Dhadkan
Dhadkan

धड़कन तब राग सुनाती है

( Dhadkan tab raag sunati hai ) 

 

जो जितना तन्हा होता, वो उतना ही मीठा गाता है।
भावों का सिंधु उमड़ता, मन स्वर संगीत लुभाता है।
तन्हा तन्हा हो मन की लहरें, मधुर मधुर मुस्काती है।
अधरों पे जो तान मिल जाये, गीतों में ढल जाती है।
धड़कन तब राग सुनाती है

मन मंदिर में बजे घंटियां, भावों का सजता है थाल।
वीणा की झंकार बजे, शब्द दिखाते खूब कमाल।
काव्य की सुधारस बूंदे, जब अमृत रस बरसाती है।
सुरभित सारा समां हो, मुस्कान लबों पे आती है।
धड़कन तब राग सुनाती हैं

काव्य धारा कविता उमड़े, कंठो से होकर आती है।
गंगा धारा सी बलखाती, महफिल को महकाती है।
मधुर मीठे बोल सुहाने, गीत तन्हाई जब गाती है।
मन का पंछी भर ले उड़ानें, परचम जग लहराती है।
धड़कन तब राग सुनाती है

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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