चाँद की आधी रात | Chand ki Aadhi Raat
चाँद की आधी रात
( Chand ki aadhi raat )
शरद की पूर्णिमा की रात में,
पूरे चाँद की आधी रात में,
एक मीठी-सी कविता,
अपने पूरे मन से बने,
हमारे किसी अधूरे रिश्तों के नाम,
लिख रहीं हूँ।
चंद्रमा की चमकीली रात,
इस सर्दीली रात में,
तुम मेरे साथ नही हो,
लेकिन–
रेशमी डोरियों में बंधी स्मृतियाँ,
पलकों के किनारों पर झूल रही है।
और,
तुम्हारी ये मधुर यादें,
मेरे दिल को चुभों रहीं है।
इस चाँद का सौंदर्य,
मेरी इन कजरारे नयनों में,
सिमट गया है।
और तुम्हारा प्रेम…
कहीं मेरे मन के कोने में
सितार की धुन जैसे
झनझनाया है,
और फिर
इसी चाँद के साथ ,
मेरे कमरे में उतर आया है।।
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )