
संगीत बिना गीत सुना
( Sangeet bina geet suna )
संगीत बिना हर गीत यह सूना,
ढोलक और बांसुरी यह वीणा।
चेहरे पर आ जाती है खुशियां,
बजती है जब प्यारी यह वीणा।।
माता शारदे का रहता आशीष,
कण्ठ में विराजे बनकर संगीत।
होंठों पर लाती मिट्ठी मुस्कान,
गीतों के साथ जब बजे संगीत।।
जब किसी ने लिखा कोई गीत,
उसे मिला प्यारा-प्यारा संगीत।
सुर और ताल बजते जब दोनों,
उठते है पांव यह ऐसी है प्रीत।।
संगीत को जिस जिसने समझा,
संगीत की महिमा उसने जाना।
रीत है यह कई वर्षो की पुरानी,
माता सरस्वती है सुर की रानी।।
गीत जन्मा तब संगीत यह बना,
साजबाज बजा चार चांद लगा।
वाद्ययंत्रों ने बढ़ाया सबका मान,
बोलें मीठी वाणी सुर यह शान।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )