दयार-ए-इश्क़ से डर गए हम भी | Dayaar -e- ishq
दयार-ए-इश्क़ से डर गए हम भी
( Dayaar -e- ishq se dar gaye hum bhi )
दयार-ए-इश्क़ से डर गए हम भी
फिर तेरे तलाश में दर-ब-दर गए हम भी
ज़िन्दगी भर बूतान-ए-इश्क़ के किस्से सुने
और पयान-ए-शौक़ से गुज़र गए हम भी
तलाश में ना आगे बढ़ा, ना वहां से लौट सका
बस दीदार-ए-यार से सँवर गए हम भी
नशा पे चढ़े थे हम मर्ज़-ए-दवा बनकर
जब होश आया तब उतर गए हम भी
हमारे होने से ही महफ़िल, महफ़िल है
क्या होगा यहाँ से अगर गए हम भी
बाद-ए-सबा में रंग भर जाया करती थी
उसके बाद ‘अनंत’ फिर बिखर गए हम भी
शायर: स्वामी ध्यान अनंता