दिवाली | Diwali ke upar poem
दिवाली
( Diwali )
तेरी भी दिवाली है, मेरी भी दिवाली है,
जब दीप जले मन का, तब सबकी दिवाली है।
सरहद पे दिवाली है, पर्वत पे दिवाली है,
जिस-जिस ने लुटाया लहू उन सबकी दिवाली है।
खेतों में दिवाली है, खलिहान में दिवाली है,
गुजरे जिस राह कृषक, उस राह दिवाली है।
छज्जे पे दिवाली है, आंगन में दिवाली है,
हर गांव- गली देखो, घर -घर में दिवाली है।
ये तम न गया मन से, ये ढीठ खड़ा द्वारे,
जब मन होये रोशन, समझो दिवाली है।
इस ज्योति के रथ चढ़ के, इस तम को भगाना है,
जब आंसू लगें हँसने, समझो दिवाली है।
भूखे – नग्गे की पीर जिस दिन मुस्कायेगी,
जब स्नेह के घन बरसें, मानों दिवाली है।
जो लिपट के आए थे, इस साल तिरंगे में,
उन अमर शहीदों की भी ये दिवाली है।
कुछ बिछा रहे कांटे, इस अमन की बगिया में,
फिर उनको दफ़न करने आई दिवाली है।
त्रेता की दिवाली है, अयोध्या की दिवाली है,
कोई मुझे बताये जगह, जहां नहीं दिवाली है?