स्वर्णिम विजय दिवस

( Swarnim vijay diwas ) 

 

१९७१ के युद्ध में भारत की विजयी हुई थी,
पाक की कश्मीर पर नापाक नज़र रही थी।
विजय की ख़ुशी में मनाते हम स्वर्ण जयंती,
भारत सेना ने पाक को ऐसे धूल चटाई थी।।

मातृ भूमि का मान बढ़ाकर वो ऐसे सो गये,
हमेशा हमेशा के लिए दिल में घर कर गये।
सम्पूर्ण भारत-वासी थें उस समय सदमे में,
ऐतिहासिक विजेता बनाकर अमर हो गये।।

हमे अमन एवं चैन देकर गए है वीर जवान,
उनकी याद में देश स्वर्ण जयन्ती मनाते है।
इस आज़ादी को सभी हरगिज़ नही भूलेंगे,
इसलिए विजय मशाल प्रज्वलित रखते है।।

हिंदुस्तान के ऐसे अनेंक बहादुर सैनानी थे,
भारत के खातिर जो अपने प्राण लुटा गये।
ऐसी अनुपम ख्याति वाले वे वतन प्रेमी थे,
संवेदनाओं के बीज वे यहाॅं पर बोकर गये।।

हार मानकर पाक आत्मसमर्पण‌ कर दिया,
जीत की ख़ुशी में हम सब जलाते ‌है दीया।
१६ दिसंबर १९७१ को आता है विजयपर्व,
भारतीय वीर जाॅंबाज़ो पर सभी को है गर्व।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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