चौखट में कोई आए तो
( Chaukhat mein koi aaye to )
चौखट में कोई आए तो लगता है की तुम हो
धीमे से गले कोई लगाए तो लगता है की तुम हो
मेरी सांसें भी अब तो कुछ कुछ खफा है मुझसे
जब भी यह मुझे मनाए तो लगता है की तुम हो
सुभो शाम डगमगाते है ये कदम शराबी की तरह
कदम फूले ना समाए तो लगता है की तुम हो
शब-ए-मिराज में यूँ बाहे फैलाये हुए इन्तिज़ार में
कोई देखे बगैर जाए तो लगता है की तुम हो
बस में नहीं में खुद का, खुद से बे-खबर ये क़रार
झोंका हवा का उड़ाए तो लगता है की तुम हो
‘अनंत’ की ये बे-बसर ज़िन्दगी होगी क्या बसर
कोई दर्द भरी इल्तेजा सुनाए तो लगता है की तुम हो
शायर: स्वामी ध्यान अनंता