नाज की शायरी | Naaz Shayari
मेरी छुपी हुई मोहब्बत
मेरी छुपी हुई मोहब्बत ना किसी को दिखी
में चाहती रही उसको उसको वो भी ना दिखी
क्या करती अपने दिल का हाल छुपाती रही
में लोगों के बीच झूठा मुस्कुराती ही दिखी
उसको लगा में खुश हु उसके दूर होने से
में उसको हर बार मोहब्बत जताती हुई दिखी
किस तरह बताती अपने दिल का हाल
में तो खुद को रात भर मातम बनाती हुई दिखी
क्या बोलूं क्या छुपाऊ कुछ मालूम नही
में जब भी उसको बोली उसको लड़ाई दिखी
मैने परवाह की उसकी खुद से ज्यादा चाहा
में उसको कहती कुछ उसको मेरी बेरुखी दिखी
जो ना था दिल मैं उसके लिए उसको वो महसूस हुआ
में ना जाने क्यों उसको ही चाहती हुई खुद को दिखी
मैने बहुत चाहा अब ना दिखाऊं उसको आंसू अपने
उसको मेरी मोहब्बत हमेशा बेइमानी ही क्यों दिखी
अल्फ़ाज़ मैं बया ना कर सकू जो उसको दर्द दे कभी
और उसको मेरी मुस्कुराहट में अजियत ना दिखी
मैं मजबूर हो गया हूँ
लड़ते लड़ते इस जमाने से
मैं मजबूर हो गया हूँ,
जिसको कहूँ अपना मैं,
उसी से दूर हो गया हूँ।
क्या गिला करूँ अपनों से,
मैं बहुत मजबूर हो गया हूँ,
मैंने जिसको अपना कहा,
उसके दिल से दूर हो गया हूँ।
उसकी मर्जी है, ना चाहे,
मैं खुद से रूठ गया हूँ,
गिला होती है खुद से रात को,
मैं बहुत मजबूर हो गया हूँ।
आधी रात तक आंसू नहीं रुकते,
मैं तो आंसुओं में ही डूब गया हूँ,
इतना मुश्किल होता है, ना पता था,
आज जाना कितना मजबूर हो गया हूँ।
मैंने छोड़ दी उम्मीद सारी, अब
मैं जिसके ग़म में निधाल हो गया हूँ,
बहुत कोशिश की जी सकूँ मैं तेरे साथ,
आज मैं सच में बहुत मजबूर हो गया हूँ।
तेरा ना हुआ
यूं तो कर्ज उतार देता तेरी मोहब्बत का
मगर तू चाहने के बाद भी मेरा न हुआ
कहने को चाहता तो बहुत हूँ तुझे मैं
मगर इतनी चाहत के बाद भी ठिकाना तेरा ना हुआ
मैं तुझे चाहने की हद पर भी कर लेता
मगर तेरी चाहत में मेरा जिक्र नहीं हुआ
कहने को क्या मोहब्बत है तुझे
मुझे तो तेरी मोहब्बत का यकीन नहीं हुआ
कैसे यकीन कर लेता मैं तेरे झूठे वादों पर
मुझे तूने सच भी झूठ बोला था हुआ
एक नज़र से मोहब्बत दिल में उतर जाती है
मगर मैं क्या करूँ, तेरी मोहब्बत का असर नहीं हुआ
मुझे ऐतबार था तुझ पर थोड़ा-थोड़ा
मगर मेरी मोहब्बत का अंजाम कुछ नहीं हुआ
वैसे तो तेरा वजूद बहुत मायने रखता है
मगर मेरे वजूद का हिस्सा तेरा नहीं हुआ
लिखने को हजार मोहब्बत के फसाने लिख दूँ
मगर मेरी जुदाई में तेरा बुरा हाल ही नहीं हुआ
इधर दर्द की इंतहा बहुत रात घेरी थी
मगर मेरी रात का तू अनजाम-ए-वफा नहीं हुआ
भूला नहीं हूँ मैं
याद है तू तुझे भूला नहीं हूँ मैं
वक्त नहीं मेरे पास बदला नहीं हूँ मैं
बता क्यों लोगों की बात में आता है
जहाँ चाहे पूछना तेरा ही हूँ मैं
उलझनों से थोड़ा घिर गया हूँ मैं
तेरे लिए लड़ रहा हूँ बदला नहीं हूँ मैं
कहने को हसीन चेहरे होंगे
तेरा चेहरा ही है जो बसा है दिल मैं
आम हूँ नहीं हूँ कोई फ़रिश्ता मैं
दर्द होता है मुझे बस कहता नहीं हूँ मैं
