इश्क-ओ-हुस्न
इश्क-ओ-हुस्न इश्क-ओ-हुस्न भला क्या है ये आज तक न कोई समझा सनम,जमाना करता इश्क की ख़िलाफत और खुद ही इश्क करता सनम, वो जिन्हें मिलता इश्क सच्चा यार का वो हुलारे जन्नत के लिया करते हैं,न हो नसीब जिसे यार का दीदार वो शब-ए-हिज्रा में आहें भरता सनम, मिलती जब आँखो से आँखे मयखाने सा…