Nari )
नहीं लगती
सबको प्यारी!
जब भी मुखर,
प्रखर दिखती है,
तुरंत बन जाती है कुछ
आंँखों की किरकिरी।
अहं के मारे इन दिलजलों को,
सुंदर लगती है
मौन व्रत धारित,
हांँ में हांँ मिलाती
दीन-हीन, बुद्धिहीन
नारी- बेचारी!
देख-देख खुश,
होते रहते हैं शिकारी।
जब पड़ने लगते हैं
उसके दॉव भारी
फिर अहमकों को,
कुछ नहीं सूझता
दिखती है इनके
चेहरे पर लाचारी।
बहाना बना
खिसकने की,
करने लगते हैं
तैयारी।
( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )
भोपाल, मध्य प्रदेश
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