डरते – डरते

( Darte -Darte ) 

 

एक ट्रक यूँ सटकर गुजरा ,
बचे हैं मरते – मरते .
आगे – पीछे देख पुनः अब ,
चले हैं डरते – डरते .

जाने किसका मुँह देखा था ,
न पड़ा पेट में दाना .
सूरज बैरी सा चढ़ आया ,
मिला ना पता-ठिकाना .
बिना रुके ही निकल गए सब ,
वहीं है करते – करते .

अंक बने पहचान मनुज की ,
अनपढ़ का यही रोना .
एकाकीपन को मजा कहे ,
आज का बाबू सोना .
पहुँच न जाए पास शेर के ,
हिरण ये चरते – चरते .

भीड़ बढ़ी इस कदर देख लो ,
छिले कंधा से कंधा .
आस बटेर की लेकर फिरता ,
यहाँ पर हर इक अंधा .
सुखी हुए ये जन दूजे के ,
दुःख को हरते -हरते .

 

Rajpal Singh Gulia

राजपाल सिंह गुलिया
झज्जर , ( हरियाणा )

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