मैं चाहता हूँ तुझे बनाऊँ इस तरह अपना
हस्ता रहे तू और हसाता रहूँ तुझे मैं
यह तो नहीं कहता सब लदूंगा तुझे मैं
हाँ जो हो सका मुझसे वो सब दूंगा मैं
नहीं कोई गिला मेरे दिल में तेरे वास्ते
तू रुला भी दे तेरी खुशी में खुश हूँ मैं
तेरे नाज़-नखरे उठाऊँगा सारी उम्र मैं
मुझे मत समझ गलत गलत नहीं हूँ मैं
तुझसे वक्ती दूरी है फासला है मजबूरी है
करता हूँ करता रहूँगा तुझसे मोहब्बत मैं
हम न बचा पाए खुद को दुबारा
हमसे दिल यूँ टूटा दरिया होकर हमारा
हम न बचा पाए खुद को दुबारा
कहने को आरज़ू थी हम साथ रहें
मगर वो रूठ गया हमसे फिर दुबारा
हम जी रहे थे उसके बिना ज़िंदगी
वो आज फिर मिलने आया हमसे दुबारा
हमको न दिखी उसकी मोहब्बत इस बार
मगर रोके जीत ले गया हमको दुबारा
क्या कहते हम उसे जान समझा था
वो जान होने का फायदा उठा गया दुबारा
किस बात का गिला करें हम खुद खुदसे
जो नहीं करना था हमको फिर किया दुबारा
उलझी ज़िंदगी को कैसे संभाले आज फिर
जो संभली थी थोड़ी वो बिगड़ गई दुबारा
हम किससे कहें कोई सहारा दे दे हमको
हम जानते हैं फिर टूट जाएंगे हम दुबारा
चलो छोड़ो ये सब बातें क्या होगा अब
कुछ कहते ही लड़ जाएंगे सब हमसे दुबारा
एक नज़र हम किसी को भाते नहीं हैं न जाने क्यों
मगर जब मरहम की हो ज़रूरत वो आते हैं दुबारा
खैर दुआ का सिलसिला तो जारी है आज भी हमारा
मगर अब उसे दुआओं में नहीं मांगते हम दुबारा
आज दर्द की इंतहा है इस उजड़े घर में देखो जरा
हम नहीं कहेंगे जान हो तुम फिर उसे दुबारा
ये तो जानते हैं हम वो मरहम नहीं है अब हमारा
मगर क्या करे उससे लगा है हमको ज़ख्म दुबारा
फिर हमसे ही दिल यूँ टूटा दरिया होकर हमारा
उससे हम न बचा पाए खुद को इस बार दुबारा
वो औरत ही है
जिसका नाम ही इज्जत-ए-मुकाम है
वो हर किसी की माँ का नाम है
जिसको बुलाते हैं माँ, बेटी, बहू
वो एक औरत ही का नाम है
बीबी बनकर साथ निभाती है
माँ बनकर लोरी सुनाती है
कौन सा मुकाम ले नहीं पाती
वो बेटी बेटा बनकर दिखाती है
हजारों की भीड़ में नारी ही है
जो हर बार जीत जाती है
कभी-कभी अपने हाथ ही से
अपने ख्वाबों को दफनाती है
कहने को तो बहुत कमजोर है
औलाद के लिए हर दुख सह जाती है
जिसको कहते हैं हम औरत आम सी
वो कभी-कभी जंगों में जीत जाती है
आज की दुनिया में भी औरत ही है
अपना सुख छोड़ औरों के लिए जी जाती है
जिसकी जैसी कुर्बानी नहीं दे पाता कोई
वो औरत ही है, वो औरत ही है
याद है
मेरे लबों को तेरा नाम जो याद है
मोहब्बत है मगर यही कलाम याद है
हर बात पर याद आ जाते हो रोज़ शाम को
मेरे दिल में तेरी ही सुहानी याद है
मुझे उलझाती है हर वक्त तेरी याद है
मुझे तड़पाती है हर वक्त तेरी याद है
लिखने को तो बहुत लम्हे हैं तेरे बाद भी
मगर हर लम्हा तेरे साथ गुज़रा याद है
मुझे कहाँ तेरे लवा किसी को चाहना याद है
तू मेरा है सनम मुझे बस यही याद है
अपने वादे अपनी कसमें में भूलता नहीं
मुझे बस तू और तेरी वफ़ा ही याद है
मुझे कहाँ दिखा कोई मुझे बस तू याद है
तेरी याद और तेरा साथ ही मुझे याद है
