वो नन्ही सी चींटी | Cheenti par kavita
वो नन्ही सी चींटी
( Wo nanhi si cheenti )
एक ना एक दिन ज़रूर आता है चींटी का भी वक्त,
हिला देती है वो नन्हीं सी चींटी ताज और ये तख्त।
समय पलटते देर न लगता किसी का भी उस वक्त,
परेशानियां दूरी बना लेती चाहे वह हो बहुत सख़्त।।
वो परमपिता सभी को इस एक ही मिट्टी से बनाता,
किसी को जीव-जन्तु पक्षी एवं ये चींटी ही बनाता।
किसे निर्धन कमजोर और किसे मालिक बना देता,
बाहर से किसी को सुंदर तो किसे अंदर से बनाता।।
ये उन्नति के रास्ते कभी भी किसी के बंद नही होते,
मानव अक्सर निराशा पाकर हिम्मत ही हार जाते।
जीवन एक संघर्ष है जिस से डटकर लड़ना चाहिए,
विश्वास मन में हो तो वह भगवान को भी पा जाते।।
ये हार भी शबक है जो सुधार करनें का मौका देती,
पहाड़ी से बर्फ़ न पिघलती तो नदियां खुश्क रहती।
कभी दु:खो का पहाड़ और जीत का जंजाल होती,
विश्वास से ही ईश्वर मिलते इसी से ही मूरत पूजती।।
सीख लो इस नन्ही चींटी से जो हिम्मत नही हारती,
कई बार गिरती पड़ती उठती व फिर चलती जाती।
दुर्गम पथ एवं लम्बी दूरी भी ये चींटी पार कर लेती,
अनुशासन और एकता का पाठ सब को सिखाती।।