दिवाली पर
दिवाली पर
मिष्ठान की तश्तरी
अब भरी ही रहती है
रंगोली भरी दहलीज़ भी
अब सूनी ही रहती है
रामा श्यामा करना हमें
अब बोझ लगने लगा
बुजुर्गों का आशीर्वाद
अब बोर लगने लगा
यह काल का प्रभाव है या
भविष्य पतन की दिशा
वर्तमान का झूठा सुख या
कल के समाज की दुर्दशा
दिवाली महज़ त्यौहार नहीं
संस्कृति मिलन का रुप है
जीवन को अचूक ऊर्जा दे
यह पर्व वो संजीवनी धूप है
वीरेंद्र सालेचा
अहमदाबाद गुजरात
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