चाँद को निखार कर
चाँद को निखार कर
चाँद को निखार कर आज बहुत प्यार दूँ,
प्रेमिका की झूमती लटे बिन कहे संवार दूँ
निज हृदय प्रतीत होते प्रेम की बात है
छोड़कर समाज य़ह कामना की बात है
हृदय के प्रकोष्ठ यूँ अनुभाव कांपते रहे
हृदय को न्यौछावर कर भावना की बात है
रूप कांच को छुए नहीं दृश्य को संवार लूँ
अपनी निश्चल भावना को हृदय में विचार लूँ
वासना नगण्य प्रेम चरम पर हुआ
प्रेयसी को स्वर्ग अप्सरा विचार लूँ
अब हृदय स्पन्दन तीव्र तरुण हो रहे
यूँ युगों के बाद मोहन एक दर्पण हो रहे
अनुराग बिन अनुराग के यूँ निखरता नहीं
राधे की आसक्ति में श्याम प्राण प्राण खो रहे
हिय मनमोहन हो चला सत्य इसको मान दूँ
नेत्र भंगिमा चली प्रणय प्रिय इसको भान दूँ
नेत्र बांधने लगे नेत्र को ही डोर से
काजल की गली में नेत्र प्राण प्राण दूँ
विचार बन प्रीत में मूर्त रूप हो रहे
कल्पनायें सम्भल हृदय पूर्ण हो रहे
रूप लावण्य अनुराग मोह
भाव बिन कहे अनुरोध पूर्ण हो रहे
भाव सौंदर्य, प्रेम, कामना प्रवाह दूँ
कनखियों के तेज को हृदय में उतार दूँ
हस्त यूँ किसलय हुए चूडिय़ां मचल रहीं
चूड़ियों को प्रेम वश हस्त से उतार दूँ
स्वाति शर्मा ‘अतुल ‘
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