खत्
खत्

खत्

( Khat )

 

हमारे “खत्” ही थे एक सहारे….||✉️||

1.कलम उठा के कागज पर, अरमान दिलों के लिख डाले |
मम्मी-पापा सब कैसे रहते हैं, सब हाल घरों के लिख डाले |
मुहल्ले-पडोस की खट्टी-मीठी, सब चाहत-बातें-दिल काले |
खत् लिख पोस्ट किया अब बैठे, जबाब की चाह मे दिल वाले |

हमारे “खत्” ही थे एक सहारे….||✉️||

2.चिठ्ठी भेजी हाल-चाल की, अपने जज्बात बताने को |
मन में मेरे उनके खातिर, जितनी चाहत है दिखाने को |
दो दिन बीते अब चार हुए, इंतजार अभी भी बांकी है |
जबाब अभी नहीं आया वापस, टेंशन सब पर भारी है |

हमारे “खत्” ही थे एक सहारे….||✉️||

3.एक सुबह जब डांकिये ने, आकर दरबाजा खटकाया |
दिल में लाखों खुशियां भर गईं, हांथ मे जब खत् पकडाया |
पोस्टमैन को थैंक-यू कह कर, खत् पढ़ने को उत्साहित हैं |
खोली चिठ्ठी बैठ गए पढ़ने, खुद अपने पर ही प्रोत्साहित हैं |

हमारे “खत्” ही थे एक सहारे….||✉️||

4.हाल-चाल सब ठीक लिखे, कुछ दर्द लिखे कुछ खुशियां |
भेजा जो प्यार वो वापस आया, आँसू छलकातीं अंखियां |
नहीं थे मोबाइल-फोन कनेक्सन, रहते हैं सब दूर हमारे |
खत् ही थे एक सहारे जिससे, होते दुख-सुख के बंटवारे |

हमारे “खत्” ही थे एक सहारे….||✉️||

 

कवि :  सुदीश भारतवासी

 

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