स्वयं को बदले और

स्वयं को बदले और

ज़माने में आये हो तो
जीने की कला को सीखो।
अगर दुश्मनों से खतरा है तो
अपनो पे भी नजर रखो।।

दु:ख के दस्तावेज़ हो
या सुख की वसीयत।
ध्यान से देखोगें तो नीचे
मिलेंगे स्वयं के ही हस्ताक्षर।।

बिना प्रयास के मात्र
हम नीचे गिर सकते है।
ऊपर उठ नहीं सकते…
यही गुरुत्वाकर्षण का नियम है।
और संसार में रहकर
जीवन जीने का तरीका है।।

ऊँचाईयों पर वो लोग पहुँचते हैं,
जो ‘‘बदला‘‘ लेने की नहीं।
स्वयं में ‘‘बदलाव‘‘ लाने की
सोच को जिंदा रखते हैं।।

जो स्नेह दूसरों से मिलता है।
वह हमारे व्यवहार है।
सबसे बढ़ा उपहार वो है
जो इंसानियत को समझता है।
कभी-कभी तकलीफ में भी
हमें मुस्कुराना पड़ता है।
ताकि हमें देखकर कोई
यहां दुखी ना हो जाये।।

मुस्कुराना तो सीखना पड़ता है।
रोना तो पैदा होते ही आ जाता हैं।
और जवान होते ही लोगों में।
अपना पराये की भाव आ जाती है।।

जीवन की सबसे
बड़ी सच्चाई क्या है।
देने के लिए दान,
लेने के लिए ज्ञान।
और त्यागने के लिए
अभिमान सर्वश्रेष्ठ है।
खुशाल जीवन जीने के
यही तो मूल सूत्र है।।

Sanjay Jain Bina

जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई

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