दस्तूर | Dastoor
दस्तूर
( Dastoor )
दस्तूर दुनिया का ,
निभाना पड़ता है ।
अनचाहे ही सही ,
सब सह जाना पड़ता है ।
सच को ही हमेशा ,
हमें छुपाना पड़ता है ।
वक्त तो चलता जाता ,
हमें रूक जाना पड़ता है ।
बिना प्रेम के भी कभी ,
रिश्ता निभाना पड़ता है ।
आते हैं दुनिया में तो ,
जीकर जाना पड़ता है ।
जज्बातों को बस दिल में ,
हमें छुपाना पड़ता है ।
रिश्तों में आयीं दरारों को ,
भरवाना पड़ता है ।
दस्तूर दुनिया का ,
निभाना पड़ता है ।
श्रीमती प्रगति दत्त
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
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