वक्त की लहर किस कदर तड़पाती है मुझे
तेरे मेरे दरमियान मुझे फासला याद है
ना मैंने तुझे देखा मुझे तू धुंधला याद है
अल्फ़ाज़ जज़्बात तेरे हैं मुझे एहसास याद है
तेरे चेहरे की रौनक तेरा यू मुस्कुराना
मुझे तो एक बस तू और तेरा चेहरा याद है
सबकुछ
मैने कुछ गमों को छुपा रखा है
मेरे हाल ने सबकुछ बता रखा है
कहने को कुछ उदासियां है मेरे अन्दर
सब कुछ मैने हसी में डाल रखा है
मेरे अल्फाज कुछ दर्द भरे हैं
मेरे दिल मे तूफान आ रखा है
मेरे कदमों में जान नहीं बची है
मैने कदमों को मुश्किल राह में डाल रखा है
मेरी उदासियो का कोई गवाह तो नही
मगर मैने अपने नाम पर दिल ए जख्म डाल रखा
मंजिल
सफर ए मंजिल का क्या बताऊं
कुछ मंजिल हमारी अधूरी सी है
हम ठहरे मुसाफिर ए जमाना
लोग कहा इज्जत देते है हमे
कुछ खास कहा देख पाए लोग हम मै
हम तो अब सबको दुआ देते है
दुश्मनी रखकर क्या फायदा होगा हमे
यहां तो एक बार देख कर दुश्मनी रखते हैं
हम ठहरे सूफी मिजाज वाले लोग
हम कहा दिल ए नादान मैं बुराई रखते हैं
जो मुकम्मल
जो मुकम्मल ना हुआ़ वो ख्वाब हो तुम
जो सारा था मेरा था मेरा नही वो जहान हो तुम
लिखें जो खत मैंने तेरे नाम प्यार से
वो सारे जला डाले खत तेरे नाम पे
कुछ तो याद होगा मेरे नाम पर
वक्त गुजर गया जो तेरी याद मैं मेरा
वो सारी यादें जला डाली तेरे वास्ते
कुछ तो याद ही नहीं अब मुझे तेरे नाम पर
कह दे जो कहना है मेरे नाम पर
मैं वादे निभाना खूब जानती हूं
जो निभाता मुझे मेरे ख्वाब मैं
मैं बताती तू क्या है मेरे ख्वाब मैं
मिटा दे
मुझे तू चाहे तो मिटा दे
मुझे गम नही तू चाहे तो सजा दे
अदब मेरी तहजीब है ए बेखबर
मुझे सारी दुनिया चाहे तो भुला दे
मेरी नजर नहीं उसकी नजर का कमाल है
मैं झूठा नही मेरे दिल का तू करार है
मुझे खास का मुकाम न दे
मगर मुझे आम भी तो न कर
मैं शान शोकत की तलब नही करती
मेरी आरजू है मगर मैं हसद नही करती
बदले लोग
कुछ समय बदला कुछ लोग
हम जो बदले और बदले लोग
घायल थे हम जब नमक थे लोग
हम सादा मिजाज मोहब्बत वाले
उनको देखा कुछ और थे लोग
वक्त जब बदला हमारा
उनके नजरिए थे कुछ और
जब हम गिरफ्तार थे मुश्किलो में
बडे खुश मिजाज थे लोग
नजर से उतार कर फेंका लोगो ने
हमारे जज़्बात थे कुछ और
मुझे गम नही उनके बदलने का
गम है चेहरे पर नकाब रखते थे लोग
कुछ समय बदला कुछ कुछ लोग
मोहब्बत
मुझे दर्द ए मोहब्बत का इलाज करदो
मैं बीमार हू मुझे खुद से आजाद कर दो
किस तरह बताऊं में दर्द मैं हूं
जिसको बताऊं कहता है में मोहब्बत में हूं
लिखने के लिए अल्फाज नही मेरे पास
जो कहूं आदत हो मेरी तुम
किस तरह कहूं मोहब्बत हों मेरी तुम
खुद को जो में बर्बाद करलू
किस तरह कहूं जिंदगी हो मेरी तुम
मुझे बदलना नही आता औरों की तरह
में बदल जाऊ तो यकीन कर इस
जहा में नही हू मैं
खुदा का वास्ता
एक कफन एक कब्र छोटा सा रास्ता ।
मोत आ जाए मोत को खुदा का वास्ता ।।
जो सांस लेती हू क्यू दम निकलता नही।
मै जिंदा रहती हू मगर दर्द सम्भंलता नही।।
किस खुशी किस वजह पर जीना चाहूं मै।
