चक्षुजल | Chakshujal par kavita
चक्षुजल
( Chakshujal )
बुभुक्षित कम्पित अधर का सार है यह।
चक्षुजल है प्रलय है अंगार है यह।।
तुंग सिंधु तरंग अमृत छीर है यह,
प्रस्तरों को को पिघला दे वो नीर है यह,
लक्ष्य विशिख कमान तूणीर है यह,
मीरा तुलसी सूर संत कबीर है यह,
प्रकृति है यह पुरुष है संसार है यह।।चक्षुजल है०
मनस में गुंजार करती बंशी है यह,
घटाकाश चिदाकाश अंशी है यह,
प्रणय पण के द्वंद सर में मार है यह,
असह्य लज्जा ह्रास का चित्कार है यह,
लुटती घुटती अबला की पुकार है यह।।चक्षुजल है०
वेदना संवेदना की धार है यह ,
आंचल में ढका हुआ प्यार है यह,
हृदयवीणा का ही अनहद नाद है यह,
विरह ब्यथित दृगन का उन्माद है यह,
निराकार होकर भी साकार है यह।।चक्षुजल है०
लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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