मेरे मरने की वजह ज्यादा जीने की कुछ नही।।
अल्फाज ए यार मौसम बन गए।
जब चाहा भिगोदिया कभी हम तरस गए।।
खिला हुआ चेहरा मेरा कुछ मुरझा गया ।
साथ चलने का वादा उनका कोई बदलवा गया।।
मेरी खामोशी तक मंजूर नही जिसे।
आज वो मुझसे बिना कुछ कहे चला गया।।
चल हमने हसरत तेरी छोडी ही थी।
जैसी आंखे बंद की वो नजर के सामने आ गया।।
मुझे यू सता कर न हसाया कर।
मै इंसान हू मुझे मत रुलाया कर।।
तू जिसे अपना समझे उसके पास जाया कर।
उसको अपना दर्द बताया कर।।
मेरी खता ये थी तुम्हे चाहा ना ओरो की तरह।
वरना तुम भी हमारे दीवाने होते ओरो की तरह।।
तस्वीर फाड दे
मुझको जो तू नजर से उतार दे।
मै क्या कहू जो मेरी तस्वीर फाड़ दे।।
ये कलम ये अल्फाज तेरे लिए है।।
मै कुछ नही हू तू खास मेरे लिए है।।
मुझे जख्मी दिल न पसंद है ।
ये सुबह-शाम तेरे लिए है।।
मुझे रोने का शोक तो नही।
मेरी आंख का हर कतरा तेरे लिए है।।
मुझे जो तू नवाजे खुद से।
मेरा जान ओ जिगर तेरे लिए है।।
मै गुलाम नही जमाने का ।
मेरी गुलामी तेरे लिए है।।
मै जो आज नम आंख हू।
ये सारी निशानी तेरे लिए है।।
हुस्न ए अख्लाक
जिसमे अख्लाक ए हुस्न न हो।
वो खाली जमीर होता है।।
जीता है जिसमे अख्लाक ए नूर होता है।
मै तो कलम कार हू मै अदाकार हू।।
मुझसे कहा किसी का जहूर होता है।
लिखने की तासीर जो बख्शी इस गुलाम को।।
इस हुस्न ए तासीर से कौन बदनाम होता है।
हम लिखते कहा कुछ कलम में नूर होता है।।
मुझे कहने वाले हजार ताने देते है ।
कहते है इस पागल कहां कोई होता है।।
हम अदाकारा है कलमकार है।
हम सच लिखदे बदनाम हमारा नाम होता है।।
कुछ कुछ बोलकर हम चुप है।
कहां किसी के साथ हमारा नाम होता है।।
हम तन्हाईयो के साथी है गुम राह नही।
लिखने वाले से कहदो के सच लिखे ।।
हम इंसान है फरिश्ता नही ।
हम झूठे मक्कार है अदाकार है।।
हम सच कहे तो हम गुनाहगार है।
कहते है लोग हम कलमकार है अदाकार है।।
बेसहारा हू मैं
सहारा क्या ढूँढु मैं
पहले से बेसहारा हू मैं
इश्क के नाम पर लूटा मुझे
ढूबा हुआ किनारा हू मैं
जिसकी हसरत रख कर दुआ की उसकी
उस शख्स को लगी बद्दुआ हू मै
न लिख पाउंगा नाम उसका मैं
किस तरह बताऊ कहा हू मैं
ख्वाहिशो का समंदर था मैं
आज सूखा हुआ समंदर हू मैं
उसको चाहने वाले हजार मिले
मुझ जैसा चाहे अब उसको कहा मिले
नम आंखो को मै कैसे सुखाऊ
नम आंखो की वजह किसे बताऊ
जिसको बताया उसने वफादार कहा
आइने में देखा उसने गद्दार कहा
मुझे कमाल की ख्वाहिश ने घेरा है
मैने कहा रोशनी उसने दिखाया अंधेरा है
वो कागजी बाते
वो प्यारी सी यादे
वो कागजी बाते
वो लम्हे प्यार के
वो दिखावटी बाते
तनहाईया भरी राते
वो तुम्हारे झूठे वादे
देख मुझे सब याद है
मुझे तिल तिल मारने की बाते
वो तेरी झूठी बाते
वो तडपाने की बाते
वो झूठी कसमे वो वादे
वो नादानी की बाते
तेरी परवाह तेरी यादे
तेरी बाते मेरी नम आंखे
तेरा सुकून मेरी बेसुकून राते
जब जब खुले आंख वो तेरी झूठी बाते
नाज़ अंसारी
बदांयू ( उत्तर प्रदेश )
यह भी पढ़ें:-